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क्यों पीछे पड़े हैं राहुल गांधी के?

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एक न्यूज चैनल पर काटरून के जरिये नेताओं पर कटाक्ष किया जाता है. किसी खास सिचुएशन के लिए लिखे गये फिल्मी गाने उन पर फिट किये जाते हैं. पैरोडी में शब्दों में इस तरह का बदलाव होता है कि हंसे बिना रहा नहीं जाता. मैं उस काटरून सीरीज के सारे वीडियो देख चुकी हूं. लेकिन […]

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एक न्यूज चैनल पर काटरून के जरिये नेताओं पर कटाक्ष किया जाता है. किसी खास सिचुएशन के लिए लिखे गये फिल्मी गाने उन पर फिट किये जाते हैं. पैरोडी में शब्दों में इस तरह का बदलाव होता है कि हंसे बिना रहा नहीं जाता. मैं उस काटरून सीरीज के सारे वीडियो देख चुकी हूं. लेकिन पिछले दिनों उसी सीरीज में राहुल गांधी पर एक वीडियो बनाया गया जिस पर मुङो हंसी नहीं आयी, बल्कि बुरा लगा. ‘तारे जमीं पर’ गीत की पैरोडी बनायी गयी.

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राहुल गांधी भावुक हो कर रो रहे थे और पीछे से गाना बज रहा था- ‘मैं कभी बतलाता नहीं, पर इलेक्शन से डरता हूं मैं मां.. यूं तो मैं दिखलाता नहीं, जीत की कोशिश करता हूं मैं मां.. अब और क्या करूं बोलो मां.. सत्ता तो है सच में जहर, कैसे इसको अपनाऊं मैं मां.. इलेक्शन कोई जीता नहीं, दोष किस पर लगाऊं मैं मां.. क्यों इतना हारा हूं मैं मां.. क्यों इतना हारा हूं मेरी मां.. जब भी कभी मोदी मुङो जोर-जोर से ललकारता है मेरी मां.. मेरी नजर ढूंढ़ें तुङो तू आ के थामेगी मां.. मोदी से यूं डरता नहीं, पर मैं सहम जाता हूं मां.. चेहरे पर आने देता नहीं, दिल ही दिल में घबराता हूं मां.. तुङो सब है पता है न मां..’

कोई पार्टी कैसी भी हो, कितनी भी बुरी तरह से हारी हो, लेकिन क्या उसके प्रमुख चेहरे का इस तरह से मजाक उड़ाना सही है? ऐसा नहीं है कि केवल यही वीडियो है जिस पर आपत्ति जतायें. राहुल गांधी छुट्टी मनाने कहां गये हैं, ये जानने के लिए सभी इतने उतावले आखिर क्यों हैं? क्या वह प्रधानमंत्री हैं जो उन्हें छुट्टी नहीं मिल सकती? क्यों उन्हें हम अकेला नहीं छोड़ सकते? पार्टी की अभी जो स्थिति है, उसका सारा इल्जाम एक युवा नेता पर लगाया जा रहा है. उनके आसपास जितने भी वरिष्ठ, बुजुर्ग नेता हैं, सभी उन्हें ही दोष ठहरा रहे हैं. क्या ऐसी स्थिति में अगर आप होते तो कुछ दिन का ब्रेक नहीं चाहते? आज राहुल गांधी अगर राजनीतिक परिवार में जन्म न ले कर किसी दूसरे परिवार में जन्म लेते, तो क्या उनका इतना ही मजाक उड़ाया जाता? दरअसल समस्या यह है कि भले ही बाकी फील्ड (डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदि) के माता-पिता समझ गये हैं कि बच्चों पर उन्हीं की फील्ड में जाने का दबाव देना सही नहीं है, लेकिन राजनीतिक फील्ड के लोग अभी यह नहीं समझ पाये हैं. राजनीति एक ऐसा नशा है कि वे नहीं चाहते कि यह उनके खानदान से कभी भी दूर हो. फिर भले ही बच्चे को यह पसंद हो या न हो. उसे भाषण देना आता हो या न आता हो. जो युवा मजाक में राहुल गांधी को किसी कवि द्वारा दिये गये नाम पप्पू से बुलाते हैं, वे खुद से पूछें कि क्या होगा जब उनके फेल होने पर पूरी दुनिया उन्हें ऐसा कोई नाम देगी? क्या होगा जब उन पर चुटकुले बनेंगे? राहुल गांधी तो आलिया भट्ट की तरह खुद का मजाक उड़ाने वाला वीडियो बना कर भी जवाब नहीं दे सकते.

दक्षा वैदकर

प्रभात खबर, पटना

daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in

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