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अर्थव्यवस्था की तेज होती रफ्तार

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मैनुफैक्चरिंग में वृद्धि भारत सरकार की ‘आत्मनिर्भर भारत’ की नीति की सफलता की ओर इंगित करती है. बड़ी संख्या में नयी उत्पादन इकाइयां हर क्षेत्र में स्थापित हो रही हैं. इनमें इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलीकॉम, मशीनरी, सोलर, प्रतिरक्षा, केमिकल, खिलौने, वस्त्र सहित विभिन्न प्रकार के उत्पाद शामिल हैं.

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भारत सरकार के सांख्यिकी विभाग द्वारा 30 नवंबर 2023 को जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) के दौरान भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 7.6 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ा, जो 2022-23 की दूसरी छमाही की संवृद्धि दर 6.2 प्रतिशत से कहीं ज्यादा रही. गौरतलब है कि इस तिमाही में भारत की चालू कीमतों पर जीडीपी 71.66 लाख करोड़ रुपये रही. इसका मतलब यह है कि भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय इस तिमाही में 2.01 लाख रुपये तक पहुंच चुकी है. सितंबर माह में डॉलर की औसत बाजार कीमत 82.5 रुपये प्रति डॉलर के हिसाब से आज भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 2,436 डॉलर प्रति वर्ष है. यदि जीडीपी की अर्द्ध-वार्षिक वृद्धि के आंकड़े देखें, तो 2023-24 में मार्च से सितंबर की अवधि में जीडीपी वर्ष 2022-23 के पूर्वार्द्ध की तुलना में वृद्धि दर 7.7 प्रतिशत दर्ज की गयी. यदि जीडीपी बढ़ोतरी की यह रफ्तार बरकरार रहती है, तो जनसंख्या की अनुमानित वृद्धि के साथ सितंबर 2030 तक भारत की प्रति व्यक्ति आय 3,600 डॉलर प्रति वर्ष तक पहुंच सकती है. गौरतलब है कि वर्ष 2014 में प्रति व्यक्ति आय मात्र 1,500 डॉलर प्रति वर्ष ही थी.

भारत में जीडीपी की संवृद्धि में हालांकि सभी क्षेत्रों का योगदान रहा है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इस तिमाही की मूल्य संवृद्धि में सबसे बड़ा हिस्सा मैनुफैक्चरिंग का रहा है. यह हिस्सा 13.9 प्रतिशत है. वृद्धि की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र कंस्ट्रक्शन का रहा है, जहां 13.3 प्रतिशत की दर से संवृद्धि देखी गयी है. तीसरा मुख्य क्षेत्र बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगी सेवाओं का रहा है, जहां 10.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि दर्ज की गयी है. उसके बाद खनन का स्थान है, जहां 10 प्रतिशत की दर से संवृद्धि दर्ज की गयी. देखा जाए, तो सेवा क्षेत्र में बढ़ोतरी बहुत उल्लेखनीय नहीं है. चिंता का विषय है कि इस तिमाही में कृषि क्षेत्र में भी वृद्धि बहुत कम 1.2 प्रतिशत दर्ज की गयी है. ऐसा किसी मौलिक दोष के कारण नहीं हुआ है, बल्कि मानसून की कमी के कारण है. मैनुफैक्चरिंग में वृद्धि भारत सरकार की ‘आत्मनिर्भर भारत’ की नीति की सफलता की ओर इंगित करती है. बड़ी संख्या में नयी उत्पादन इकाइयां हर क्षेत्र में स्थापित हो रही हैं. इनमें इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलीकॉम, मशीनरी, सोलर, प्रतिरक्षा, केमिकल, खिलौने, वस्त्र सहित विभिन्न प्रकार के उत्पाद शामिल हैं. भारत सरकार की उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन की नीति के कारण अब जल्द ही लैपटॉप, सेमीकंडक्टर जैसी वस्तुओं का उत्पादन भी शुरू हो सकता है.

कुछ खास संकेतकों को देखा जाए, तो कोयला, स्टील, सीमेंट, खनन, बिजली उत्पादन इत्यादि में भी खासी संवृद्धि दर दिखाई दे रही है. कोयले के उत्पादन में 16.3 प्रतिशत वृद्धि दर्ज हुई है, सीमेंट उत्पादन में यह बढ़ोतरी 10.2 प्रतिशत है. स्टील उत्पादन में 19.5 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई दे रही है. खनन में भी 11.5 प्रतिशत संवृद्धि एक उल्लेखनीय उपलब्धि है. हवाई यात्रा करने वाले यात्रियों की भी संख्या बढ़ी है और रेलवे के भी यात्रियों के आंकड़े बेहतर संख्या बता रहे हैं. हवाई यात्रियों की संख्या में 22.7 प्रतिशत वृद्धि हुई है. बैंकों में जमा भी 11.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, जबकि बैंकों द्वारा दिये गये ऋणों में 13 प्रतिशत की दर से वृद्धि दर्ज हुई है. सभी आंकड़े देश में बेहतर होते आर्थिक वातावरण की ओर इंगित कर रहे हैं. समझना होगा कि मैनुफैक्चरिंग में वृद्धि का सीधा असर रोजगार पर पड़ता है. इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं सेवा क्षेत्र से कहीं ज्यादा होती हैं.

भारत में जहां आर्थिक संवृद्धि की दर 7.6 प्रतिशत है, चीन में यह मात्र 4.9 प्रतिशत दर्ज की गयी है, जबकि रूस में यह दर 5.5 प्रतिशत और अमेरिका में 5.2 प्रतिशत है. जर्मनी, जो इस समय जीडीपी की दृष्टि से भारत से एक स्थान ऊपर है, वहां जीडीपी में 0.4 प्रतिशत की दर से गिरावट दर्ज की जा रही है. भारत की पिछले छह महीने की जीडीपी 142.33 लाख करोड़ रुपये, यानी 1.736 खरब डॉलर है. यदि जीडीपी में वर्तमान दर से वृद्धि होती है, तो भारत की वार्षिक जीडीपी 3.5 खरब डॉलर पहुंच जायेगी, और जर्मनी की वर्तमान जीडीपी 4.1 खरब डॉलर में यदि अनुमानों के अनुसार 0.4 प्रतिशत की कमी दर्ज होती है, तो भारत की जीडीपी जर्मनी की जीडीपी (4.08 खरब डॉलर) से मात्र 600 अरब डॉलर ही कम रह जायेगी. विकास की वर्तमान दर यदि कायम रहती है, तो भारत ढाई साल से भी कम समय में जर्मनी की जीडीपी से आगे निकल सकता है.

हमारी आर्थिक वृद्धि का अनुभव कुछ खट्टा और कुछ मीठा रहा है. पिछले तीन दशकों की अवधि में जीडीपी बढ़ोतरी के आंकड़े तो उत्साहजनक रहे, लेकिन रोजगार के अवसर बढ़ाने के मोर्चे पर हम पिछड़ते रहे. उसका कारण यह रहा कि हमारी जीडीपी वृद्धि में सेवाओं का योगदान ज्यादा रहा, लेकिन मैनुफैक्चरिंग का योगदान कहीं कम रहा. देखा जाए, तो 1995-96 में जहां जीडीपी में मैनुफैक्चरिंग का योगदान 21.5 प्रतिशत रहा था, वह 2017-18 तक घटकर मात्र 16.5 प्रतिशत ही रह गया. स्वाभाविक रूप से मैनुफैक्चरिंग, जहां रोजगार की संभावनाएं सेवा क्षेत्र से कई गुना ज्यादा होती हैं, का जीडीपी में हिस्सा घटने का असर रोजगार वृद्धि पर भी पड़ा. ऐसे में युवा भारत की जनसांख्यिकी का फायदा मिलने की बजाय देश में युवा जनसंख्या को रोजगार न मिलने के कारण समस्याएं और खतरे बढ़ने लगे. गौरतलब है कि देश में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ती रही. कोविड महामारी के प्रकोप के बाद बेरोजगारी की समस्या पहले से कहीं अधिक विकट हो गयी थी.

लेकिन पिछले कुछ वर्षों में प्राथमिकता के साथ मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को प्रोत्साहित करने के कारण इस क्षेत्र में कुछ वृद्धि दिखाई देने लगी है. हालांकि नयी शृंखला के हिसाब से जीडीपी में मैनुफैक्चरिंग का हिस्सा 2020-21 में 18.3 प्रतिशत से बढ़ता हुआ 2023-24 की दूसरी तिमाही तक सिर्फ 18.7 प्रतिशत तक ही पहुंचा है, लेकिन इस दौरान भारत सरकार के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर जुलाई-सितंबर 2022 में 7.7 प्रतिशत से घटती हुई जुलाई-सितंबर 2023 में 6.6 प्रतिशत ही रह गयी है. कार्मिक जनसंख्या का अनुपात भी शहरी क्षेत्रों में 44.5 प्रतिशत से बढ़ता हुआ 46 प्रतिशत तक पहुंच गया है. शहरों में बढ़ते रोजगार के आंकड़े मैनुफैक्चरिंग में वृद्धि के सुपरिणामों की तरफ संकेत कर रहे हैं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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