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पार्टी फंड की गोपनीयता

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कोई नियम दूसरों पर लागू हों, तो अच्छे लगते हैं, लेकिन अपने ऊपर लागू हों, तो अकसर कोशिश होती है कि नियम में बंधने से इनकार कर दिया जाये! हालांकि आम समझ ऐसे आचरण को पाखंड कहता आया है, लेकिन विडंबना देखिए कि एक खास मामले में हमारे राजनीतिक दलों का व्यवहार इससे अलग नहीं […]

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कोई नियम दूसरों पर लागू हों, तो अच्छे लगते हैं, लेकिन अपने ऊपर लागू हों, तो अकसर कोशिश होती है कि नियम में बंधने से इनकार कर दिया जाये! हालांकि आम समझ ऐसे आचरण को पाखंड कहता आया है, लेकिन विडंबना देखिए कि एक खास मामले में हमारे राजनीतिक दलों का व्यवहार इससे अलग नहीं है. वे सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता लाने के हामी हैं ताकि भ्रष्टाचार को मिटाया जा सके, लेकिन बात जब खुद का आचरण पारदर्शी बनाने की आती है तो वे किसी-न-किसी बहाने मुकर जाते हैं. पार्टी को चंदा किन-किन स्रोतों से हासिल हुआ, यह बताने में कभी आनाकानी, तो कभी उनका इनकार इसी की नजीर है.
अगर पार्टियों को दानदाताओं से 20 हजार रुपये से ज्यादा की रकम हासिल हो, तो जन-प्रतिनिधित्व कानून के हिसाब से उन्हें इसका पूरा ब्योरा चुनाव-आयोग को अपनी सालाना रिपोर्ट में देना होता है. ऐसा नहीं करने पर नियम है कि पार्टियों को करों में राहत नहीं दी जायेगी. चुनाव-आयोग पार्टियों की इस सालाना रिपोर्ट को सार्वजनिक करता है, ताकि लोगों को जानकारी हो कि किसी पार्टी को किसने कितने रुपये दिये. एक नियम यह भी है कि कोई कंपनी विगत तीन साल के अपने शुद्ध मुनाफे के पांच फीसदी से ज्यादा रकम किसी पार्टी को चंदे के रूप में नहीं दे सकती. लेकिन, किसी पार्टी को किसी कंपनी या ट्रस्ट द्वारा साल में एक से अधिक दफे चंदा देने पर कोई पाबंदी नहीं है.
दोनों नियमों को मिलाकर पढ़ें तो एक चोर-दरवाजा साफ दिखता है कि पार्टियों को कोई व्यक्ति, कंपनी या ट्रस्ट 20 हजार या इससे कम की रकम साल में अनगिनत बार दे सकता है और पार्टियां बेखटके उसके नाम के खुलासे से बच सकती हैं. देश की दो बड़ी पार्टियां- कांग्रेस और बीजेपी- इस नुक्ते से अब तक चंदे में प्राप्त रकम के स्रोत के बारे में बताने से बचती आयी हैं. राजनीतिक दलों को सभी स्रोतों से हासिल कुल रकम का करीब 80 फीसदी हिस्सा भाजपा और कांग्रेस के खाते में जाता है. 2014-15 में चंदे से भाजपा की कमाई 970 करोड़ रुपये थी, तो कांग्रेस की 765 करोड़.
2015-16 में राष्ट्रीय पार्टियों को कुल 1569 करोड़ रुपये की रकम हासिल हुई, जिसमें भाजपा के 674 करोड़ थे, तो कांग्रेस के 598 करोड़. इसमें से 70 फीसदी रकम का स्रोत दोनों दल नहीं बताना चाहते. ऐसे में आशंका लगी रहेगी कि किसी मंत्रालय का कोई निर्णय या संसद में उठा कोई प्रश्न कहीं किसी कंपनी या दानदाता व्यक्ति के हितसाधन तो नहीं था. पार्टियां पार्टीफंड के मामले में जितनी पारदर्शिता बरतेंगी, लोगों के मन में उनके प्रति विश्वास उतना ही बढ़ेगा.

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