26.1 C
Ranchi
Wednesday, February 12, 2025 | 06:48 pm
26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

कास्त्रो की क्रांतिकारिता के मायने

Advertisement

डॉ अनुज लुगुन सहायक प्रोफेसर, दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि, गया इक्कीसवीं सदी के ऐसे मुहाने पर जब कथित लोकतंत्र की चुनावी (मायावी) व्यवस्था को ही बदलाव का अंतिम विकल्प मान लिया गया है, ऐसे में बिरसा मुंडा, भगत सिंह, चे ग्वेरा या फिदेल कास्त्रो की क्रांतिकारिता हमारे लिए क्या कोई मायने रखती है? या, ये […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

डॉ अनुज लुगुन
सहायक प्रोफेसर, दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि, गया
इक्कीसवीं सदी के ऐसे मुहाने पर जब कथित लोकतंत्र की चुनावी (मायावी) व्यवस्था को ही बदलाव का अंतिम विकल्प मान लिया गया है, ऐसे में बिरसा मुंडा, भगत सिंह, चे ग्वेरा या फिदेल कास्त्रो की क्रांतिकारिता हमारे लिए क्या कोई मायने रखती है? या, ये सब केवल अतीत बन कर रह गये हैं, जो म्यूजियम से बाहर अधिक-से-अधिक जयंती पर श्रद्धांजलि देने के लिए ही याद किये जायेंगे? आज का विश्व साम्राज्यवाद और कथित आतंकवाद के जिस मोड़ पर खड़ा है, वहां से आगे चलने की बात सोचनेवालों के मन में जरूर यह सवाल बेचैनी के साथ पैदा होता होगा.
खास तौर पर सोवियत संघ के विघटन के बाद वैश्वीकरण का परचम जिस तेजी के साथ दुनिया के मानचित्र पर फैला, उतनी ही तेजी के साथ मीडिया में ‘इस्लामिक आतंकवाद’ ब्रेकिंग न्यूज का कैप्शन बना दिया गया. सोवियत संघ के विघटन के पहले दुनिया को ‘कम्युनिस्टों’ से खतरा बताया गया था, अब ‘इस्लामिक आतंकवाद’ से खतरा बताया जा रहा है.
दुनिया को अपने इशारों पर नचाने की महत्वाकांक्षा रखनेवाला अमेरिका मनुष्यता के बीच एक ऐसे प्रभु वर्ग के रूप में हमारे सामने है, जो अपने हितों के लिए कुछ भी परिभाषाएं गढ़ सकता है. उसी की करतूतों का परिणाम है कि आज अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया से मनुष्यता का कारुणिक रुदन सुनाई दे रहा है. आज अमेरिका ने अपने नेतृत्व में दुनिया में औपनिवेशिक एवं साम्राज्यवादी शक्तियों को नये सिरे से जन्म दिया है. जब तक हम दो विश्वयुद्ध के बाद कूटनीतिक धरातल पर हुए इन बदलावों को सूक्ष्मता से विश्लेषित नहीं करेंगे, तब तक हम ‘क्रांति’ के महत्व को पूर्ण रूप से समझ नहीं सकेंगे.
बिरसा मुंडा, भगत सिंह, चे ग्वेरा, फिदेल कास्त्रो, इन सब की लड़ाई साम्राज्यवादी शक्तियों के विरुद्ध रही है. आज फिर से दुनिया को साम्राज्यवादी शक्तियां अपनी गिरफ्त में ले रही हैं.
उसी का लक्षण है कि आज तीसरी दुनिया के देशों में जीवन की बुनियादी जरूरतों से पहले युद्ध और हथियार पहुंच रहे हैं. हमारे राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के दौरान भगत सिंह ने आजादी का जो मानक तय किया था, वह सिर्फ गोरों को देश से बाहर करने का नहीं था. उनका स्पष्ट कहना था कि जब तक समाज में अछूत, गरीब, किसान मजदूरों और अन्य वंचितों को उनका हक और सम्मान नहीं मिल जाता है, तब तक यह लड़ाई अधूरी होगी. जेल में रहते हुए भगत सिंह ने इस विषय पर और गहनता से चिंतन किया और साम्राज्यवाद के खतरों के विरुद्ध संघर्ष के विचार को मजबूत करने की बात कही. आज दुनिया में एक विचार अमेरिका का है, जो कथित लोकतंत्र के नाम पर अपना वर्चस्व चाहता है और दूसरा विचार उसके प्रतिरोध का विचार है. कास्त्रो का विचार इस दूसरे पक्ष का विचार है. कास्त्रो ने कभी भी अमेरिका की इस बात को स्वीकार नहीं किया कि दुनिया में अन्याय, गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा जैसी बुनियादी समस्याओं का समाधान मुनाफा वाले बाजार के रास्ते होगा. वे पूंजीवाद के विरुद्ध समाजवादी मूल्यों के सबसे सफलतम उदहारण हैं.
कास्त्रो और उनके अप्रतिम साथी चे ग्वेरा ने गुरिल्ला लड़ाई के द्वारा ही अमेरिकी समर्थित बतिस्ता की तानाशाही सत्ता को उखाड़ फेंका था. जब चे के साथ वे मैक्सिको से क्यूबा आये, तब उनके साथ सौ से भी कम लड़ाके थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद कास्त्रो क्रांति के लक्ष्यों को पूरा करने में लग गये.
उन्होंने गरीबी, बीमारी, अशिक्षा से जूझ रहे क्यूबा को चमत्कारिक ढंग से मानव विकास सूचकांक में विकसित देशों के समकक्ष ला खड़ा किया. अमेरिकी साम्राज्यवाद का मुखर विरोधी होने के कारण अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल करते हुए क्यूबा पर कई कड़े प्रतिबंध लगाये. अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने पांच सौ बार से ज्यादा कास्त्रो की हत्या की साजिश रची, लेकिन कास्त्रो कभी झुके नहीं. उन्होंने क्यूबा से समाजवादी लक्ष्यों को कभी डिगने नहीं दिया. सन् 1991 में जब सोवियत रूस का विघटन हो गया, तब बड़े-बड़े देश अमेरिका के सामने सिर झुका रहे थे. तब भी कास्त्रो ने क्रांति का विचार नहीं छोड़ा. क्यूबा में क्रांति के पांच दशक बाद जब कास्त्रो ने सीएनएन व बीबीसी को साक्षात्कार दिया, तब पूरे आत्मविश्वास के साथ दोहराया कि वे साम्राज्यवाद के विरुद्ध हमेशा खड़े रहेंगे और अब तक इसके लिए ‘आधी सदी गवाह है’.
मनुष्य की बुनियादी जरूरतों का सहारा लेकर ही साम्राज्यवाद पांव पसारता है. पहले ‘सभ्यता’ के नाम पर उपनिवेशवाद फला-फूला और उसने गुलामी को जन्म दिया. आज यह कथित ‘विकास’ और ‘इस्लामिक आतंकवाद’ के नाम पर अपना पांव फैलाना चाहता है.
यह सोचनीय है कि विश्व के मानचित्र पर जहां-जहां अमेरिका का हस्तक्षेप है, वहीं आतंकवाद है, क्यों? फिदेल ने एक वैकल्पिक व्यवस्था के साथ साम्राज्यवादी शक्तियों का आजीवन प्रतिरोध किया. उनके निर्देशन में ही ‘अल्बा’ (एएलबीए) संगठन ने आकार लिया और वर्ल्ड बैंक, आइएमएफ जैसे लाभ-आधारित संस्थाओं के प्रतिपक्ष में ‘सामूहिक सहभागिता’ के समाजवादी मूल्यों को संगठित किया. फिदेल कैरिबियन व लातिन अमेरिकी देश में साम्राज्यवाद के विरुद्ध महाद्वीपीय एकता के प्रतीक थे. वेनेजुएला के क्रांतिकारी नेता ह्यूगो शावेज के होने से उनके विचार को इतनी मजबूती मिली, कि लाख कोशिशों के बावजूद अमेरिका लातिन अमेरिका में उस तरह युद्ध और हथियार के मोहरे नहीं बिछा सका, जिस तरह उसने अरब के इस्लामी देशों में किया. आज दुनिया अलकायदा और आइएस जैसे आतंकी संगठनों से जूझ रही है, तो उनका जन्मदाता अमेरिकी साम्राज्यवाद ही है.
भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों में जहां आजादी क्रांति के रास्ते नहीं मिली है. जहां अन्याय, गरीबी, अशिक्षा, बीमारी आज भी बुनियादी समस्या है. जहां मानव विकास सूचकांक पिछड़ा हुआ है. जहां जनता की बुनियादी समस्याओं को चुनावी लोकतंत्र की भूल-भुलैय्या में भटका दिया जाता है. जहां समाज में फैली सामंती-ब्राह्मणवादी-पितृसत्तात्मक मूल्यों और धार्मिक कट्टरता एवं सांप्रदायिकता के विरुद्ध कोई एजेंडा नहीं है, ऐसे में वंचितों के पक्ष में खड़ा हर नागरिक बिरसा, भगत सिंह, चे, और फिदेल के विचारों को नकार नहीं सकता है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें