28.5 C
Ranchi
Wednesday, April 23, 2025 | 04:45 am

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

महाराष्ट्र के नतीजे से निकलते संकेत

Advertisement

अगर ये दोनों पूर्व सहयोगी साथ मिल कर सरकार बनाते भी हैं, तो यह साझे दारी बहुत असहज होगी. शिवसेना को हमेशा यह संदेह बना रहेगा कि भाजपा उससे मुक्त होने का प्रयास कर रही है. यह संदेह उचित भी है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने बड़ी आसानी से भाजपा […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

अगर ये दोनों पूर्व सहयोगी साथ मिल कर सरकार बनाते भी हैं, तो यह साझे दारी बहुत असहज होगी. शिवसेना को हमेशा यह संदेह बना रहेगा कि भाजपा उससे मुक्त होने का प्रयास कर रही है. यह संदेह उचित भी है.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने बड़ी आसानी से भाजपा की झोली में डाल दिया. जब 25 सितंबर को यह स्पष्ट हो गया था कि भाजपा, शिवसेना से वर्षो पुराना गंठबंधन तोड़ रही है, तब भी कांग्रेस के पास शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गंठबंधन को बरकरार रखने का समय था. दोनों दलों के बीच महज कुछ ही सीटों को लेकर विवाद था.
अगर सोनिया और राहुल गांधी ने उस समय इस विवाद में हस्तक्षेप कर दिया होता, तो महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजे कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस के पक्ष में बहुमत दिखा रहे होते. शानदार सफलता के बावजूद भाजपा को कुल मतों का 28 फीसदी से कम मिला है. इसका मतलब यह हुआ कि कांग्रेस को मिले 17.9 फीसदी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को मिले 17.3 फीसदी मतों को जोड़ दें, तो इस गंठबंधन ने त्रिकोणीय मुकाबले में दोनों भगवा पार्टियों को पीछे छोड़ दिया होता.
इस चुनाव के 26 सितंबर को चतुष्कोणीय मुकाबला बन जाने की स्थिति सोनिया और राहुल गांधी की क्षमता तथा राजनीतिक कौशल पर बड़ी नकारात्मक टिप्पणी है. शरद पवार ने कहा है कि सोनिया गांधी गंठबंधन बनाये रखने के पक्ष में थीं, लेकिन कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई ऐसा नहीं चाहती थी. इससे पता चलता है कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस एक-दूसरे को भाजपा से अधिक नापसंद करते थे.
पिछले 15 वर्षो के दौरान हुए चुनावों में कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस गंठबंधन इसलिए सफल होता रहा था, क्योंकि वे अपने मतों को बड़ी आसानी से एक-दूसरे को हस्तांरित कर देते थे. दोनों का बुनियादी आधार समान ही था, जिसमें मराठा, पिछड़े वर्ग और मुसलिम शामिल थे. इस इतिहास को देखते हुए मेरे लिए यह आश्चर्य की बात है कि इन दोनों ने अपनी जीत की संभावना को ठुकराते हुए भाजपा को जीतने दिया.
भाजपा के लिए यह अच्छा परिणाम तो है, लेकिन बहुत बड़ा नतीजा नहीं है. अगर उसे 20 सीटें अधिक मिल गयी होतीं, तो वह शिवसेना के चंगुल से हमेशा के लिए मुक्त हो गयी होती. हालांकि इसमें संदेह नहीं है कि उसने अपने को बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया है. इसने उद्धव ठाकरे को भी यह दिखा दिया कि पूर्ववर्ती गंठबंधन में वरिष्ठ हिस्सेदार बनने की उनकी जिद्द बिल्कुल गलत थी. पुराने गंठबंधन के फॉमरूले के मुताबिक शिवसेना विधानसभा में भाजपा से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ती थी. इस फॉर्मूले में खामी थी, क्योंकि राज्य में भाजपा हमेशा ही अधिक ताकतवर पार्टी थी, और अब यह साबित भी हो चुका है.
अच्छे उम्मीदवारों को खड़ा करने के लिए भाजपा को मिले कम समय ने पार्टी नेतृत्व के एक हिस्से को यह भरोसा दिया होगा कि भविष्य में बेहतर परिणाम पाना संभव होगा. उनमें कुछ लोग यह भी आकलन लगाना प्रारंभ कर सकते हैं कि क्या राज्य में दोबारा चुनाव कराना भाजपा के लिए सबसे अधिक फायदेमंद है. मेरे हिसाब से यह लाभकारी नहीं होगा. सिर्फ 28 फीसदी मतों के साथ 120 से अधिक सीटें जीतना बहुत अच्छा परिणाम है और उसे यह नहीं मान लेना चाहिए कि इस स्थिति में अचानक बहुत बदलाव आ जायेगा. 1995 को छोड़ कर महाराष्ट्र ने हमेशा कांग्रेस को वोट दिया है और अन्य राज्यों से अलग यहां पार्टी की जड़ें बहुत गहरी हैं तथा उसमें वापसी करने की क्षमता है.
इस नतीजे से अब भाजपा गंठबंधन में वरिष्ठ हिस्सेदार होने का शिवसेना का दावा हमेशा के लिए बीते दिनों की बात हो गयी है, लेकिन कम-से-कम अभी के लिए भाजपा को उसकी आवश्यकता है. हालांकि, ये नतीजे कई मायनों में उसके लिए खराब हैं. शिवसेना को 19 फीसदी मत मिले हैं. वैसे भी, उसे पहले भी 16 से 19 फीसदी के बीच मत मिलते रहे हैं. लेकिन मुंबई में भाजपा के हाथों सीटें हारना उसके भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है, क्योंकि इसी शहर से पार्टी को धन मिलता है.
अगर ये दोनों पूर्व सहयोगी साथ मिल कर सरकार बनाते भी हैं, तो यह साझे दारी बहुत असहज होगी. वास्तव में, इस साझे दारी का स्वरूप कांग्रेस-राष्ट्रवादी गंठबंधन की तरह होगा. चुनाव अभियान के दौरान शिवसेना द्वारा भाजपा के विरुद्ध प्रयोग की गयी भाषा और दोनों पार्टियों के अपनी-अपनी रणनीतियों के मद्देनजर इस साझेदारी में आंतरिक तनाव बना रहेगा. शिवसेना को हमेशा यह संदेह बना रहेगा कि भाजपा उससे मुक्त होने का प्रयास कर रही है. यह संदेह उचित भी है. अपनी वरिष्ठता स्थापित कर लेने के बाद भाजपा अपने विस्तार और अकेली हिंदुत्व वाली पार्टी बनने की कोशिश करती रहेगी.
कुछ सीटें हार जाने के बाद भी राष्ट्रवादी कांग्रेस तुलनात्मक रूप से अच्छी स्थिति में है. वह या तो शिवसेना की ओर सहयोग का हाथ बढ़ा सकती है या कुछ निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में लेकर वरिष्ठ विपक्ष की भूमिका के लिए अपना दावा प्रस्तुत कर सकती है. अगर वह चाहे, तो कांग्रेस के प्रति उसका रुख हमेशा दोस्ताना रह सकता है. हालांकि पवार परिवार पूरे भारत में कांग्रेस के पतन की उम्मीद में रहेगा और उसके मुताबिक, और विशेष रूप से जब केंद्र और राज्य में कांग्रेस से उसका गंठबंधन नहीं है, वह अपने विकल्पों का आकलन करेगा.
राज ठाकरे संख्या के लिहाज से पहले ही अप्रासंगिक हो चुके थे.
इस चुनाव में और सीटें हारने की स्थिति में उन पर उद्दंड और हिंसात्मक मसलों को उठाने के लिए उनके समर्थकों का दबाव बढ़ेगा. महाराष्ट्र में हर किसी के लिए यह एक बुरी खबर है. राज ठाकरे ने पार्टी बनाते समय दलितों व मुसलिमों को भी साथ लेने की कोशिश की थी और उनके झंडे में बड़े भगवा हिस्से के ऊपर और नीचे दलितों के प्रतीक के रूप में नीली और मुसलिमों के प्रतीक के रूप में हरी पट्टियां हैं. पर, जब उन्हें इन समूहों का समर्थन नहीं मिला, तो उन्होंने मुंबई में काम कर रहे मेहनतकश उत्तर भारतीयों के विरुद्ध हिंसात्मक अभियान छेड़ दिया. दुर्भाग्य से, उनके द्वारा फिर से इस तरह के मसले उठाने की आशंका है.
ये परिणाम यह संदेश देते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजय अभियान बदस्तूर जारी है. कुछ लोग यह कह सकते हैं कि उन्हें सिर्फ हरियाणा में ही जीत हासिल हुई है और महाराष्ट्र में पूर्ण बहुमत न ला पाना निराशाजनक है, लेकिन मोदी इन नतीजों को इस दृष्टिकोण से नहीं देखेंगे. शिवसेना से गंठबंधन तोड़ने का उनका दावं सफल हुआ है, और गांधी परिवार इतना समझदार या चतुर नहीं था कि इस स्थिति का लाभ उठा सके, जैसा कि उनका भी अनुमान रहा होगा. सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास नरेंद्र मोदी की अपराजेय छवि को क्षति पहुंचाने का यह एक जबर्दस्त अवसर था, जिसे उन्होंने गंवा दिया.
आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
[quiz_generator]

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snaps News reels