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50 साल बाद भी अविस्मरणीय है ‘अभिमान’

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भारतीय सिनेमा के इतिहास में 'अभिमान' एक कालजयी फिल्म बन गयी है. एक ऐसी फिल्म जिसका विषय और कहानी वैश्विक होने के साथ-साथ सदाबहार भी है.

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वर्ष 1980 के दशक में जब मैंने कविवर डॉ हरिवंश राय बच्चन से पूछा था कि उन्हें अमिताभ बच्चन की कौन सी फिल्म सबसे अच्छी लगती है, तो उन्होंने बिना एक पल गंवाये झट से उत्तर दिया ‘अभिमान.’ यह फिल्म अमिताभ और जया बच्चन के दिल के भी बेहद करीब मानी जाती है. वर्ष 1973 की 27 जुलाई को जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई, तब भी इसे फिल्मकारों और दर्शकों ने काफी पसंद किया था. आज भी इस फिल्म को असंख्य सिनेमा प्रेमी भूला नहीं पाये हैं, जबकि आज इसे प्रदर्शित हुए पूरे 50 बरस हो गये हैं.

भारतीय सिनेमा के इतिहास में ‘अभिमान’ एक कालजयी फिल्म बन गयी है. एक ऐसी फिल्म जिसका विषय और कहानी वैश्विक होने के साथ- साथ सदाबहार भी हैं. वर्ष 1937 में जब हॉलीवुड का सिनेमा तेजी से आगे बढ़ रहा था, तब वहां भी इस विषय पर ‘ए स्टार इज बॉर्न’ नाम से फिल्म बनी थी. हॉलीवुड में ही 2018 तक इस फिल्म के तीन और रीमेक बने. दुनिया के कई देश इस विषय पर अपने-अपने ढंग से फिल्में बनाते रहे हैं. भारत में भी ‘अभिमान’ के अलावा, 2014 में तमिल में ‘जथागा नेनुंरजी’ बनी थी.

वर्ष 2013 में बनी ‘आशिकी- 2’ भी ‘अभिमान’ से प्रेरित रही. दिग्गज निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने ‘अभिमान’ की कहानी को लेकर एक बार कहा था, ‘यह गायक किशोर कुमार और उनकी पहली पत्नी रूमा घोष की कहानी से प्रेरित है.’ ‘अभिमान’ की कहानी संगीतज्ञ रविशंकर और उनकी पत्नी अन्नपूर्णा देवी के जीवन से भी मिलती है. फिल्म में कहानी का श्रेय स्वयं ऋषि दा ने लिया है. इसकी पटकथा जाने-माने लेखक और फिल्मकार नबेंदु घोष ने लिखी थी और संवाद दिग्गज राजेंद्र सिंह बेदी ने.

यह फिल्म एक पति के उस अहं को दर्शाती है कि वह अपनी पत्नी से श्रेष्ठ है. नायक की इस पीड़ा को दिखाने के लिए चार बेमिसाल दृश्य फिल्माये गये हैं. ‘अभिमान’ की कहानी में सात मुख्य पात्र हैं- सुबीर कुमार, उमा, चंदर, चित्रा, दुर्गा मौसी, सदानंद और बृजेश्वर लाल. फिल्म में दिखाया गया है कि सुबीर कुमार देश का सबसे लोकप्रिय गायक है. फिल्मों में उसके नाम की तूती बोलती है. उसका दोस्त चंदर मैनेजर बनकर सुबीर की सदा मदद करता है. सुबीर की एक नेक दिल, सुंदर मित्र चित्रा भी है, जो सुबीर से प्रेम करती है.

सुबीर का उस गांव में जाना होता है, जहां उसके अनाथ होने पर मुंह बोली दुर्गा मौसी ने उसे पाला-पोसा था. गांव में जब वह संगीतज्ञ सदानंद की बेटी उमा का गायन सुनता है, तो वह उस पर इस कदर मोहित हो जाता है कि उससे शादी करके ही शहर लौटता है. शादी के रिसेप्शन में जब सुबीर और उमा साथ गाना गाते हैं, तो समारोह में आये संगीत के पारखी बृजेश्वर सहित तमाम लोग उमा की प्रतिभा के कायल हो जाते हैं.

परिस्थिति कुछ इस तरह करवट लेती है कि उमा, सुबीर से ज्यादा लोकप्रिय हो जाती है और सुबीर का करियर ढलान पर आने लगता है. इसी से सुबीर के अभिमान को ऐसी ठेस लगती है कि वह विचलित हो जाता है. नशे में डूबने के साथ वह उमा से दूर होने लगता है. उमा यह देख दुखी मन से अपने गांव लौट आती है. अंत में सुबीर अपने अहं को त्याग उमा को वापस शहर ले आता है. दोनों मिलकर फिर से उसी संगीत की दुनिया में लौट आते हैं.

यह फिल्म अपने अच्छे कथानक के साथ सचिन देव के अविस्मरणीय संगीत और मजरूह के गीतों के लिए भी जानी जाती है. फिल्म के सभी सातों गीत- ‘तेरी बिंदिया रे, लूटे कोई मन का नगर, तेरे-मेरे मिलन की ये रैना, मीत ना मिला रे मन का, नदिया किनारे, पिया बिना और अब तो है तुमसे’- लोकप्रिय रहे थे और आज भी हैं. फिल्म के गीतों को संगीत से सजाने के लिए सचिन दा को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला.

जया भादुड़ी का अभिनय दिल में घर कर लेता है. इसके लिए उन्हें भी फिल्मफेयर मिला था. अमिताभ इस फिल्म से ठीक पहले ‘जंजीर’ में जया के साथ ही अपनी एंग्री यंगमैन की छवि में पहली बार हिट हुए थे. पर इस फिल्म में अमिताभ ने अपनी उस छवि को तोड़ते हुए अपने उत्कृष्ट अभिनेता होने का बेहतरीन प्रमाण दिया. असरानी और बिंदु भी फिल्म में यादगार भूमिकाओं में हैं. दुर्गा खोटे, डेविड और एके हंगल का अभिनय भी प्रशंसनीय है. फिल्म के कई दृश्य तो आंखों को नम कर जाते हैं.

फिल्म की खास बात यह भी है कि 1973 में ही ‘जंजीर’ हिट होने के बाद अमिताभ-जया ने तीन जून को विवाह किया था. विवाह के एक महीने बाद ही प्रदर्शित ‘अभिमान’ ने उन्हें एक नया शिखर दिया. अमिताभ-जया ने यूं तो साथ में कुछ और भी बढ़िया फिल्में की हैं, लेकिन इस जोड़ी की साथ में की गयी फिल्मों में ‘अभिमान’ सबसे अच्छी है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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