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कनाडा पर अमेरिका की दोहरी चाल

अमेरिकी समीक्षक मानते हैं कि इस सदी में अमेरिका के लिए भारत का वैसा ही रणनीतिक महत्व है जैसा पिछली सदी में चीन का था. लेकिन राष्ट्रपति बाइडन से लेकर विदेश मंत्री ब्लिंकन और सुरक्षा सलाहकार जैक सुलेवन तक, हर अमेरिकी नेता भारत को जांच में कनाडा का सहयोग करने की नसीहत देता आ रहा है.

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खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत पर उंगली उठाने के कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के दुस्साहस पर भारत ही नहीं उसके बहुत से मित्र देश भी दंग हैं. परंतु उससे भी बड़ी हैरानी इस सारे प्रकरण पर अमेरिका की प्रतिक्रिया और भूमिका को लेकर हो रही है. अब यह बात खुल चुकी है कि जिन कथित विश्वसनीय आरोपों के दम पर कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत पर आरोप लगाया, उनका मुख्य स्रोत अमेरिका द्वारा साझा की गयी खुफिया जानकारी थी. अमेरिका, फाइव आई नाम के खुफिया संघ का सबसे शक्तिशाली सदस्य है, जिसमें कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं. अमेरिका स्थित कुछ सिख लोगों ने बताया है कि निज्जर की हत्या के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने उन्हें सतर्क रहने की चेतावनी दी थी. इसलिए संभव है अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने कूटनयिकों या दूतावास से जुड़े लोगों की बातचीत सुनी हो और उसे कनाडा के साथ साझा किया हो. परंतु उन्हें सार्वजनिक करने में हो रही देरी से लग रहा है कि कनाडा के पास जो भी सबूत हैं, वे निर्णायक नहीं हैं.

यहां सवाल यह नहीं है कि अमेरिकी एजेंसियां भारतीय दूतावासों की जासूसी क्यों कर रही थीं. हर देश एक दूसरे के दूतावासों की गतिविधियों पर नजर रखता है. शत्रु हो या मित्र. सवाल यह है कि यदि अमेरिका भारत को अहम रणनीतिक मित्र मानता है तो क्या उसे भारत को आगाह नहीं करना चाहिए था? कनाडा अमेरिका का संधि मित्र है, पर भारत उसकी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का संतुलन तैयार करने की उसकी रणनीति की धुरी है. अमेरिकी समीक्षक मानते हैं कि इस सदी में अमेरिका के लिए भारत का वैसा ही रणनीतिक महत्व है जैसा पिछली सदी में चीन का था. लेकिन राष्ट्रपति बाइडन से लेकर विदेश मंत्री ब्लिंकन और सुरक्षा सलाहकार जैक सुलेवन तक, हर अमेरिकी नेता भारत को जांच में कनाडा का सहयोग करने की नसीहत देता आ रहा है. मगर कनाडा को कोई नहीं कह रहा कि उसे कूटनीति की मर्यादा को ताक पर रखकर बयानबाजी और मित्र देश की छवि खराब करने से बचना चाहिए था.

ट्रूडो को अब दिखायी दिया है कि भारत एक बलवान होती हुई अर्थशक्ति है जिसकी भू-राजनीति में अहम भूमिका है. अपने एक हालिया बयान में उन्होंने कहा है कि कनाडा और उसके मित्र देशों के लिए जरूरी है कि भारत के साथ रचनात्मक और गंभीर विमर्श जारी रखें. यदि सच में ऐसा है तो उन्हें संसद में भारत की टोपी उछालने से पहले भारत से खुलकर बात करनी चाहिए थी. दूसरा और उतना ही अहम सवाल यह है कि भारत, कनाडा और अमेरिका के कूटनयिक क्या कर रहे थे? क्या उन्हें समय रहते अपनी सरकारों को सचेत नहीं करना चाहिए था? भारत के कूटनयिकों को इस बात की भनक होनी चाहिए थी कि ट्रूडो ऐसा तमाशा कर सकते हैं. कनाडा के कूटनयिकों को भी भारत की कड़ी प्रतिक्रिया का अंदाजा होना चाहिए था, जिससे ट्रूडो बोलने से पहले सोचते.

पिछले कुछ महीनों से कनाडा में वैंकूवर और टोरंटो के आस-पास, अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को, और ब्रिटेन में लंदन, बर्मिंघम, लीड्स और ग्लासगो के आस-पास के कुछ गुरुद्वारों में भारत विरोधी गतिविधियां तेज हुई हैं. इन्हें कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन की तरह हल्के में लेना, और चंद असंतुष्ट गुटों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ठहराकर टालना भारत के हित में नहीं है. कल को यदि इराक, पाकिस्तान या फिर तुर्की जैसे देश, जिहादी गुटों को अमेरिका और कनाडा के राजनयिकों की तस्वीरें मस्जिदों पर लगा कर उनकी हत्या के लिए उकसाने लगें, तो क्या तब भी उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मान छोड़ दिया जाएगा? यह सही है कि इस समय पंजाब में खालिस्तान की मांग का कोई समर्थन नहीं है. फिर भी सोशल मीडिया के इस युग में मुख्य रूप से कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के कुछ गुरुद्वारों में सिखों पर हुए और हो रहे दमन के मिथ्या प्रचार और खालिस्तान पर जनमत-संग्रहों के आयोजनों से निकली कोई भी चिंगारी आग भड़का सकती है.

इसकी हालिया मिसाल खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह का आकस्मिक उदय थी, जिसे लंदन के भारतीय उच्चायोग का ध्वज उतारने वाले अवतार सिंह खांडा ने तैयार कर पंजाब भेजा था. पश्चिमी देशों के गुरुद्वारों में इस समय खालिस्तान कमांडो फोर्स, खालिस्तान टाइगर फोर्स, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन, खालिस्तान लिबरेशन फोर्स और बब्बर खालसा जैसे कई अलगाववादी संगठन सक्रिय हैं. इन्हें माफिया गिरोहों और पाकिस्तान से ड्रग्स तस्करी, मानव तस्करी, फिरौती और हवाला के जरिए पैसा और हथियार मिलते हैं. पंजाब में सक्रिय लॉरेंस बिश्नोई और बंबीहा गैंग जैसे माफिया गिरोह इनके लिए पैसा जुटाते हैं और हत्याएं करते हैं. जाली पासपोर्ट और वीजा पर कनाडा भेजने और वहां खालिस्तानी कार्यकर्ता बनाने का धंधा भी चल रहा है. भारत का कहना है कि पंजाब में सिद्धू मूसेवाला, बाबा भनियारा और मनोहर लाल की हत्याओं और कनाडा में रिपुदमन सिंह मलिक और सुखदूल सिंह की हत्याओं की तरह हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भी माफिया गिरोह या पाकिस्तान का हाथ हो सकता है. निज्जर ने ननकाना साहब की यात्रा के बहाने 10 साल पहले पाकिस्तान की यात्रा की थी. उसकी बंदूकधारी तस्वीर से संकेत मिलता है कि उसने तब हथियारों का प्रशिक्षण भी लिया होगा.

भारत का कहना है कि वह कनाडा को आतंक, माफिया और तस्करी में लगे संगठनों और व्यक्तियों की जानकारी कई बार दे चुका है और प्रत्यर्पण की मांगें भी करता रहा है. लेकिन कनाडा ने कभी ध्यान नहीं दिया. उसने 1985 के कनिष्क विस्फोट कांड के मुख्य संदिग्धों पर भी कोई कार्रवाई नहीं की, जो कनाडा के इतिहास की सबसे बड़ी आतंकी घटना थी. विदेश मंत्री जयशंकर ने बताया कि उन्होंने ये सारी बातें अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन को भी बता दी हैं. देखना यह है कि अमेरिका आगे क्या करता है. इस बीच ट्रूडो के बयान ने सिख अलगाववाद की आग में घी का काम किया है. पिछले सप्ताह कुछ खालिस्तान समर्थकों ने ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी को ग्लासगो के प्रधान गुरुद्वारे में जाने से रोक दिया जबकि वह गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के निमंत्रण पर गये थे. गुरुद्वारे ने घटना की निंदा की है. परंतु कनाडा और ब्रिटेन में अब कुछ गुरुद्वारों की स्थिति ऐसी हो गयी है, कि वहां पाकिस्तानी अधिकारियों का तो बांहें खोलकर स्वागत किया जाता है, लेकिन भारतीय अधिकारियों को रोकने की कोशिशें होती हैं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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