15.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 10:32 am
15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

युवा देश में युवाओं की अनदेखी

Advertisement

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने इतिहास ने एक अवसर प्रदान किया था कि वह राज्यों की कमान युवाओं को सौंपते, लेकिन राहुल गांधी ने यह मौका खो दिया. उन्होंने मध्य प्रदेश की कमान 72 वर्षीय कमलनाथ को और राजस्थान में 67 वर्षीय अशोक गहलौत को सौंपी. […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने इतिहास ने एक अवसर प्रदान किया था कि वह राज्यों की कमान युवाओं को सौंपते, लेकिन राहुल गांधी ने यह मौका खो दिया. उन्होंने मध्य प्रदेश की कमान 72 वर्षीय कमलनाथ को और राजस्थान में 67 वर्षीय अशोक गहलौत को सौंपी.
कांग्रेस के दो युवा नेताओं ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट को किनारे कर दिया गया. मुख्यमंत्री चुने गये दोनों नेता बुजर्गों की श्रेणी में आते हैं और अपने करियर के ढलान पर हैं. यह मौका था, जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पारंपरिक नेताओं की बजाय युवा नेताओं को मौका दे सकते थे. युवाओं में जनाधार बढ़ाने के लिए राहुल गांधी हमेशा तत्पर दिखे हैं. मुझे याद है कि यह खबर सुर्खियां बनी थी कि कैसे राहुल गांधी ने अपनी टीम के सदस्यों में युवाओं को रखा है और उनका चयन इंटरव्यू के माध्यम से किया गया है.
इस बार दलील दी जा रही है कि 2019 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर वरिष्ठ लोगों को जिम्मेदारी सौंपी गयी है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद युवा हैं और मुझे लगता है कि यह अवसर था, जब वह युवा नेताओं को मौका देकर राजनीतिक जोखिम उठा सकते थे. किसी युवा नेता को सीएम पद की जिम्मेदारी देने से न केवल पीढ़ियों का अंतर हो जाता है, बल्कि सोचने के तरीके भी बदलते हैं.
जीवन के हर क्षेत्र को देख लें, पीढ़ियों का परिवर्तन हमेशा मुश्किल होता है, उसमें बहुत रुकावटें आती हैं. इसके लिए साहसिक पहल की जरूरत होती है. इन विधानसभा चुनावों पर गौर करें, तो जैसे बुजुर्ग नेताओं की लाॅटरी खुल गयी है. एक भी युवा नेता के हाथों नेतृत्व की कमान नहीं है. मिजोरम में 74 वर्षीय जोरामथांगा मुख्यमंत्री बने हैं, तो तेलगांना में 64 वर्षीय चंद्रशेखर राव ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली है, जबकि भारत आज विश्व में सब से अधिक युवा आबादी वाला देश है. यह स्थिति बहुत दिनों तक बनी रहने वाली नहीं है.
अगर राजनीति समेत जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं को मौका नहीं दिया गया, तो हम इस अवसर को गंवा देंगे. दूसरी ओर, भारत के मुकाबले चीन और अमेरिका बुजुर्गों के देश हैं. भारत में सवा सौ करोड़ की जनसंख्या में 65 फीसदी युवा हैं और इनकी उम्र 19 से 35 वर्ष के बीच है, जबकि चीन में लगभग 21 करोड़ और अमेरिका में लगभग 6.5 करोड़ युवा हैं. आप गौर करें कि युवा होते इस देश में अब भी जीवन के हर क्षेत्र में नेतृत्व की बागड़ोर बुजुर्ग लोगों के हाथों में है.
2014 में लोकसभा के चुने गये 543 सांसदों में से 253 की औसत उम्र 55 साल से अधिक थी. विश्लेषकों का कहना है कि यह सबसे बूढ़े सांसदों वाली लोकसभा है. इसमें युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व देश के युवाओं के अनुपात में बेहद कम है. संसद में 45 साल से कम के केवल 79 सांसद हैं.
सरकारी अथवा निजी क्षेत्र की नौकरी से आम आदमी 58 या फिर 60 साल की उम्र में रिटायर कर दिया जाता है और उसके स्थान पर कोई युवा जिम्मेदारी संभालता है, लेकिन राजनीति में उम्र की कोई सीमा नहीं होती. भले ही आप शारीरिक और मानसिक रूप से उतने चैतन्य न रहें, लेकिन सत्ता का मोह नहीं जाता है.
2014 में भाजपा ने 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं से अनुरोध किया था कि वे लोकसभा का चुनाव न लड़े, लेकिन यह फैसला बुजुर्ग नेताओं को रास नहीं आया. उनकी नाराजगी से बचने के लिए उन्हें टिकट देना पड़ा. सभी दलों में कमोबेश यही स्थिति है.
सार्वजनिक जीवन के हर क्षेत्र में, चाहे वह खेल का मैदान हो अथवा राजनीतिक का रण, हर जगह यह बात नजर आती है. क्रिकेट में भी अक्सर जब तक खिलाड़ी को बाहर बैठने के लिए नहीं कह दिया जाता, तब तक उसकी आकांक्षा टीम में बने रहने की होती है.
हालांकि कई खिलाड़ी इसके अपवाद भी हैं. सचिन तेंडुलकर का मामला आपको याद होगा. उनका प्रदर्शन स्तरीय नहीं चल रहा था, लेकिन वह रिटायर नहीं हो रहे थे. चयनकर्ताओं में साहस नहीं था कि वे कह सकें कि अब आपको रिटायर हो जाना चाहिए. यह फैसला सचिन के ऊपर ही छोड़ दिया गया था और काफी इंतजार के बाद उन्होंने यह फैसला किया.
मैं इस पक्ष में हूं कि पुरानी पीढ़ी के अनुभव का हमें लाभ उठाना चाहिए लेकिन पीढ़ियों के परिवर्तन के लिए हमें साहसिक कदम उठाने होंगे, अन्यथा हम एक ऐतिहासिक अवसर गंवा देंगे. 1991 की जनगणना के अनुसार देश में लगभग 34 करोड़ युवा थे, जिनकी 2016 तक बढ़ कर 51 करोड़ हो जाने का अनुमान लगाया गया था. 2018 तक इनकी संख्या कुल आबादी का 65 फीसदी होने का अनुमान है.
हमारे यहां एक और समस्या है कि अलग-अलग क्षेत्रों में युवा की परिभाषा भिन्न-भिन्न है. राजनीति में तो 50 से 60 साल तक के लोगों को युवा मान लिया जाता है. 2003 में राष्ट्रीय युवा नीति में युवाओं का पारिभाषित किया गया था और 13 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों को युवा माना गया था. आज लगभग 75 करोड़ वयस्कों में लगभग आधे 25 साल के आसपास हैं.
इनमें से भी ग्रामीण युवा कुल युवा आबादी का लगभग 70 फीसदी हैं. माना जा रहा है कि 2020 तक भारत दुनिया के सबसे युवा देश हो जायेगा. इस बदलाव से जहां उसके समक्ष बड़े अवसर उपलब्ध होंगे, वहीं शिक्षा और रोजगार उपलब्ध कराने जैसी चुनौतियां से भी उसे दो चार होना पड़ेगा.
संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया था कि 2020 में भारतीयों की औसत आयु 29 साल होगी, जबकि इस दौरान चीन के लोगों की औसत आयु 37 वर्ष, यूरोप की 45 वर्ष और जापान की 48 वर्ष होगी. इससे अनुमान लगा सकते हैं कि भारत कितना युवा देश होने जा रहा है, लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे सोचने का स्तर पुराना ही है. मेरा मानना है कि मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चुनौती है युवा मन को समझना.
दूसरी बड़ी चुनौती विभिन्न पीढ़ियों में तारतम्य स्थापित करने की है. आज के युवा बदल चुके हैं. उनका आचार-व्यवहार, हाव-भाव और खान-पान, सब बदल गया है. पुरानी पीढ़ी की समस्या यह है कि वह इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है. मुझे युवाओं से संवाद का जब भी मौका मिला है, मैंने पाया कि युवाओं में अविश्वास का भाव है.
अधिकांश युवा मौजूदा व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं. भारत के युवा होने की खबर पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं. ब्रिटेन के जाने-माने अखबार गार्डियन में इयान जैक ने एक विस्तृत लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि युवा भारत दुनिया को बदल सकता है. पश्चिमी दृष्टि से लिखे इस लेख में कहा गया है कि युवा भारतीयों में पारंपरिक एशियाई संस्कृति और अमेरिकी युवाओं की आकांक्षाओं का समावेश है. हर तरफ इस बात की चर्चा है, लेकिन हमारे देश में ही इस पर कोई विमर्श नहीं हो रहा है. हम इस बड़े परिवर्तन की ओर आंखें मूंदे बैठे हैं.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें