13.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 04:57 am
13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

पहनावे की औपनिवेशिक मानसिकता

Advertisement

अंग्रेज चले गये, लेकिन मानसिक गुलामी के उनके चिह्न आज भी देश में मौजूद हैं. साड़ी पहनने के कारण रेस्तरां में प्रवेश से मना कर देना एक घटना मात्र नहीं है, बल्कि मानसिकता का मामला है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

दिल्ली के एक रेस्तरां में एक महिला को साड़ी पहने होने की वजह से प्रवेश नहीं दिया गया. महिला को मैनेजर ने कहा कि साड़ी स्मार्ट कैजुअल ड्रेस कोड में नहीं आती है. महिला की ओर से एक वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें यह घटना दर्ज है. महिला होटल के एक कर्मचारी से पूछती है कि क्या साड़ी की अनुमति नहीं है? कर्मचारी जवाब देता है कि साड़ी को स्मार्ट कैजुअल के रूप में नहीं गिना जाता है और रेस्तरां केवल स्मार्ट कैजुअल की अनुमति देता है.

- Advertisement -

दूसरी ओर, रेस्तरां ने अपने बयान में कहा है कि महिला ने उनके स्टाफ से झगड़ा किया, क्योंकि उन्हें अंदर जाने के लिए इंतजार करने को कहा गया था. उनका पहले से रिजर्वेशन नहीं था. रेस्तरां ने माफी भी मांगी है और कहा है कि मैनेजर ने ऐसा इसलिए कहा ताकि महिला चली जाए और स्थिति को संभाला जा सके. इस पर महिला का जवाब था कि हमारे देश में अगर साड़ी को स्मार्ट आउटफिट नहीं माना जाता, तो यह गंभीर चिंता का विषय है.

यह सिर्फ उनकी लड़ाई नहीं है, बल्कि साड़ी और मानसिकता की लड़ाई है. सोशल मीडिया से इंगित होता है कि इस पर लोगों में भारी नाराजगी है. इसके विरोध में महिलाएं साड़ी पहन कर पोस्ट कर रही हैं. लोग उस रेस्तरां को जीरो रेटिंग दे रहे हैं और बहिष्कार करने को कह रहे हैं. राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस कमिश्नर को एक चिट्ठी लिखा है और रेस्तरां के अधिकारियों को भी तलब किया है. इस घटना के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन भी किया.

इसमें तो कोई दो राय नहीं हो सकती है कि हमारे कपड़े ही हमारी पहचान हैं. कम से कम शहरों में महिलाएं अपने पहनावे को लेकर आजाद हैं, लेकिन ड्रेस कोड बनाने और महिलाओं को उनके पहनावे के लिए निशाना बनाये जाने की भी घटनाएं होती रहती हैं. ऐसा नहीं है कि होटल और रेस्तरां में पहनावे को लेकर महिलाओं के साथ भेदभाव किया गया हो. कई बार पुरुषों के भी औपनिवेशिक मानसिकता का शिकार होने की घटनाएं हुई हैं.

अंग्रेज चले गये, लेकिन मानसिक गुलामी के उनके चिह्न आज भी देश में मौजूद हैं, जो ऐसी घटनाओं के रूप में सामने आते रहते हैं. यह एक घटना मात्र नहीं है, बल्कि मानसिकता का मामला है. हम एक ओर अंग्रेजों की गुलामी की प्रथाओं से मुक्त होने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हमारा एक वर्ग अब भी उन्हीं विचारों से जकड़ा हुआ है. कुछ समय पहले जाने-माने युवा लेखक नीलोत्पल मृणाल को दिल्ली के राजीव गांधी चौक, जो कभी कनॉट प्लेस कहलाता था, के एक रेस्तरां में जाने से इसलिए रोक दिया गया था कि उनके कंधे पर गमछा था.

साहित्य कला अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित नीलोत्पल मृणाल झारखंड से हैं. इस घटना की सोशल मीडिया पर भारी आलोचना हुई थी. उनके समर्थन में बड़ी संख्या में युवा और साहित्यकार आगे आये थे. दिल्ली का कनॉट प्लेस का नाम भले ही राजीव चौक कर दिया हो, वह दिल्ली के अभिजात्य वर्ग के खरीदने-टहलने वाला इलाका रहा है. आजादी के 75 वर्ष बीत गये. इस दौरान बदलाव आया है, लेकिन मानसिकता में अब भी कुछ औपनिवेशिक तत्व मौजूद हैं. हम पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाये हैं.

हमारे अनेक विश्वविद्यालयों ने दीक्षांत समारोह में गाउन के स्थान पर भारतीय परिधान कुर्ता-पायजामा, साड़ी आदि का इस्तेमाल शुरू किया है. आइआइटी जैसे संस्थान भी इसे अपना रहे हैं. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी दीक्षांत समारोह में छात्राओं के लिए साड़ी और छात्रों के लिए कुर्ता पहना तय है. पूरे दक्षिण एशिया में साड़ी महिलाओं का परिधान है. चाहे बांग्लादेश हो, श्रीलंका हो अथवा पाकिस्तान, सब जगह साड़ी खूब पहनी जाती है.

मुझे लगभग एक दशक पहले एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ पाकिस्तान जाने का मौका मिला था. वहां मैंने पाया कि अधिकतर महिलाएं सलवार सूट पहनती हैं, लेकिन वे साड़ी भी पहनती हैं. इस्लामाबाद के जिस पांच सितारा सेरेना होटल में यह प्रतिनिधिमंडल ठहरा हुआ था, वहां कार्यरत महिलाओं के लिए ड्रेस कोड साड़ी था. यह सुखद आश्चर्य की तरह था कि वहां काम रहीं सभी महिलाएं साड़ी पहनी हुई थीं.

हालांकि हाल में पाकिस्तान में एक महिला सांसद जब साड़ी पहन कर संसद पहुंची थीं, तो उस पर आपत्ति की गयी थी. एमक्यूएम सांसद नसरीन जलील संसद में साड़ी पहन कर पहुंची थीं, जिस पर जमियत उलेमा-ए-इस्लाम फज्ल के एक सांसद ने कड़ी आपत्ति जतायी थी.

हमें यह याद रखना चाहिए कि हम गांधी की परंपरा के देश हैं और हाल में हमने गांधी की 150वीं जन्मशती मनायी है. वे 1888 में कानून के एक छात्र के रूप में इंग्लैंड में सूट पहनते थे, लेकिन भारत में उन्होंने एक-एक कर सभी वस्त्र त्याग दिये और सिर्फ धोती में दिखे. वर्ष 1917 में गांधी जी जब चंपारण पहुंचे, तब वे काठियावाड़ी पोशाक पहने हुए थे. जब उन्होंने सुना कि नील फैक्ट्रियों के मालिक निम्न वर्ग की औरतों और मर्दों को जूते नहीं पहनने देते हैं, तो उन्होंने तुरंत जूते पहनना बंद कर दिया.

दूसरी यात्रा में एक निर्धन महिला को अपना चोगा सौंप दिया था और इसके बाद उन्होंने चोगा ओढ़ना बंद कर दिया. जब वे 1918 में अहमदाबाद में मजदूरों की लड़ाई में शामिल हुए, तो उन्होंने देखा कि उनकी पगड़ी में जितना कपड़ा लगता है, उसमें चार लोगों का तन ढका जा सकता है. उसके बाद उन्होंने पगड़ी पहनना छोड़ दिया था. आजादी की लड़ाई के दौर में नेताओं की पहली पसंद धोती-कुर्ता और गांधी टोपी थी और महिलाएं साड़ी पहनती थीं.

बाद में धोती-कुर्ता की जगह पायजामा-कुर्ता ने ले ली, लेकिन महिला नेताओं की पसंद साड़ी बनी रही. अगली पीढ़ी में गांधी टोपी का चलन धीरे-धीरे कम होने लगा. फिलहाल आप, सपा और कांग्रेस सेवा दल जैसे खास दलों व संगठनों को छोड़ कर अन्य दलों के कुछेक नेता ही टोपी पहनते हैं. पिछले पांच-सात साल में पहनावे का ट्रेंड बदला है. राजनीति की नयी पीढ़ी की पसंद अब पैंट-शर्ट या सूट-बूट हो गया है, लेकिन अधिकतर महिला नेताओं की पसंद आज भी साड़ी है.

हम देश-काल और परिस्थितियों के अनुसार पहनावे के बारे में निर्णय लें, तो बेहतर होगा. हम आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव मना रहे हैं. ऐसे में ऐसी घटनाएं चिंता जगाती हैं कि हम अभी तक औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त क्यों नहीं हो पाये हैं. इस पर व्यापक विमर्श की जरूरत है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें