निर्यात पर ध्यान
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सलाह दी है कि पांच सालों के भीतर देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर करने के लक्ष्य में एक-तिहाई हिस्सा निर्यात का होना चाहिए. जून में नीति आयोग की एक अहम बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि आय एवं रोजगार को बढ़ाने […]
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सलाह दी है कि पांच सालों के भीतर देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर करने के लक्ष्य में एक-तिहाई हिस्सा निर्यात का होना चाहिए. जून में नीति आयोग की एक अहम बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि आय एवं रोजगार को बढ़ाने के लिए निर्यात पर समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारकों की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारतीय आर्थिकी भी दबाव में है.
एक ओर हमारी आर्थिक वृद्धि दर में कमी आयी है, तो दूसरी ओर वैश्विक मंदी की आशंकाएं जतायी जा रही हैं. ऐसे में अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने तथा रोजगार पैदा करने के लिए आठ से दस फीसदी की सालाना बढ़ोतरी को हासिल करने की चुनौती है.
बीते डेढ़ दशक में औसतन सात से साढ़े सात फीसदी की दर ने अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार तो दिया है, लेकिन इसमें तेजी लाने के लिए वाणिज्य-व्यापार के मोर्चे पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है. निर्यात में बड़ी तेजी के बिना लंबे समय तक बढ़त को बरकरार रख पाना मुश्किल होगा.
पूर्व राष्ट्रपति की यह बात भी गौरतलब है कि अमेरिका-चीन के मौजूदा व्यापार युद्ध से भारत को अपने दायरे के विस्तार का एक मौका तो जरूर मिला है, पर यह कुछ ही समय तक कारगर हो सकता है. उनका कहना है कि निर्यात में वृद्धि का आधार भारतीय अर्थव्यवस्था की अपनी ताकत होनी चाहिए, न कि हमें बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर रहना चाहिए. प्रधानमंत्री ने राज्यों से अपनी मुख्य क्षमताओं को चिह्नित करने का निवेदन किया था.
रोजगार के साथ आमदनी पर भी निर्यात बढ़ाने का सकारात्मक असर पड़ता है. हमारे देश में एक समस्या वेतन-भत्तों और पारिश्रमिक के कमतर होने की भी है. इस वजह से अर्थव्यवस्था में मामूली उथल-पुथल भी मांग को बहुत अधिक प्रभावित कर देती है. जिला स्तर तक संभावनाओं को वास्तविकता बनाने के साथ देश के कोने-कोने को जोड़ने की जरूरत भी है.
अगर ढुलाई खर्च को देखें, तो यह जीडीपी का 14 फीसदी है, जो अमेरिका, जर्मनी और जापान की तुलना में बहुत अधिक है. साल 2022 तक इसे 10 फीसदी तक लाने का लक्ष्य रखा गया है. यदि यह संभव हुआ, तो इससे निर्यात में आठ फीसदी की बढ़त हो सकती है.
प्रशासन और प्रबंधन की बेहतरी के ऐसे प्रयासों के साथ विशेष आर्थिक क्षेत्रों के विकास, इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार और अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक समझौतों की दिशा में ठोस पहलों की दरकार है. खेती, दस्तकारी और मझोले उद्यमों में ऊर्जा और तकनीक के उपयोग को बढ़ा कर उत्पादों की मात्रा व गुणवत्ता बढ़ायी जा सकती है.
इन क्षेत्रों के उत्पाद हमारी आर्थिकी को मजबूत आधार दे सकते हैं. निर्यात नीति को अधिक प्रभावी बनाना सरकार की प्राथमिकताओं में है. इसमें वित्तीय और औद्योगिक संस्थानों को समुचित योगदान करना चाहिए, ताकि हमारी अर्थव्यवस्था की बढ़त बनी रहे.