नोटबंदी व मोबाइल वॉलेट
कोई भी समाज अपनी सांस्कृतिक जीवन दृष्टि से ही जीता है. जब हम परायी संस्कृति से उधार ले कर उस गैर-संस्कृति के कुछ तत्व को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं, तो हमारा जीवन लड़खड़ाने लगता है. भारत में नोटबंदी और कैशलेस सोसाइटी का विचार भी ऐसे ही पश्चिम से उधार लिए विचारों […]
कोई भी समाज अपनी सांस्कृतिक जीवन दृष्टि से ही जीता है. जब हम परायी संस्कृति से उधार ले कर उस गैर-संस्कृति के कुछ तत्व को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं, तो हमारा जीवन लड़खड़ाने लगता है.
भारत में नोटबंदी और कैशलेस सोसाइटी का विचार भी ऐसे ही पश्चिम से उधार लिए विचारों का प्रतिफल है. ई-वॉलेट, मोबाइल को बटुआ बनाना भोगवादी संस्कृति की सोच है. जब सरकार के वित्त मंत्री कहते हैं कि देश में पहली बार कोई कठिन निर्णय लेने वाला प्रधानमंत्री आया है, तो वे इस देश के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों काे नकारा साबित करना चाहते हैं जिसमें स्वयं उनकी पार्टी के पूर्व प्रधानमंत्री भी हैं.
ऐसे तो वर्तमान प्रधानमंत्री अपवाद सिद्ध हुए और अपवाद नियम नहीं बनाते. हमारे दैनंदिन आचरणों को जब सरकार तय करने लगेगी, तो हम मशीन हो कर रह जायेंगे. इस देश के जनहित के लिए बुद्धिजीवियों को अपनी आवाज और अधिक मुखर करनी होगी. इस ग्रहण से बचाने का दायित्व मीडिया पर भी है.
डाॅ लक्ष्मीनारायण मित्तल, मुरैना