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कुछ खबरें संवेदना जगा ही देती हैं

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एक पत्रकार खबरों के साथ जीता-मरता है.. यह बात कई बार सुनी है, पर कभी इसे जीवन में शिद्दत से महसूस नहीं किया. जब हम अखबार निकालने के लिए काम कर रहे होते हैं, तो कई सारी खबरें सामने से गुजर जाती हैं. हत्या, चोरी, डकैती, बलात्कार, छेड़खानी, और भी बहुत कुछ. ये सब हमारी […]

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एक पत्रकार खबरों के साथ जीता-मरता है.. यह बात कई बार सुनी है, पर कभी इसे जीवन में शिद्दत से महसूस नहीं किया. जब हम अखबार निकालने के लिए काम कर रहे होते हैं, तो कई सारी खबरें सामने से गुजर जाती हैं.

हत्या, चोरी, डकैती, बलात्कार, छेड़खानी, और भी बहुत कुछ. ये सब हमारी दिनचर्या के हिस्से लगते हैं. ऐसी खबरें पढ़ते-पढ़ते हमारे अंदर भाव-शून्यता आ जाती है. लेकिन, कुछ खबरें चेतना बोध कराती हैं. हमारे भीतर की रिक्तता पर परिहास करती हैं. एक ऐसी ही खबर मिली.

खबर यह थी कि एक पखवारे के अंदर एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत हो गयी. परिवार में सिर्फ भाई-बहन बच गये. दोनों की उम्र 20 वर्ष से कम. भाई टीबी से ग्रस्त. इसे हम लोगों ने पहले पóो पर छापा. यह खबर पढ़ते हुए सारी संवेदनाएं जाग गयीं. परिवार में बचे भाई-बहन में, भाई रोज मौत से संवाद करता है. एक सुदूरवर्ती क्षेत्र का युवक इतना मजबूर है कि उसके पास अपने संबंधियों के श्रद्ध के लिए पैसे नहीं हैं. वह अपनी बीमारी का इलाज कराने में भी असमर्थ है. लेकिन, इन सबकी उसे फिक्र नहीं है. उसे चिंता है कि अगर उसे कुछ हो गया, तो उसकी 16 वर्षीय बहन का क्या होगा? वह कहां जायेगी, कैसे रहेगी? उसके हाथ पीले कैसे होंगे? उसे यह मालूम कि भारतीय समाज में नारी की महिमा का चाहे जितना बखान किया जाता हो, पर अकेली लड़की के लिए जी पाना कितना मुश्किल होगा. अगर उसे किसी अच्छे इनसान ने सहारा नहीं दिया, तो वह समाज के भेड़ियों से कैसे बच पायेगी?

प्रशासन व जनप्रतिनिधियों से ज्यादा उम्मीद नहीं है. उसे राजनीतिक व प्रशासनिक उदासीनता का भान है. वह बखूबी समझता है कि गरीबों के यहां होनेवाली मौत चर्चा का विषय नहीं बनती. बहरहाल, खबर को ठीक से समझ-पढ़ आगे प्रेषित कर दिया. लेकिन, उस पर अंर्तमथन चलता रहा. अगले दिन उस खबर के फॉलोअप पर चर्चा की. पता चला कि किसी लाभ योजना के तहत पीड़ित परिवार (जो अब बिखर गया) को कुछ पैसे दिये गये हैं. युवक ने उन रुपयों को अपनी बहन के नाम बैंक में जमा कर दिया है. पूछने पर वह बताता है कि उसकी मौत अवश्यंभावी है. मौत कब उसे अपनी आगोश में भर ले, पता नहीं (हालांकि टीबी लाइलाज बीमारी नहीं है). अब बहन की भी मनोदशा देखिए. वह भाई के लिए चिंतित है. वह उन पैसों से उसका इलाज करवाना चाहती है. वह कहती है कि भाई ठीक रहेगा, तो सब ठीक हो जायेगा. इन सबके बीच, उस युवक की निरीह आंखें हम पत्रकारों की चेतनाहीन भावना को देखती है. शायद वे पूछना चाहती हैं कि हमारे घर में तीन-तीन मौत हुई है. आज आपने पढ़ लिया, कल कुछ और लोग भी पढ़ लेंगे, परसों..?

अजय पांडेय
प्रभात खबर, गया
ajaypandey@prabhatkhabar.in

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