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खिल्ली तो पीएम की ही उड़ेगी!

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राजीव रंजन झा संपादक, शेयर मंथन यह आश्चर्यजनक है कि भारत अपनी प्रगति के जितने भी दावे करे, मगर इसके बहुत से कोने अब भी विकास की रोशनी से बहुत दूर हैं, अंधेरे में हैं. इन अंधेरों की जिम्मेवारी समूचे राजनीतिक नेतृत्व पर है. देश के 70वें स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से […]

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राजीव रंजन झा
संपादक, शेयर मंथन
यह आश्चर्यजनक है कि भारत अपनी प्रगति के जितने भी दावे करे, मगर इसके बहुत से कोने अब भी विकास की रोशनी से बहुत दूर हैं, अंधेरे में हैं. इन अंधेरों की जिम्मेवारी समूचे राजनीतिक नेतृत्व पर है. देश के 70वें स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि आजादी के सात दशक बाद हाथरस के नगला फतेला गांव में बिजली पहुंच सकी, जबकि दिल्ली से नगला फतेला पहुंचने में केवल 3 घंटे लगते हैं. उन्होंने इस गांव को पिछली सरकारों के निकम्मेपन और अपनी सरकार की सफलता के एक सबूत के तौर पर पेश किया.
मगर, फौरन ही कुछ समाचार माध्यमों ने उनके दावे को तार-तार कर डाला और बताया कि अभी तो इस गांव में केवल तार और ट्रांसफॉर्मर लगाने का काम हुआ है, उन तारों में बिजली नहीं आयी है. नरेंद्र मोदी के हर वाक्य में बाल की खाल निकालने को उद्यत बैठा एक बड़ा वर्ग इस खबर को हाथों-हाथ ले उड़ा. कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री को झूठा करार दे दिया.
दिलचस्प है कि एनडीटीवी ने जहां नगला फतेला में बिजली नहीं पहुंचने की सच्ची खबर दिखायी, वहीं यह भी दिखाया कि पड़ोस के ही एक अन्य गांव गढ़ी सिंघा में आजादी के 70 साल बाद 15 अगस्त को केंद्रीय योजना के तहत बिजली पहुंची. इस खबर के मुताबिक, गढ़ी सिंघा गांव के लोगों को बताया गया था कि प्रधानमंत्री उनके गांव का नाम लेंगे. यहां तक कि एआइआर ने एक ट्वीट में गढ़ी सिंघा की ही तसवीर नगला फतेला के नाम से जारी कर दी. यानी तैयारी गढ़ी सिंघा का नाम लिये जाने की थी, पर भाषण में नगला फतेला का नाम आ गया. तो क्या प्रधानमंत्री की हंसी उड़वाने के लिए किसी ने जान-बूझ कर गांव का नाम बदलवा दिया? या फिर प्रधानमंत्री का भाषण तैयार करनेवाली टीम ने पूरी खोजबीन किये बिना कागजी तौर पर एक नाम उठा लिया, जो गलत निकल गया? अगर दूसरी बात सही थी, तो गढ़ी सिंघा में सरकारी अमला जश्न के लिए कैसे पहुंच गया? इन सब सवालों के जवाब शायद कभी सामने नहीं आयेंगे.
दरअसल, कागजी तौर पर तो नगला फतेला में बिजली पहुंच चुकी है, और ये कागज उत्तर प्रदेश सरकार के हैं. इसलिए केंद्र सरकार और भाजपा की ओर से सफाई दी जा रही है कि नगला फतेला में बिजली पहुंचने की बात अगर गलत निकली है, तो यह गलती राज्य सरकार की है. राज्य सरकार ने न केवल केंद्रीय योजना पर ठीक से अमल नहीं किया, बल्कि केंद्र के सामने गलत तथ्य भी पेश किये. यदि प्रधानमंत्री के भाषण में कही गयी एक बात झूठ निकली, तो इसकी जिम्मेवारी राज्य सरकार की है. केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने बिना देरी किये इस बाबत कारण बताओ नोटिस भी जारी कर दिया.
नगला फतेला को लेकर राजनीतिक छींटाकशी आगे भी चलती रहेगी. देखिएगा, 2019 में जब नरेंद्र मोदी अपने चुनावी भाषणों में देश के हर गांव तक बिजली पहुंचा देने के दावे करेंगे, तो उनके विरोधी नगला फतेला का जिक्र करके चुटकियां लेंगे.
मगर यह घटना केंद्र-राज्य संबंधों के बारे में कुछ ऐसे प्रश्न खड़े करती है, जिनका संबंध पूरे देश के विकास से है. ऐसी तमाम केंद्रीय योजनाएं हैं, जिनके लिए पूरा या अधिकांश संसाधन केंद्र उपलब्ध कराता है, मगर उनके क्रियान्वयन की जिम्मेवारी राज्य सरकारों की होती है.
लेकिन, सफलता का श्रेय कौन ले और असफलता का ठीकरा किसके सिर फूटे?
सभी सरकारें मीठा-मीठा गप्प और कड़वा-कड़वा थू की नीति पर चलती हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने टीम इंडिया की बात की थी. यदि बिजलीकरण के काम में आयी तेजी का श्रेय वे राज्य सरकारों के साथ बांटते चलते, तो नगला फतेला को लेकर उनकी खिल्ली नहीं उड़ती. यदि केंद्रीय बिजली मंत्री पीयूष गोयल लगातार बताते चलते कि केंद्र के दिये पैसों से कौन-सी राज्य सरकारें बिजलीकरण का लक्ष्य समय पर पूरा कर रही हैं, और कौन इसमें फिसड्डी हैं, तो राज्य सरकारों के सामने भी अपनी जनता के सामने अंक बनाने का लोभ होता.
सवाल इससे आगे का है. राज्य सरकारों की ओर से समय पर क्रियान्वयन नहीं होने या गलत तथ्य पेश किये जाने की स्थिति में केंद्र को किस तरह और किस सीमा तक हस्तक्षेप करना चाहिए? बिजलीकरण का ही प्रश्न लें, तो बिजली समवर्ती सूची में है, यानी इस क्षेत्र में केंद्र और राज्य दोनों को नीतियां बनाने और काम करने का अधिकार है. मगर ग्राहकों तक बिजली पहुंचाने का विषय केवल राज्य सरकार का ही है. यानी केंद्र चाहे भी तो बिजली वितरण के मामले में दखल नहीं दे सकता.
दिलचस्प है कि इसी जुलाई में राज्यसभा में बिजली मंत्री पीयूष गोयल और सपा सदस्यों के बीच राज्य में बिजलीकरण को लेकर ही नोंक-झोंक हुई थी. गोयल ने अपने लिखित जवाब में कहा था कि ‘उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दी गयी सूचना के अनुसार 1 अप्रैल, 2015 तक उत्तर प्रदेश में 1,529 गांव विद्युतीकृत नहीं थे.
17 जुलाई, 2016 की स्थिति के अनुसार, दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत 1,356 गांवों में विद्युतीकरण के कार्य पूरे कर दिये गये हैं. शेष गैर-विद्युतीकृत गांवों में मई, 2018 से पहले विद्युतीकरण किये जाने का लक्ष्य है.’ मगर राज्य के सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी के नरेश अग्रवाल इन आंकड़ों से संतुष्ट नहीं थे. अब अगर अग्रवाल साहब को ये आंकड़े सही नहीं लग रहे थे, तो उन्हें अपनी सरकार से सवाल करने चाहिए थे, क्योंकि ये सारी सूचनाएं उत्तर प्रदेश सरकार ने ही केंद्र सरकार को भेजी थी.
केंद्र का आरोप होता है कि राज्य सरकार उसके भेजे पैसों का सही इस्तेमाल नहीं कर रही. राज्य का आरोप होता है कि केंद्र ने बहुत कम पैसे भेजे. योजना के पैसे खर्च न हों, या जमीन पर काम हुए बिना केवल कागजी खानापूरी कर दी जाये, भ्रष्टाचार में पैसों की बंदरबांट हो रही हो, तो इन सब बातों की निगरानी के लिए केंद्र के हाथ बंधे हुए हैं.
लेकिन, जिस काम से केंद्र सरकार को कोई नहीं रोक सकता है, वह है केंद्रीय योजनाओं का अच्छा क्रियान्वयन करनेवाली राज्य सरकारों की तारीफ करना. दलगत भावनाओं से ऊपर उठ कर सफलताओं का श्रेय साझा कीजिए, तो नगला फतेला जैसी भूल-चूक पर चुटकियां लेने का भी किसी को मौका नहीं मिलेगा. सारा श्रेय खुद बटोरना चाहेंगे, तो ऐसी चूक पर खिल्ली तो आपकी ही उड़ेगी प्रधानमंत्री जी!

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