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अर्थव्यवस्था को गति देने की चुनौती

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अगर करदाता के जेब में पैसे बचेंगे, तो उसका फायदा बाजार और अर्थव्यवस्था को होगा. ऐसी उम्मीद है कि मध्य वर्ग को टैक्स में कुछ छूट मिल सकती है.

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कोई भी सरकार जब बजट पेश करती है, तो वह आर्थिक बही-खाते के साथ-साथ एक राजनीतिक संदेश भी देती है. कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गयी है. पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हैं. किसान आंदोलन भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन किसान अब भी असंतुष्ट हैं. रेलवे भर्ती को लेकर छात्र आंदोलनरत हैं. इसी पृष्ठभूमि में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को बजट पेश करेंगी.

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इसके पहले बजट की पहली कड़ी आर्थिक सर्वेक्षण पेश होगा, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की समग्र तस्वीर पेश करता है. उम्मीद की जा रही है कि यह बजट 2022 में अर्थव्यवस्था को पटरी में लाने में मददगार साबित होगा. कुछ समय पहले भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल थी. कोरोना ने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया.

आज सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) ऐतिहासिक संकुचन के दौर में है. हालांकि इस सुस्ती को सीमित अवधि का बताया जा रहा है. बजट में लोगों की निगाहें इसी पर लगी हैं कि सरकार अर्थव्यवस्था की इस सुस्ती को दूर कर कैसे गति प्रदान करती है. सबसे अहम इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश को माना जाता है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाओं को धरातल पर उतारने की होती है. वर्षों से हम देखते आये हैं कि योजनाएं तो बहुत अच्छी बनती हैं, लेकिन उनका कार्यान्वयन या तो होता नहीं है अथवा बहुत खराब तरीके से होता है.

पिछले दो वर्षों में लोगों की आमदनी में अभूतपूर्व गिरावट हुई है. नौकरियों में छंटनी का दौर चला है. कोरोना के दौरान लोगों ने खर्च पर नियंत्रण रखा. इसका असर मांग पर पड़ा है. देश में अभी मांग का संकट है. अगर करदाता के जेब में पैसे बचेंगे, तो उसका फायदा बाजार और अर्थव्यवस्था को होगा.

अगर यह रकम खर्च के रूप में बाजार में जायेगी, तो निश्चय ही अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा. ऐसी उम्मीद जतायी जा रही है कि मध्य वर्ग के करदाताओं को टैक्स में कुछ छूट मिल सकती है. हालांकि पिछले कई वर्षों से मध्य वर्ग यह आस लगाये है, लेकिन वह पूरी नहीं हुई है. एसोचैम ने वित्त मंत्री को जो सुझाव सौंपे हैं, उनमें भी यह मांग है कि आयकर दरों में कमी होनी चाहिए. मांग बढ़ाने के लिए सरकार ने आत्मनिर्भर 2.0 और आत्मनिर्भर 3.0 कार्यक्रम चलाये, पर महामारी के व्यापक असर के कारण उनका कोई खास फायदा नजर नहीं आया.

एनडीटीवी के प्रणय राय ने उद्योग जगत के लोगों से बजट के बारे में बात की थी. उसमें उनकी अपेक्षाएं सामने आयी हैं. उद्योग जगत किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की धुरी होता है, इसलिए उनका पक्ष जानना बेहद जरूरी है. भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) के अध्यक्ष टीवी नरेंद्रन ने कहा कि भारत को बुनियादी ढांचे, विशेष रूप से चिकित्सा बुनियादी ढांचे, में निवेश करना जारी रखना चाहिए.

उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसी योजनाओं की घोषणा करनी चाहिए, जिनसे सबसे कम आय वर्ग के लोगों की खपत बढ़ सके. उनका कहना था कि सामाजिक-आर्थिक पक्ष, स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे और नौकरी की सुरक्षा पर मजबूत नीतियां होनी चाहिए. सीआइआइ के मनोनीत अध्यक्ष संजीव बजाज ने कहा कि उद्योग जगत विनिवेश कार्यक्रम को जारी रखना चाहता है.

उन्होंने कहा कि एयर इंडिया की बिक्री मौजूदा सरकार की विनिवेश की प्रतिबद्धता पर मुहर लगाती है. सीआइआइ के पूर्व प्रमुख विक्रम किर्लोस्कर ने कहा कि उद्योग को ऑटो क्षेत्र में और निवेश की उम्मीद है. परिसंघ के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में बढ़ोतरी देखना चाहते हैं, जिसके लिए सरकार को मनरेगा जैसी योजनाओं के समर्थन को कम नहीं करना चाहिए.

माना जा रहा है कि बजट में स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र के लिए बड़ा आवंटन हो सकता है. स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में बेहतरी की आवश्यकता है. आयुष्मान भारत योजना के साथ ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पर भी ध्यान देने की जरूरत है. देश में स्वास्थ्य सेवाओं का बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र उपलब्ध कराता है. उसे बढ़ावा देने के साथ-साथ उस पर नियंत्रण की भी जरूरत है.

किसान आंदोलन और पांच राज्यों में चुनावों की दृष्टि से ही सही, यदि किसानों को कुछ मदद मिल जाए, तो इसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन किसानों की समस्याओं का दीर्घकालीन हल निकलना चाहिए. पिछले बजट में किसानों के लिए कई घोषणाएं हुईं थीं. दो हेक्टेयर तक खेती करनेवाले छोटे किसानों को सालाना 6000 रुपये की मदद की घोषणा की गयी थी, जो 2-2 हजार रुपये की तीन किस्तों में किसानों के खाते में भेजी गयी.

असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए पेंशन योजना भी शुरू की गयी है. बजट में कहा गया था कि प्राकृतिक आपदा में किसानों को दो फीसदी ब्याज में छूट दी जायेगी और समय से कर्ज लौटाने पर तीन फीसदी अतिरिक्त ब्याज माफ किया जायेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पहले किसान योजनाओं का लाभ केवल 2-3 करोड़ किसानों को मिलता था, लेकिन अब 12 करोड़ किसानों को मिलने लगा है.

मेरा मानना है कि किसानों को मदद मिलनी ही चाहिए. अमेरिका से लेकर यूरोप तक सरकारें अपने किसानों का ख्याल रखती हैं और सब्सिडी के माध्यम से उनकी मदद करती हैं, पर यह तथ्य भी है कि आर्थिक सहायता किसानों को तात्कालिक मदद तो प्रदान कर सकती है, लेकिन उनकी समस्याओं का दीर्घकालीन हल निकालने की जरूरत है.

यह हर साल का दृश्य है कि टमाटर और अन्य सब्जियों के दाम इतने कम हो जाते हैं कि किसान उन्हें सड़कों पर फेंक देते हैं. किसान अपनी फसल में जितना लगाता है, उसका आधा भी नहीं निकल पाता. यही वजह है कि आज किसान कर्ज में डूबा हुआ है. बैंक से ज्यादा किसानों पर साहूकारों का कर्ज है. यह सही है कि केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में दो गुना से अधिक की वृद्धि की है, लेकिन लागत भी खासी बढ़ गयी है.

अन्य व्यावहारिक समस्याएं भी हैं, जैसे सरकारें बहुत देर से फसल की खरीद शुरू करती है, तब तक किसान आढ़तियों को फसल बेच चुके होते हैं. कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर भी विवाद पुराना है. जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है, जिस पर छोटे किसान काम करते हैं. फसल अच्छी नहीं होने पर छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं. विकास की दौड़ में हमारे गांव लगातार पिछड़ते जा रहे हैं. आजादी के 75 साल हो गये, लेकिन गांवों में बुनियादी सुविधाओं का नितांत अभाव है. विकास की प्राथमिकता के केंद्र में गांव भी होने चाहिए.

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