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जनादेश स्पष्ट है

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कृष्ण प्रताप सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
kp_faizabad@yahoo.com
मतदाताओं का भाजपाई सत्ताधीशों को सुनाया गया यह फैसला आइने की तरह साफ है कि बड़बोलापन, सब्जबाग और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बहुत हो चुके, अब संभलो और ठीक से काम करो, वरना फूटो सरकारी बंगले से, नीचे उतरो फोकट की कार से और दफा हो जाओ. हमने एक बार तुम्हारे लिए इवीएम का बटन दबाकर हमेशा के लिए सिर पर सवार नहीं करा लिया है, न ही ‘भारत भाग्यविधाता’ बना डाला है.
उनसे जहां मतदाताओं ने यह कहा कि विकल्पहीनता के मुगालते में रहना उन्हें भारी पड़ सकता है क्योंकि देश की जनता को 1977 जैसे हालात में भी विकल्प तलाश लेने की आदत है, वही उनके प्रतिद्वंद्वियों को भी बता दिया है कि अकेले, गठबंधन करके या महागठबंधन बनाकर जिस भी रूप में सामने आओ, अपने बेहतर होने का भरोसा दिलाओ.
सवाल है कि ये दोनों पक्ष मतदाताओं की सुनेंगे या नहीं? जहां तक भाजपा की बात है, 2014 में देश की सत्ता में आने के बाद उसने जनादेशों को हर हाल में अपने पक्ष में करने के लिए उनकी मनमानी व्याख्याओं का जो दौर चला रखा है और जिस पर अरसे बाद कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में लगाम लग पायी, सो भी सुप्रीम कोर्ट के दखल से, उससे ऐसा नहीं लगता. हर हाल में सत्ता की जो लत उसे लगी हुई है, उससे एक झटके में छुटकारा पाना उसके लिए आसान नहीं होने वाला.
उसकी यह लत सिर चढ़कर बोलने लगी, तो देश को राजभवनों के दुरुपयोग की नयी मिसालों के साथ उसके सांप्रदायिक एजेंडे के नये हड़बोंग भी देखने को मिल सकते हैं. आखिरकार उसके अध्यक्ष का देश पर पचास साल राज (शासन नहीं) करने का मंसूबा (इरादा नहीं) है. हां, विपक्ष मतदाताओं की सुनेगा, तो देश को भी लाभ होगा और उसे भी. उसकी अपनी उम्मीदें तो हरी ही होंगी, सत्ताधीशों के बुरे मंसूबे भी धूल चाटेंगे.

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