15.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 03:57 am
15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

हांगकांग का संकट

Advertisement

प्रो पुष्पेश पंत अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार pushpeshpant@gmail.com कुछ ही दिन पहले हांगकांग में स्थानीय नागरिक प्रशासन स्तर पर जन प्रतिनिधियों के चुनाव संपन्न हुए, जिनमें मतदाताओं ने एक करारा तमाचा बीजिंग सरकार के लगभग तानाशाही मिजाज के चेहरे पर जड़ दिया है. उन्होंने भारी संख्या में जनतंत्र की बहाली के लिए आंदोलन कर रहे […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

प्रो पुष्पेश पंत
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार
pushpeshpant@gmail.com
कुछ ही दिन पहले हांगकांग में स्थानीय नागरिक प्रशासन स्तर पर जन प्रतिनिधियों के चुनाव संपन्न हुए, जिनमें मतदाताओं ने एक करारा तमाचा बीजिंग सरकार के लगभग तानाशाही मिजाज के चेहरे पर जड़ दिया है.
उन्होंने भारी संख्या में जनतंत्र की बहाली के लिए आंदोलन कर रहे छात्रों का समर्थन करते हुए बीजिंग द्वारा नियुक्त हांगकांग की मुख्य कार्यकारी अधिकारी के विरुद्ध मतदान कर यह संदेश भेजा है कि वे पुलिस की सख्ती, बर्बर दमन या सेना भेजे जाने की धौंस-धमकी से डरनेवाले नहीं हैं. आनेवाले कुछ दिनों में यह देखने लायक रहेगा कि साम्यवादी चीन की क्या प्रतिक्रिया इस लगातार जारी बगावत को दबाने के लिए होती है. चीन की सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि हांगकांग में छात्रों और अन्य नौजवानों के उपद्रवों को वह राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए एक बहुत बड़ा जोखिम समझती है और उसका आरोप यह भी है कि यह सारी उथल-पुथल चीन के दुश्मन बाहरी देशों की भड़कायी है. चीन अपनी संप्रभुता की रक्षा हर कीमत पर करेगा.
इसलिए यह आशा करना निरर्थक है कि छात्र आंदोलन का नतीजा उस तरह सार्थक सत्ता-परिवर्तन वाला होगा, जैसा 1968 में फ्रांस में हुआ था या सत्तर के दशक में भारत में. यह बात कतई नहीं भुलायी जा सकती कि उदार और सुधारवादी समझे जानेवाले माओ के उत्तराधिकारी देन सिओपिंग ने थ्यान आनमिन चौक पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्रों को टैंक से कुचलकर उस बगावत को नेस्तनाबूद करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी.
हांगकांग में राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक मंदी का दौर करीब छह महीने से चल रहा है. सड़कों पर उतर आये आंदोलनकारियों का नारा है कि अगर जनतंत्र की रक्षा करनी है, तो चीन की अर्थव्यवस्था को संकटग्रस्त कर हठी नेताओं को चेतावनी देना जरूरी है.
अपने इस उद्देश्य में नौजवान आंदोलनकारी बहुत बड़ी सीमा तक सफल हुए हैं. हांगकांग एशिया में अंतरराष्ट्रीय व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र रहा है, जहां एचएसबीसी और स्टैंडर्ड चार्टर्ड सरीखे कई बड़े विदेशी बैंक अपने अरबों डॉलर मुनाफे का लगभग आधा हिस्सा सालाना कमाते रहे हैं.
हांगकांग की आमदनी का एक बड़ा जरिया विदेशी पर्यटकों द्वारा खर्च किया जानेवाला धन और किफायती दामों पर उपभोक्ता सामग्री, फैशनेबल कपड़े, कैमरे और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खरीद-फरोख्त है. दंगे -फसादों ने निश्चय ही इस कारोबार को चौपट कर दिया है. हांगकांग की अर्थव्यवस्था बुरी तरह डगमगा रही है और यदि हालात जल्द ही नहीं सुधरे, तो अनेक बड़ी कंपनियां और निवेशक अपनी पंूजी सिंगापुर जैसे निरापद स्थानों पर स्थानांतरित कर देंगे.
यह भी रेखांकित करना जरूरी है कि हांगकांग का हवाई अड्डा और बंदरगाह सुदूर पूर्व एशिया के प्रमुख देशों में पहुंचने का सुगम मार्ग सुलभ कराते रहे हैं. आॅस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड या फिजी बेहद दूर-दराज देशों की यात्रा करनेवाले अब तक हांगकांग में ही बीच का पड़ाव बना डेरा डालते थे. हांगकांग में हिंसक आंदोलन से यह आवागमन गड़बड़ा गया है. लोग बैंकॉक, मनीला और टोकियो तक के विकल्प तलाशने लगे हैं. हांगकांग की विमान सेवा केथे पैसेफिक दिवालियेपन की कगार तक पहुंच चुकी है.
इन सबके बावजूद यह आशा नहीं की जा सकती कि चीन की सरकार आंदोलनकारियों के सामने घुटने टेक देगी. जब ब्रिटेन ने हांगकांग का हस्तांतरण चीन की सरकार को किया था, तब हांगकांग की अर्थव्यवस्था चीन की अर्थव्यवस्था का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा थी.
उस वक्त चीन तक पहुंचना पश्चिमी देशों के लिए बेहद कठिन था और हांगकांग ही चीन में झांकने की खिड़की और उसका प्रवेश द्वार था. आज यह स्थिति बदल चुकी है. चीन की अर्थव्यवस्था में हांगकांग का हिस्सा मात्र तीन प्रतिशत रह गया है और चीन आनेवाले समय तक हांगकांग की अस्थिरता के आर्थिक प्रभाव को नजरदांज कर सकता है.
कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप मानवाधिकारों के उल्लंघन और हांगकांग में अब तक चली आ रही कमोबेश जनतांत्रिक प्रणाली का गला घोटने का दंड चीन को देने के लिए हांगकांग पर आर्थिक प्रतिबंध लगायेंगे (जिसका एलान वह कर चुके हैं), तब चीन का कष्ट और बढ़ सकता है. यहां यह बात याद रखने लायक है कि हांगकांग से इतर भी चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच ट्रेड वार काफी समय से चल रहा है.
अमेरिकी कंपनियां जानती हैं कि अमेरिका के लगाये प्रतिबंध जितना नुकसान चीन का करेंगे, उससे कम अमेरिका का नहीं होगा. लेकिन, इस बात की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आनेवाला वर्ष अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का वर्ष है और ट्रंप पहले से ही महाभियोग के कठघरे में खड़े हैं, वह किसी भी कीमत पर मतदाता को यह संकेत नहीं देना चाहते कि वह अंतरराष्ट्रीय राजनय में चीन के साथ मुकाबले में कमजोर पड़ रहे हैं.
कुल मिलाकर, इसकी संभावना बहुत कम है कि हांगकांग का संकट निकट भविष्य में दूर हो सकता है. भारत के लिए यह गुत्थी और भी उलझी हुई है. यदि वह चीन की आलोचना करने में संयम नहीं बरतता, तो खुद उस पर दोहरे मानदंड अपनाने का लांछन लग सकता है.
दिल्ली में जेएनयू के छात्रों के शांतिपूर्ण जनतांत्रिक आंदोलन की कोई तुलना हांगकांग में तोड़-फोड़कर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचानेवाले या पुलिस पर पेट्रोल बम फेंकनेवालों से नहीं की जा सकती, पर तब भी सरकारी नीतियों का विरोध करनेवाले असंतुष्ट आंदोलनकारियों का बर्बर दमन आलोचकों की निगाह में तुलनीय हो सकता है. हांगकांग में अलगाववाद नहीं, पर एक राज्य में दो व्यवस्था वाला प्रश्न केंद्रीय मुद्दा है.
जम्मू-कश्मीर में प्रशासनिक परिवर्तन के पहले भारत में भी एक राज्य में विशेष व्यवस्था थी. पूर्वोत्तर में भी नागा बागी तत्व एक खास स्वायत्ता की मांग कर रहे हैं. इसीलिए भारत का संकोच और धैर्य समझ में आता है. सबसे बड़ी जरूरत इस बारे में सर्तक रहने की है कि अमेरिका हो या यूरोपीय समुदाय मानवाधिकारों की रक्षा के बहाने कोई बाहरी ताकत हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे.
ज्यादातर लोग यह भूल गये हैं कि करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले हांगकांग के जंगल को आबाद कर उसके विकास में भारतीय उद्यमियों ने, पारसियों-सिंधियों ने, बाद में पंजाबी शरणार्थियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. अमिताभ घोष के ऐतिहासिक उपन्यास इसी युग की याद ताजा कराते हैं. हम हांगकांग को आसानी से भुला नहीं सकते.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें