17.1 C
Ranchi
Thursday, February 13, 2025 | 10:28 pm
17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

वाजपेयी के प्रिय थे अली सरदार जाफरी

Advertisement

वाजपेयी चाहते थे कि जाफरी भी शिष्टमंडल का हिस्सा बनें. उन्हीं दिनों ‘सरहद’ नाम से जाफरी का आखिरी संग्रह प्रकाशित हुआ था. वाजपेयी का अरमान था कि जाफरी उनकी यात्रा में शामिल हों

Audio Book

ऑडियो सुनें

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर स्थित अली सरदार जाफरी की जन्मभूमि में अब उनकी याद दिलाने वाली कोई निशानी बाकी नहीं है. वह घर भी सलामत नहीं रह गया है, जिसमें वे पैदा हुए थे. विडंबना यह है कि बलरामपुर के निवासियों को यह कचोटता भी नहीं है. इसकी बात चले, तो वे उलटे जाफरी पर ही तोहमत लगाते हैं कि कस्बा छोड़ने के बाद उन्होंने ही पलटकर नहीं देखा, लेकिन कस्बे की गलियों में बड़े-बुजुर्गों से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और जाफरी की नजदीकियों की चर्चा अब भी सुनने को मिल जाती है.

लोग बताते हैं कि वाजपेयी आजादी के शुरुआती दशकों से ही जाफरी के प्रशंसक थे. तब भी, जब अनेक महानुभाव जाफरी के विचारों को लेकर उन्हें खासी तीखी निगाहों से देखा करते और उनकी आलोचना करते हुए कहते थे कि उन्होंने कम्युनिस्टों के खेमे में जाकर अपने परिवार की उस प्रतिष्ठा को नष्ट कर डाला है, जो उसने धार्मिक परंपराओं के प्रति अपने समर्पण से अर्जित की थी. जाफरी ने परिवार की इस परंपरा के दबाव में अपने सृजन की शुरुआत मर्सियों से की थी, लेकिन बाद में उनका रास्ता अलग हो गया.

दिल्ली के एंग्लो-एरेबिक कॉलेज से बीए और लखनऊ विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद वे मुंबई पहुंचे, तो कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य बन गये. आजादी की लड़ाई में भाग लेने के बाद स्वतंत्र भारत में भी उन्होंने अपनी सामाजिक सक्रियताओं में कमी नहीं आने दी. समीक्षकों के अनुसार, उनका अनवरत संघर्ष उनकी शायरी में यों मुखरित हुआ है कि उनकी रोमांटिक रचनाओं में भी संघर्षशीलता की भावना रची-बसी दिखती है. बहरहाल, वाजपेयी और जाफरी की हार्दिकता में बड़ा उछाल तब आया, जब अटल ने उनकी जन्मभूमि को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया.

उन्होंने बलरामपुर से तीन लोकसभा चुनाव लड़ा था. वे तब भारतीय जनसंघ के नेता थे, जो ‘अखंड भारत’ का पैरोकार था और जाफरी अपनी शायरी में बंटवारे को लानतें भेजने में बहुत हद तक भावुक थे. यही वह बात थी, जो अलग-अलग विचारधाराओं के बावजूद वाजपेयी और जाफरी को बांधती थी.

बाद के दिनों में बड़े राजनेता और प्रधानमंत्री बनने के बावजूद अटल ने वैचारिक मतभेदों को नजदीकियों के रास्ते की रिसन नहीं बनने दिया, शायरी में जाफरी की वामपंथी पहचान के बावजूद. देश ने इन दोनों शख्सियतों की नजदीकी की एक मिसाल तब भी देखी, जब अटल ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए फरवरी, 1999 में प्रधानमंत्री के तौर पर लेखकों, कवियों व कलाकारों के साथ बस में लाहौर यात्रा का निश्चय किया.

पाकिस्तान ने उस यात्रा के बाद कारगिल युद्ध के रास्ते दुश्मनी न ठानी होती, तो आज दोनों देशों के संबंध कुछ और ही होते. वाजपेयी चाहते थे कि जाफरी भी उनके शिष्टमंडल का हिस्सा बनें. उन्हीं दिनों ‘सरहद’ नाम से जाफरी का आखिरी संग्रह प्रकाशित हुआ था. वाजपेयी का अरमान था कि जाफरी उनकी यात्रा में शामिल हों और अपना पैगाम सरहद के उस पार पहुंचायें. लेकिन जाफरी की शारीरिक असमर्थताएं उन पर इस कदर हावी हो चुकी थीं कि उनके लिए यह यात्रा करना संभव नहीं था.

इसके बावजूद उन्होंने अटल के निमंत्रण का मान रखा था, दस आडियो कैसेटों में ‘सरहद’ की सारी रचनाएं उन्हें भेजीं और इसरार किया कि अमन और मुहब्बत का यह संदेश पाकिस्तान के शायरों को इस आग्रह के साथ पहुंचा दें कि वे उसे पाकिस्तानी अवाम तक पहुंचायें.

उन कैसेटों में उनका खास जोर इस रचना पर था: गुफ्तगू बंद न हो/बात से बात चले/सुब्ह तक शाम-ए-मुलाकात चले/हम पे हंसती हुई ये तारों भरी रात चले/हों जो अल्फाज के हाथों में हैं संग-ए-दुश्नाम/तंज छलकाये तो छलकाया करे जहर के जाम/तीखी नजरें हों तुर्श अबरू-ए-खमदार रहें/बन पड़े जैसे भी दिल सीनों में बेदार रहें/बेबसी हर्फ को जंजीर-ब-पा कर न सके/कोई कातिल हो मगर कत्ल-ए-नवा कर न सके/सुब्ह तक ढल के कोई हर्फ-ए-वफा आयेगा/इश्क आयेगा ब-सद लग्जिश-ए-पा आयेगा/

नजरें झुक जायेंगी दिल धड़केंगे लब कांपेंगे/खामुशी बोसा-ए-लब बन के महक जायेगी/सिर्फ गुंचों के चटकने की सदा आयेगी/और फिर हर्फ-ओ-नवा की न जरूरत होगी/चश्म ओ अबरू के इशारों में मोहब्बत होगी/नफरत उठ जायेगी मेहमान मुरव्वत होगी/हाथ में हाथ लिए सारा जहां साथ लिये/तोहफा-ए-दर्द लिए प्यार की सौगात लिये/रेगजारों से अदावत के गुजर जायेंगे/खूं के दरियाओं से हम पार उतर जायेंगे…

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें