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प्रधानमंत्री जी! सिर्फ सुनायें नहीं, सुनें भी

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अखिलेश्वर पांडेय प्रभात खबर, जमशेदपुर आदरणीय प्रधानमंत्री जी, मैं इस देश का एक अदना सा शख्स होने ही हैसियत से कुछ कहना चाहता हूं. पुराने प्रधानमंत्री ‘बोलते’ नहीं थे और आप ‘सुनते’ नहीं हैं. आप स्वच्छता अभियान के साथ-साथ नसीहत अभियान भी चला रहे हैं, पर क्या यह सब केवल मीडिया के लिए है? कुछ […]

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अखिलेश्वर पांडेय
प्रभात खबर, जमशेदपुर
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
मैं इस देश का एक अदना सा शख्स होने ही हैसियत से कुछ कहना चाहता हूं. पुराने प्रधानमंत्री ‘बोलते’ नहीं थे और आप ‘सुनते’ नहीं हैं. आप स्वच्छता अभियान के साथ-साथ नसीहत अभियान भी चला रहे हैं, पर क्या यह सब केवल मीडिया के लिए है? कुछ संदेश अपने सहयोगी मंत्रियों को भी दीजिए. आप सफाई कर रहे हैं और मंत्री जी गंदगी, वह भी जबान से.
अब आप ही बताइए मीडिया मक्खी का काम करे या मधुमक्खी का? आप सवा सौ करोड़ भारतीयों की बातें करते हैं और आपकी सहयोगी साध्वी निरंजन ज्योति सबको राम की संतान बताती हैं. कभी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने वाले गिरिराज बाबू की फिर जुबान फिसल गयी. विरोधियों को राक्षस बताने लगे. आप ही बताइए, जो जुबान साध्वी निरंजन और गिरिराज सिंह जैसे आपके मंत्री बोल रहे हैं, उसमें शहद या जहर? इस चुनावी मौसम में लोकतंत्र जुबानी जहर से बीमार होता जा रहा है. अच्छे दिन आये कि नहीं, इस पर तो विशेषज्ञ विमर्श कर ही रहे हैं.
मुझ जैसा अदना सा शख्स जब यह जानने की कोशिश करता है कि नयी सरकार में क्या और कितना कुछ बदला है तो कहीं भी उम्मीद की रोशनी नजर नहीं आती. संसद से सड़क तक कहीं भी कुछ बदला हुआ नजर नहीं आता..फिर कैसे कह दें कि ‘बदले-बदले से सरकार नजर आते हैं.’ बात चाहे काला धन वापस लाने के मुद्दे की हो या संसद की कार्यवाही सुचारु ढंग से चलाने की, जो तर्क हमेशा मनमोहन सरकार दिया करती थी हू-ब-हू वही तर्क आपकी सरकार दे रही है.
संसद में जैसे हंगामे पिछली सरकार के जमाने में हुआ करते थे वही अब इस सरकार के जमाने में हो रहे हैं. कुछ नहीं बदला. सिर्फ चेहरे और मोहरे बदल गए. जो पहले मोहरे थे वे अब चेहरे बन गए और चेहरे अब मोहरे बन कर उसी जुबान में बोल रहे हैं. इस सारे तमाशे में इस मुल्क के मुझ जैसे करोड़ों लोग उस घड़ी का इंतजार कर रहे हैं कि कब हमारे खाते में 15 लाख जमा होंगे और कब हम अपने मन की वो सारी हसरत पूरी करेंगे जो बचपन से दिल में दबाए बैठे हैं.
लेकिन हम जानते हैं कि ‘काले’ चोर कभी पकड़ में नहीं आ सकते. क्योंकि ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ होते हैं. यह बात जितना चोरों को पता है उतना ही आपको-हमको और सबको. प्रधानमंत्री जी! आपसे गुजारिश सिर्फ इतनी सी है कि आप सुना भी करो. कभी-कभी तो लगता है आप अभी भी खुद को श्रेष्ठ वक्ता के रू प में ही स्थापित करने में लगे हो.
आपको याद दिला दूं कि आप इस देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री हो. इसलिए आप सुनो भी. सुनो उस जनता की जिसने आपको प्रधानमंत्री बनाया, उस संसद की जिसके दरवाजे पर आपने पहले दिन माथा टेका था. सुनने से सब समझ में आ जायेगा. धन्यवाद.
– देश का एक अदना सा शख्स

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