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पिछड़े राज्य के लिए एक और बुरी खबर

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चंद दिनों पहले ही यह खबर आयी थी कि केंद्र सरकार मनरेगा के लिए पैसा नहीं दे रही है, जिसकी वजह से बकाया मजदूरी तक का भुगतान राज्य में नहीं हो पा रहा है. अब एक और चिंताजनक खबर है कि केंद्र सरकार पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष (बीआरजीएफ) के तहत झारखंड को एक पैसा भी […]

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चंद दिनों पहले ही यह खबर आयी थी कि केंद्र सरकार मनरेगा के लिए पैसा नहीं दे रही है, जिसकी वजह से बकाया मजदूरी तक का भुगतान राज्य में नहीं हो पा रहा है. अब एक और चिंताजनक खबर है कि केंद्र सरकार पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष (बीआरजीएफ) के तहत झारखंड को एक पैसा भी नहीं देगी.

इस वित्तीय वर्ष में अब तक जो पैसा मिला है, राज्य को उसी से काम चलाना होगा. केंद्र का कहना है कि उसके पास पैसा नहीं है. केंद्र के इस फैसले के बाद राज्य में बीआरजीएफ की चालू योजनाएं भी अधर में लटक गयी हैं. झारखंड एक पिछड़ा राज्य है. इसके अधिकतर इलाकों में बुनियादी ढांचे और सुविधाओं का अभाव है. इसीलिए राज्य के 24 में से 23 जिले बीआरजीएफ के तहत आते हैं.

यानी कि लगभग पूरे राज्य को केंद्र की इस योजना का लाभ मिलता है. इसके तहत मिलनेवाली रकम से पंचायत भवन, स्वास्थ्य उपकेंद्र, आंगनबाड़ी केंद्र, सामुदायिक भवन, छोटे पुल-पुलिया, सड़क, नाली आदि का काम कराया जाता है. अब सामाजिक इंफ्रास्ट्रर से जुड़े ये निर्माण कार्य खटाई में पड़ गये हैं. बीआरजीएफ के तहत इस वित्तीय वर्ष में झारखंड को कुल 427 करोड़ रुपये मिलने थे. पर अभी तक 281 करोड़ रुपये ही मिले हैं. बाकी रकम अब नहीं मिलेगी. यानी कि झारखंड को 146 करोड़ रुपये की विकास राशि का नुकसान उठाना पड़ेगा.

जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आयी है, सिर्फ उद्योग-व्यापार को बढ़ावा देने की बात हो रही है. केंद्र सरकार ने पिछले दिनों जो बजट पेश किया, उसमें भी उद्योग और व्यापार के लिए अनेक रियायतें रहीं. एक तरफ विकास व रोजगार से जुड़ी योजनाओं में कटौती की जा रही है, तो दूसरी तरफ उद्योगपतियों को कारपोरेट टैक्स में पांच फीसदी की बड़ी छूट देने का एलान किया गया है. मोदी सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि उन्हें जो बहुमत मिला है वह गरीबों, किसानों, मजदूरों से मिले समर्थन की वजह से. अब चुनाव के बाद इनके हितों की अनदेखी करना मोदी सरकार को आनेवाले वक्त में महंगा पड़ सकता है. अभी भूमि अधिग्रहण बिल पर सरकार को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. आनेवाले दिनों में गुस्से का यह दायरा कहीं और न बढ़ जाये.

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