15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

बजट आमजन की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं

Advertisement

कोविड काल में जब स्वास्थ्य का सबसे गंभीर संकट था, तो स्वास्थ्य का खर्च जीडीपी के 1.5% को भी पार नहीं कर पाया, जबकि इस संकट के पहले से ही कहा जा रहा था कि स्वास्थ्य का बजट जीडीपी का कम से कम चार प्रतिशत होना चाहिए.

Audio Book

ऑडियो सुनें

यह बजट उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता. पहला, बजट के जितने बड़े आकार की अपेक्षा थी, उतना बड़ा नहीं है. करीब दो लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय की बात की गयी है. यह तभी संभव है जब आपने कहीं पर कटौती की होगी. संभव है कि किसी सब्सिडी में कमी की गयी हो. दूसरा, हम कोविड काल की चुनौती से निकल रहे हैं और निम्न वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग इससे सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं.

- Advertisement -

अपेक्षा थी कि इस वर्ग और असंगठित क्षेत्र के लिए बजट कुछ प्रावधान करेगा. लेकिन, इस समूह को नकार दिया गया है. तीसरा, बड़े बदलाव की उम्मीद थी, जिससे विकास की एक दिशा स्पष्ट होगी, जो रोजगार पैदा करनेवाले विकास पर आधारित होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बीते 50 वर्षों से विकास के सापेक्ष पर्याप्त रोजगार के मौके नहीं बने.

आज जब एक प्रतिशत की वृद्धि होती है, तो रोजगार पैदा होने की दर 0.01 प्रतिशत से भी कम होती है, यानी विकास और रोजगार पैदा होने की दर के बीच कोई संतुलन नहीं है. हमें ऐसे आर्थिक विकास की जरूरत है, जो 140 करोड़ देशवासियों के लिए हो.

जब 25 साल के खाके यानी ब्लूप्रिंट की बात हो रही है, तो उसमें दूसरी पीढ़ी का सुधार नहीं दिख रहा है. दूसरे दौर के सुधार में ग्रामीण विकास, कृषि, ग्रामीण उद्योग, सूक्ष्म एवं लघु उद्योग, मानव विकास, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए जगह नहीं होना चिंताजनक है. शिक्षा और स्वास्थ्य पर आवंटन नहीं बढ़ा और न ही कोई ब्लूप्रिंट दिखा. हर साल जेब से लाखों-करोड़ों रुपये खर्चने पड़ते हैं.

आम आदमी अपनी जमीन-जायदाद बेचकर या कर्ज लेकर स्वास्थ्य पर खर्च करता है. यही खर्च लोगों को गरीबी में धकेल देता है. इससे वर्षों की बचत खत्म हो जाती है. वर्ष 2008 से 2019 के बीच 37 प्रतिशत निवेश में से 33.5 प्रतिशत घरेलू बचत से आता था. आज वह 29.5 प्रतिशत पर आ गया है. यह निवेश तभी बढ़ेगा, जब आप घरेलू बचत को बढ़ावा दें.

इस वर्ष कुल 9.2 प्रतिशत की वृद्धि दर में 3.7 प्रतिशत विकास दर कृषि क्षेत्र की है. इसमें दो वर्षों को हटा दें, तो यह किसी साल एक प्रतिशत है, तो किसी साल दो प्रतिशत है. देश एक संरचनात्मक बदलाव से गुजर रहा है. जहां कृषि आपके विकास का हिस्सा नहीं बन रहा है. अगर कृषि विकास का हिस्सा नहीं बनेगा, तो मौजूदा विकास दर ज्यादा टिकाऊ नहीं हो पायेगी.

इस समस्या पर कई वर्षों से ध्यान ही नहीं दिया गया. यह बजट भी पुरानी व्यवस्था को ही दोहरा रहा है. कोविड और उससे पहले नोटबंदी आदि से असंगठित क्षेत्र त्रस्त हो गया है. निम्न मध्यम वर्ग के लोगों की या तो नौकरी चली गयी, या आमदनी कम हो गयी. इन्हें समर्थन की जरूरत थी, लेकिन बजट में प्राथमिकता उच्च आय वर्ग को दी गयी. दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर जो सरचार्ज था, उसे कम कर दिया गया.

उच्च वर्ग को तब प्राथमिकता दी गयी है, जब ऑक्सफैम की रिपोर्ट कहती है कि कोविड काल में सरकार की तरफ से जो भी प्रयास हुए, वह कुछ कॉरपोरेट परिवारों तक सिमट गये. यह बजट उन्हीं को मदद करने की कोशिश कर रहा है. आम आदमी और रोजगार सृजन के लिए जो संभावनाएं थीं, वह मौका हमने छोड़ दिया है.

जब आप 25 वर्षों का लक्ष्य तय करते हैं, तो आधे-अधूरे प्रयासों से सकारात्मक पक्ष भी नकारात्मक हो जायेगा. हम समाज और आर्थिकी में एक असमानता तथा असंतुलन को देख रहे हैं. गरीब और गरीब हो रहा है, अमीर और अमीर. डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर उसी असमानता की खाई को और चौड़ा कर देगा. विकास की कोई भी पहल देश की 140 करोड़ की आबादी को ध्यान में रखकर होनी चाहिए.

कारोबारी माहौल को बेहतर करने की बात केवल बड़े बिजनेस घरानों तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए. असंगठित क्षेत्र अकेले शहरी क्षेत्रों में ही 64 प्रतिशत से अधिक रोजगार पैदा करता है. करीब 90 प्रतिशत आउटपुट जनरेट करता है, वह इज ऑफ डूइंग बिजनेस का हिस्सा नहीं है. इसी तरह ग्रामीण क्षेत्र में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र या कुटीर उद्योग बड़े पैमाने पर रोजगार के माध्यम हैं. ये इज ऑफ डूइंग बिजनेस का हिस्सा नहीं हैं. ये सभी क्षेत्र बजट में अछूते रह गये हैं.

अनेक प्रकार की क्रेडिट स्कीम लायी गयीं. कोविड काल में राहत पैकेज क्रेडिट का पैकेज था. लेकिन, जब अर्थव्यवस्था सिकुड़ना शुरू होती है, तो क्रेडिट लेने की क्षमता कहां रह जाती है. प्रस्तावित 25 साल के खाके में आम आदमी, सूक्ष्म और लघु उद्योगों की भागीदारी कैसे होगी, वह स्पष्ट नहीं है. दो चीजों के लिए बजट महत्वपूर्ण होता है, एक नीतिगत ढांचे के लिए, दूसरा खर्च के लिए. नीतिगत ढांचे में असंगठित क्षेत्र, कृषि, एमएसएमई को छोड़ दिया गया है, जब खर्च की बात कर रहे हैं तो जितनी उसकी अपेक्षा थी, उतना बड़ा नहीं रही.

पूंजीगत व्यय बढ़ाने के लिए जो कटौती की जायेगी, कहीं वह सब्सिडी आदि पर असर डालेगी. यह कटौती एमएसएमई सेक्टर, कृषि, उन परिवारों को जिनकी आमदनी कम हो गयी है या नौकरी चली गयी है, उन पर कहीं न कहीं असर डालेगी. कोविड काल में जब स्वास्थ्य का सबसे गंभीर संकट था,

तो स्वास्थ्य का खर्च जीडीपी के 1.5 प्रतिशत को भी पार नहीं कर पाया, जबकि इस संकट के पहले से ही कहा जा रहा था कि स्वास्थ्य का बजट जीडीपी का कम से कम चार प्रतिशत होना चाहिए. इसी तरह शिक्षा के लिए खर्च बढ़ाने की बात कही जाती रही है. इस कोविड काल में इन दोनों पर खर्च बढ़ता हुआ नहीं दिखा. (बातचीत पर आधारित).

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें