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एक दलित साध्वी का ‘सेक्युलर गुनाह’

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तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा मुद्दाविहीन विपक्ष एक रामभक्त साध्वी निरंजन ज्योति के मुंह से निकले हुए शब्दों पर सदन चलने नहीं दे रहा है, जिसके लिए दलित नेता निरंजन ज्योति ने विनम्रतापूर्वक क्षमा भी मांग ली है और अपने शब्द भी वापस ले लिये हैं. वक्त बदला, निजाम बदला, लेकिन ‘सेक्युलर तालिबानों’ का मिजाज […]

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तरुण विजय
राज्यसभा सांसद, भाजपा
मुद्दाविहीन विपक्ष एक रामभक्त साध्वी निरंजन ज्योति के मुंह से निकले हुए शब्दों पर सदन चलने नहीं दे रहा है, जिसके लिए दलित नेता निरंजन ज्योति ने विनम्रतापूर्वक क्षमा भी मांग ली है और अपने शब्द भी वापस ले लिये हैं.
वक्त बदला, निजाम बदला, लेकिन ‘सेक्युलर तालिबानों’ का मिजाज नहीं बदला. अहंकार और तुनकमिजाजी के साथ प्रहार तथा अपने अलावा बाकी सबको छोटा और तिरस्कार योग्य मानना उनके मानस में इतना समा गया है कि वे अब तक यह महसूस नहीं कर पाये हैं कि उनकी इन्हीं ‘योग्यताओं’ के कारण देश की जनता ने उन्हें इधर से उधर ला बिठाया है. साध्वी निरंजन ज्योति को अगर लगता कि जो उन्होंने जो कुछ कहा है वह सही है, तो वे न तो संसद के दोनों सदनों में आकर खेद प्रकट करतीं और न ही अपने शब्द वापस लेतीं. पार्टी में किसी ने भी कहीं भी उनके कथन को उचित नहीं ठहराया है. यह भी सही है कि जो कुछ उन्होंने कहा, अगर वे न कहतीं तो बेहतर होता. उच्चतर स्तर पर भाषा के प्रति संयम आवश्यक है, यह हम सब स्वीकार करते हैं और सबने यह कहा भी है.
साध्वी निरंजन राम जन्मभूमि आंदोलन की कार्यकर्ता हैं. जैसे गांधीजी के जीवन में राम रोम-रोम में बसे थे, जैसे हर ग्रामीण देहाती राम नाम से जीवन प्रारंभ और अंत करता है, उसी धारा में रची-बसी हैं साध्वी. यह उनका शायद पहला ‘सेक्युलर गुनाह’ है. वे मार्क्‍स, लेनिन, मार्शल टीटो, केनेडी या इस किस्म के कुछ विदेशी महत्वपूर्ण नाम और उनसे जुड़ी नीतियों की बात करती हुई अगर अरुंधति रॉय की तरह भारतीय सेना को गालियां देतीं या कश्मीर को अलग करने की मांग करतीं, तो शायद मामला उच्चस्तरीय बौद्धिक संवाद का होता और उन्हें इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर जैसी जगहों में वही लोग बुलाते, जो साध्वी पर प्रहार करते हुए अपना बहादुरपना दिखा रहे हैं.
देश को गाली दी जाये, राष्ट्रीय नेता को नपुंसक, चाय बेचनेवाला या जंगली जानवरों के नामों से संबोधित किया जाये, तो ये सब बातें सेक्युलर अलंकार और कांग्रेस-कम्युनिस्ट शब्दकोश के सम्मानजनक संबोधन हैं!
सुधी पाठकों को याद होगा कि साध्वी उमा भारती पर अपशब्दों का इस्तेमाल करने के लिए प्रसिद्ध (या कुख्यात) कांग्रेस नेता ने जो अभद्र व्यवहार किया था, उसकी उन्होंने कभी माफी नहीं मांगी. उन्होंने नरसिंह राव जैसे गैर-दस जनपथ के नेता का अंतिम समय में भी अपमान किया. वह अपमान, उनकी शवयात्रा के समय भी जारी रहा. फिर भी किसी ने माफी नहीं मांगी. आंध्र प्रदेश के कांग्रेस नेताओं का आग्रह था कि नरसिंह राव ‘तेलुगु बिड्डा’ यानी आंध्र के भूमिपुत्र हैं, इसलिए कम-से-कम हैदराबाद हवाई अड्डे का नाम तो उनके नाम पर रख दिया जाये. कांग्रेस ने अपने ही प्रधानमंत्री का अपमान किया था. हैदराबाद हवाई अड्डे का नाम स्वर्गीय राजीव गांधी के नाम पर रख दिया गया.
इतना ही नहीं, आंध्र के राष्ट्रीय स्तर के नेता नंदमूरी तारक रामाराव (एनटीआर) के नाम को हटा कर हवाई अड्डे का नाम राजीव गांधी के नाम पर रखा गया. मृत्यु के उपरांत भी कोई किसी का इतना अपमान कर सकता है, यह कांग्रेस ने एनटीआर और नरसिंह राव के साथ व्यवहार द्वारा बताया.
अंडमान-निकोबार यानी काला पानी जिस एक महानक्रांतिकारी के नाम के साथ स्थायी रूप से जुड़ा है, उनका नाम है- स्वातंत्र्य वीर सावरकर. पोर्ट ब्लेयर में स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर बने स्मारक में वीर सावरकर के नाम की पट्टिका को कांग्रेस के नेता ने ही पोर्ट-ब्लेयर जाकर उखाड़ा और मृत्यु के बाद भी एक महान क्रांतिकारी की स्मृति को अपमानित किया. कांग्रेस नेताओं द्वारा भाजपा के विरुद्ध इस्तेमाल किये गये अपशब्दों और गालियों की लंबी सूची है. उन सबका जवाब जनता ने दिया ही है.
अटल जी, आडवाणी जी सहित सभी भाजपा नेता कांग्रेस ही नहीं, बल्कि वामपंथी एवं अन्य विचारधाराओं के नेताओं के प्रति आदर दिखाते रहे. स्वर्गीय इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, गोविंद वल्लभ पंत, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री- ये सभी कांग्रेस नेता ही रहे. भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अग्रणियों ने इन सबके प्रति हमेशा सम्मान के साथ शब्द प्रयोग किया. अभी दो दिन पहले त्रिगुणी आइआइटी विधेयक पर राज्यसभा में मेरा भाषण हुआ, तो मैंने अटल बिहारी बाजपेयी जी के साथ-साथ डॉ मनमोहन सिंह जी को भी ज्ञान की इस धारा को निरंतर बनाये रखने के लिए धन्यवाद दिया. आडवाणी जी, इएमएस नम्बुरीपाद के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए तिरुवनंतपुरम गये थे.
लेकिन, आज तक किसी भी कांग्रेसी के मुंह से डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी या पंडित दीनदयाल उपाध्याय के लिए औपचारिक सम्मान के भी शब्द सुनने को नहीं मिले हैं. हम राजीव जी और इंदिरा जी की जयंतियों पर संसद के केंद्रीय कक्ष में उनके चित्र पर पुष्प अर्पित करने जाते हैं, लेकिन क्या कभी किसी कांग्रेसी या वामपंथी को डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती में शामिल होते देखा है?
नफरत, वैचारिक अस्पृश्यता, अपने विरोधी को कुचल डालने की मानसिकता कांग्रेस और वामपंथ का स्वभाव रहा है. हर बौद्धिक संस्थान पर कब्जा जमाना, हर पुरस्कार, सम्मान और फेलोशिप को वैचारिक छुआछूत के अनुसार बनी सूचियों में ढालना, लगभग सभी मीडिया घरानों, विशेषकर अंगरेजी के अखबारों और चैनलों, में एक विशेष विचारधारा अर्थात् हिंदू धर्म में गौरव का बोध रखनेवाले राजनीतिक दृष्टि से सचेत वर्ग को प्रहार का निशाना बनाना, यह पिछले 67 वर्षो से इस देश में सामान्य दस्तूर बन गया था. अब वह टूट रहा है, तो सेक्युलर मठाधीश परेशान हैं.
पिछले छह महीनों में विपक्ष किन मुद्दों को उठाता रहा- हमें नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं दिया गया, हमें बंगले में बने रहने के लिए नियम क्यों नहीं तोड़ा गया, प्रधानमंत्री विदेश क्यों जा रहे हैं, वगैरह-वगैरह.
इसके बावजूद पिछले पांच दिनों में छह विधेयक पारित करके भाजपा सरकार ने अद्भुत कीर्तिमान स्थापित किया है. पिछले सभी सत्रों में लोकसभा और राज्यसभा सौ प्रतिशत से भी ज्यादा काम करते हुए रिकॉर्ड कायम कर गयी. जिस विषय पर विपक्ष ने चर्चा की मांग की, उसे बिना हिचक स्वीकार कर लिया गया. अब मुद्दाविहीन विपक्ष एक रामभक्त साध्वी के मुंह से निकले हुए शब्दों पर सदन चलने नहीं दे रहा है, जिसके लिए दलित नेता ने विनम्रतापूर्वक क्षमा भी मांग ली है और शब्द भी वापस ले लिये हैं.आगे बढ़ते भारत के कदम संयम, शालीनता और पक्ष-विपक्ष की राष्ट्रीय मुद्दों पर एकता के साथ तीव्र गतिशील हों, ऐसा नेतृत्व ही विपक्ष को शक्ति और साख दे सकेगा.

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