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जुए की लत लगाते ऑनलाइन गेम्स

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आज हमारे युवा प्रसिद्ध खिलाड़ियों द्वारा सुझाये ऑनलाइन गेम्स में डूबते जा रहे हैं. देश में इंटरनेट और मोबाइल के विस्तार के कारण ‘मनी गेमिंग’ उद्योग का खासा विस्तार हुआ है. माना जा रहा है कि 2025 तक इस उद्योग का व्यवसाय पांच अरब डालर से अधिक हो जायेगा.

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डॉ अश्विनी महाजन
ashwanimahajan@rediffmail.com

पिछले कुछ समय से आपने कुछ ऐसे एप्स के विज्ञापन देखे होंगे, जिसमें प्रसिद्ध खिलाड़ी ऑनलाइन गेम्स के विज्ञापन करते दिखाई देते हैं. साथ ही, उसी विज्ञापन में तेज-तेज गति से चेतावनी भी दी जाती है कि इन्हें संभलकर खेलें, इनकी लत लग सकती है. वास्तव में आज हमारे युवा इन हस्तियों द्वारा सुझाये ऑनलाइन गेम्स में डूबते जा रहे हैं. बीते कुछ समय से देश में इंटरनेट और मोबाइल के विस्तार के कारण इस ‘मनी गेमिंग’ उद्योग का खासा विस्तार हुआ है. माना जा रहा है कि 2025 तक इस उद्योग का व्यवसाय पांच अरब डालर से अधिक हो जायेगा. विभिन्न प्रकार के ऑनलाइन और एप्स आधारित गेम्स, जिनमें आभासी खेल यानी फैंटेसी स्पोर्ट, रम्मी, लूडो, शेयर ट्रेडिंग संबंधित गेम्स, क्रिप्टो-आधारित गेम्स आदि होते हैं, जो रियल मनी गेम्स कहलाते हैं, पैसे और इनाम के लिए खेले जाते हैं. ये खेल कौशल (स्किल) आधारित भी होते हैं और संयोग (चांस) आधारित भी.

जब से इन गेम्स का प्रादुर्भाव हुआ है, युवाओं द्वारा कर्ज में फंस कर जान गंवाने के कई मामले सामने आये हैं. इन गेम्स में जीतने की संभावना बहुत कम होती है, कुछ मामलों में तो इन एप्स के कारण जुए की लत के चलते युवाओं द्वारा भारी कर्ज उठाने के कारण परिवार भी बर्बाद हुए हैं. वर्ष 2020 में ड्रीम-11 नामक एप कंपनी ने 222 करोड़ देकर आइपीएल क्रिकेट के प्रायोजक के अधिकार खरीद लिये थे. इसके बाद ड्रीम-11 एप प्रसिद्धि हो गया. अन्य काल्पनिक क्रिकेट गेम की अन्य एप्स ने भी आइपीएल में विज्ञापन अधिकार खरीदे. ये सभी एप्स बड़ी-बड़ी क्रिकेट हस्तियों द्वारा प्रोत्साहित की जा रही हैं, जिनमें एमएस धौनी, रोहित शर्मा, ऋषभ पंत, हार्दिक पांड्या सहित कई खिलाड़ी शामिल हैं. रिपोर्ट बताती हैं कि इन एप्स के माध्यम से जुए की लत के कारण आत्महत्या करने वाले अधिकतर युवा 19 से 25 वर्ष के हैं, जिनमें विद्यार्थी, प्रवासी मजदूर और व्यापारी शामिल हैं.

विभिन्न न्यायालयों ने भी इन काल्पनिक खेलों को यह कह कर सही ठहराया है कि यह जुआ नहीं, बल्कि कौशल का खेल है. तो भी विषय की गंभीरता को समझते हुए छह राज्य सरकारों ने अभी तक काल्पनिक क्रिकेट प्लेटफार्मों को प्रतिबंधित किया है या अनुमति नहीं दी है. इस कड़ी में अंतिम राज्य आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने तो इस प्रकार की 132 एप्स को प्रतिबंधित करने के लिए निवेदन किया है.

कुछ अध्ययन यह मानते हैं कि इस काल्पनिक क्रिकेट खेल में जीतने के लिए कुछ भी संयोग नहीं है, इसलिए यह जुआ नहीं है, लेकिन कुछ खेल मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि काल्पनिक क्रिकेट जुआ ही है और इसके कारण जुए के व्यवहार का रोग लग सकता है. इस ‘उद्योग’ से जुड़े लोगों का तर्क यह है कि लत पड़ने का कोई कारण भी नहीं है और इसमें टिकट का औसत मूल्य 35 रुपये ही है, इसलिए इससे एक व्यक्ति अपने जीवन काल में 10 हजार से ज्यादा नुकसान नहीं कर पायेगा, लेकिन इन ‘खेलों’ में हार कर लाखों रुपये के कर्जे के कारण आत्महत्या करने वालों के बारे में जानकारी से यह बात असत्य सिद्ध हो जाती है. इसलिए इस विषय में इन आभासी खेल कंपनियों के दावों की अधिक जांच की जरूरत है. अभी यह ‘उद्योग’ किन्हीं नियामक कानूनों के तहत न होकर ‘स्व-नियामक’ यानी सेल्फ रेगुलेटेड ही है. इसलिए इस उद्योग से जानकारी लेने की बजाय इन एप्स के बारे में सघन जांच से ही सत्यता पता चल सकती है, पर यह भी सच है कि लोग इन आभासी खेलों के कारण बहुत पैसा खो रहे हैं.

नव उदारवादी आर्थिक सिद्धांतों में जोखिम लेना महत्वपूर्ण कहा जाता है. नव उदारवादी नीतियों के युग में कई वित्तीय उपकरण का प्रवेश हो चुका है और सट्टेबाजी अर्थव्यवस्थाओं का अभिन्न अंग बन चुका है. हालांकि शेयर बाजार, वस्तु बाजार और विदेशी विनिमय बाजारों में सट्टेबाजी के कई दुष्परिणाम भी हैं, लेकिन उन्हें वैधानिक अनुमति मिली हुई है. सट्टेबाजी के आम जन-जीवन में प्रवेश के कारण आभासी खेलों के चलन को भी सामान्य स्वीकार्यता मिल गयी, पर जहां सट्टेबाजी में भी कुछ संयोग का अंश होता है, लेकिन आभासी खेलों में तकनीकी रूप से तो यह तर्क दिया जा सकता है कि यह संयोग का खेल नहीं है, लेकिन वास्तविकता यह है कि खिलाड़ी समझ-बूझ कर इस खेल में प्रवेश नहीं करते और कौशल से ज्यादा संयोग पर ही निर्भर करते हैं. हो सकता है कि कुछ खिलाड़ी जीतें और कुछ हारें, पर इन खेलों की एप्स कंपनियां लगातार जीत रही हैं और भारी लाभ कमा रही हैं. यही कारण है कि वे बीसीसीआइ सरीखे क्रिकेट आयोजकों को भारी शुल्क देकर प्रायोजक अधिकार खरीद रही हैं.

समझना होगा कि उनका लाभ उन गरीब विद्यार्थियों, मजदूरों, किसानों और आम आदमी की कीमत पर है, जो इन खेलों में अपना सब कुछ लुटा देते हैं. न्यायालयों को अभी यह तय करना बाकी है कि क्या वास्तविक पैसे का दांव लगाने वाले कथित कौशल आधारित गेम्स जुआ हैं. यदि संयोग का अंश रहता है, तो देश के कानून के अनुसार वह वैधानिक नहीं हो सकता. कई एप्स में कौशल आधारित खेलों की आड़ में विशुद्ध जुआ चल रहा है. इन एप्स ने बड़ी मात्रा में विदेशी निवेशकों से निवेश लिया हुआ है और उनका एकमात्र उद्देश्य लोगों को जुए की लत लगाना है. इन एप्स का डिजाइन ही लत लगाने वाला है. यही नहीं, कई कथित कौशल आधारित गेम्स के सॉफ्टवेयर के साथ छेड़छाड़ कर ग्राहकों को बेवकूफ बना कर उन्हें लूटा भी जा रहा है.

न्यायालयों और प्रशासनिक निकायों के पास इस बारे में जानकारी है, जो ग्राहकों के पास नहीं है. भारतीय विधि आयोग की 276वीं रपट ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट तक ने यह टिप्पणी दी है कि इन कौशल आधारित गेम्स के नतीजों को मशीनी छेड़छाड़ से प्रभावित किया जा सकता है.

ऐसे में भारत सरकार और संबंधित मंत्रालय हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठ सकते. युवाओं को जुए में धकेलते एप्स को प्रतिबंधित करने की जरूरत है. जब तक यह प्रक्रिया पूर्ण हो, इनके विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत होगी. इस मामले में वित्त, उपभोक्ता मामलों, इलेक्ट्रॉनिक, टेलीकॉम एवं आइटी तथा गृह मंत्रालय को सम्मिलित रूप से निर्णय लेना होगा और विद्यार्थियों, युवाओं, मजदूरों और आम जन को जुए की लत लगाने वाले इन एप्स से मुक्ति दिलानी होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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