सुंदर-सुंदर गांव की बातें

गिरींद्र नाथ झा ब्लॉगर एवं किसान जब भी गांव की बातें होती हैं, तो मन करता है कि उन ग्रामीण इलाकों का जिक्र हो, जिन्हें देख कर मन खुश हो जाये. कुछ लोग गांव की बातें सुन कर मुंह मोड़ लेते हैं, जबकि हर किसी का मूल गांव से जुड़ा होता है. प्रवासी होते जा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 31, 2017 6:15 AM
गिरींद्र नाथ झा
ब्लॉगर एवं किसान
जब भी गांव की बातें होती हैं, तो मन करता है कि उन ग्रामीण इलाकों का जिक्र हो, जिन्हें देख कर मन खुश हो जाये. कुछ लोग गांव की बातें सुन कर मुंह मोड़ लेते हैं, जबकि हर किसी का मूल गांव से जुड़ा होता है. प्रवासी होते जा रहे लोग जब कभी गांव की ओर लौटते हैं, तो उनकी आंखों में ढेरों ख्वाब दिख जाते हैं. ऐसे प्रवासियों के लिए ही सुंदर गांवों की कथा सुनाने की जरूरत है.
हिमाचल प्रदेश का चितकुल गांव और लद्दाख का लामयुरु गांव, इनको जन्नत कहा जाता है. ऐसा ही एक गांव मेघालय का मावलिनोंग है. इस गांव को एशिया का सबसे साफ-सुथरा गांव कहा जाता है.
ग्राम्य जीवन की पुरानी कहानी से आगे बढ़ कर अब उन गांव की ओर बढ़ने की जरूरत है, जहां बदलाव हो रहे हैं. उन गांवों का जिक्र होना चाहिए, जहां कुछ अलग हो रहा है. बदलते गांव की कहानी अब रोचक दिखने लगी है. एक ही जिले में सैंकड़ों गांव होते हैं, लेकिन क्या हम उन गांवों तक पहुंच पाते हैं? यह बड़ा सवाल है. लेकिन, इस तरह के सवालों का हल निकलना चाहिए. इसके लिए हम सभी को यात्री बनना होगा.
हर गांव खुद में खास होता है. उसके भीतर स्थानीय गुण होते हैं. हिमाचल का चितकुल हो या फिर मेघालय का मावलिनोंग, हमें उन गांवों को देखना होगा. बिहार-झारखंड में भी इस तरह के गांव होंगे, बस खोजने की जरूरत है. बिहार में जो सड़क हमें गुजरात से जोड़ देती है, उसी सड़क के समीप एक गांव है- सरिसब पाही. इस गांव का भी जिक्र बड़े कैनवास पर होना चाहिए. व्यक्तिगत तौर पर सरिसब पाही गांव का मतलब मेरे लिए अच्छी मिठाई और कमाल के गप्प के शौकीन लोग हैं. इस गांव में ऐसा बहुत कुछ है, जिसे हर गांव को समझना होगा. गांव में हाइस्कूल व कॉलेज का होना, गांव में बैंक, अस्पताल और पुस्तकालय का होना और सबसे बड़ी बात, इतना सब होते हुए भी गांव की महक को बनाये रखना किसी चुनौती से कम नहीं है. कोसी के उस पार यानी पूर्णिया से इस पार आना मुझे हमेशा सुखद एहसास देता है. यहां की चिकनी मिट्टी की खुशबू हम जैसे लोग ही समझ सकते हैं, जो बलुआही माटी में पले-बढ़े हैं.
रिटायरमेंट के बाद शहर के लोगों का यहां फिर से बस जाना, मेरे जैसे लोगों के लिए ‘मोरल बुस्टिंग टॉनिक’ की तरह है. यही वजह है कि एक किसान के तौर पर जब भी मैं पलायन के संकट से जूझता हूं, तब सरिसब पाही का जिक्र करता हूं. सरिसब पाही जैसे गांव में साहित्य चर्चा के लिए बैठकी करना, इस ‘बाजार युग’ में अजूबे से कम नहीं. साहित्यकी नाम की संस्था इस ग्रामीण इलाके में सक्रिय है. यह संस्था साहित्य विषय पर बैठक आयोजित करती है, किताबें प्रकाशित करती है.
आम के बगीचे से आती महक बताती है कि इस इलाके में कुछ तो ऐसा है कि यह अपनी ओर खींच लेता है. इस गांव के गौरवशाली इतिहास में डूबने के बदले मैं वर्तमान को समझने की कोशिश करता हूं.
गांव में शहरी सुविधा के समाजशास्त्रीय पहलू को समझने की जरूरत है. माइग्रेशन केवल गांव से शहर की तरफ नहीं होता, एक खास आयु वर्ग का शहर से गांव की ओर भी होता है. सरिसब पाही और आस-पास के कई गांवों में हमें यह देखने को मिला. इन बुजुर्ग लोगों की जरूरतों की पूर्ति के लिए गांव का शहर हो जाना अपने आप में खबर है.
इस तरह के ग्रामीण इलाके हम जैसे किसानी कर रहे लोगों के लिए खास होते जा रहे हैं. हम सभी को ऐसे सुंदर-सुंदर गांवों की बातें करनी होगी. अब हमें गांवों को देखने का नजरिया बदलना होगा, क्योंकि ‘शौक-ए-दीदार अगर है तो नजर पैदा कर.’

Next Article

Exit mobile version