18.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

जनोन्मुखी विकास की जरूरत

Advertisement

जगदीश रत्तनानी वरिष्ठ पत्रकार editor@thebillionpress.org मुखर, निरुत्तरकारी तथा तर्कों को खुद के पक्ष में झुका देनेवाले अपने ही अनोखे अंदाज से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीडीपी वृद्धि दर पर चल रही चर्चा के सतहीपन का सार प्रस्तुत कर दिया है. उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा- ‘कांग्रेस द्वारा तथ्य एवं सर्वोत्तम वैश्विक व्यवहारों पर आधारित […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

जगदीश रत्तनानी
वरिष्ठ पत्रकार
editor@thebillionpress.org
मुखर, निरुत्तरकारी तथा तर्कों को खुद के पक्ष में झुका देनेवाले अपने ही अनोखे अंदाज से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीडीपी वृद्धि दर पर चल रही चर्चा के सतहीपन का सार प्रस्तुत कर दिया है.
उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा- ‘कांग्रेस द्वारा तथ्य एवं सर्वोत्तम वैश्विक व्यवहारों पर आधारित डेटा को इसलिए नकार दिया जाता है, क्योंकि वह कांग्रेस के इस तर्क की हवा निकाल देता है कि ‘मेरी जीडीपी वृद्धि दर तुम्हारी जीडीपी वृद्धि दर से ऊंची’ थी.’ और फिर वित्त मंत्री ने आगे जो कुछ कहा, वह नंगे सत्य को साक्षात कर देता है- यह बहस मेरे बनाम तुम्हारे जीडीपी में बदल गयी है. पर जरूरत यह पूछे जाने की है कि इसमें उस जनता को क्यों छोड़ दिया गया है, जिसके हित के लिए जीडीपी को काम करना है?
जब विकास दर की सारी बहस ‘अर्थशास्त्रियों’ द्वारा जनता को कहीं पीछे छोड़ सिर्फ आकलन, तकनीक तथा गणना विधि के खोखले खेल में तब्दील हो जाती है, तो अंततः यही वह यक्ष प्रश्न है, जो उससे निःसृत हो सम्मुख आ खड़ा होता है.
इस बार बहस का मुद्दा जनवरी 2015 में लागू की गयी राष्ट्रीय लेखा एवं वृद्धि संख्याओं की उस ‘नयी शृंखला’ को लेकर है, जिसने आधार वर्ष (बेस ईयर) को पूर्व के 2004-2005 से खिसका कर 2011-12 कर दिया. स्वभावतः इस नये आधार वर्ष से आकलित डेटा की तुलना पूर्व के डेटा से नहीं की जा सकती. बीते 28 नवंबर को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने पूर्ववर्ती डेटा को इस नये आधार वर्ष के साथ जारी किया और इस गणना प्रक्रिया ने अपने समर्थकों तथा विरोधियों को आमने-सामने ला खड़ा कर दिया.
इस नये डेटा ने यूपीए-I एवं यूपीए-II के दौरान वृद्धि दर की चमक छीन यह बताया कि साल 2006-07 से 2013-14 के बीच औसत वृद्धि दर 6.7 प्रातिशत रही, जो भाजपा शासन के 2014-15 से लेकर 2017-18 की अवधि के दौरान औसत वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत से नीची थी. यानी यूपीए ने कभी भी दहाई अंकों की वृद्धि दर का स्पर्श नहीं किया, क्योंकि वर्ष 2010-11 में जब इसने 10.3 प्रतिशत की वृद्धि दर घोषित की, तो नयी शृंखला के अनुसार वस्तुतः वह सिर्फ 8.5 प्रतिशत ही थी.
एक सीमा के बाद यह कवायद अर्थहीन ही बन जाती है, भले ही यह इस अर्थ में भाजपा को फायदा पहुंचा दे कि नोटबंदी की वजह से विकास को पहुंची चोट तथा सामान्य नागरिकों को हुई कठिनाइयों के चुनावी निहितार्थों से उसे मुक्ति मिल जाये. मगर यह इस सत्य को नहीं बदल सकती कि मनमोहन सिंह के समय में भारतीय आर्थिक इंजन ने विकास मार्ग में रफ्तार पकड़ी और अब यह 6 से 7 प्रतिशत की उस गति से लगातार आगे बढ़ रही है. यहीं पर यह भी कहना उचित होगा कि हम दहाई अंकों की रफ्तार के निकट तो कदापि नहीं हैं.
इसके आगे ये संख्याएं हमें इस चर्चा में कोई फायदा नहीं पहुंचा सकतीं कि भारत को अपनी विकास यात्रा आगे किस तरह बढ़ानी चाहिए. केवल परियोजनाएं, कारखाने, नयी सेवाएं तथा उन्हें तथा उनके संचालन के सहारे और संरक्षण हेतु जरूरी बुनियादी ढांचा अहम घटक होते हुए भी स्वयं में विकास नहीं हैं.
यह भी महत्वपूर्ण है कि क्या नया भारत नये विचारों से लैस लोगों को नये तथा नवोन्मेषी कारोबार एवं सेवाएं स्थापित करने के अवसर प्रदान करते हुए इस हेतु एक निष्पक्ष, पारदर्शी तथा समुचित रूप से कुशल परिवेश को प्रोत्साहन, पोषण तथा संरक्षण प्रदान कर सकता है? इसका अर्थ अनिवार्यतः सरल कानून, भ्रष्टाचारविहीन विनियमन तथा भारतीय परिदृश्य में भरे पड़े मुनाफाखोरों का मूलोच्छेदन है. चूंकि आर्थिक गतिविधियां एक निर्वात में संपन्न नहीं होतीं, अतः इसका मतलब एक ऐसा सामाजिक तानाबाना भी है, जो लोगों को राज्यों, भाषाओं, संस्कृतियों, धर्मों तथा जातियों से परे जाकर काम करने में समर्थ बनाता है.
यदि सामाजिक तनाव बढ़ा हो, तो आर्थिक गतिविधियों की बाढ़ रुक जाती है, जिसका अर्थ यह भी है कि आज की राजनीति आज के विकास एजेंडे को भी प्रभावित किया करती है.
ऐसे में संख्याएं चाहे जो भी कहती हों, इसमें संदेह नहीं हो सकता कि भाजपा विकास को तेजी नहीं दे सकी है. आज संतुलन, सद्भाव तथा आपसी सम्मान की मांग करनी पड़ती है, जबकि ये तो प्रस्तुत होने चाहिए थे.
यहीं यह भी काबिलेगौर है कि विकास का कांग्रेस मॉडल भी स्वस्थ नहीं था. उदाहरण के लिए, विकट तथा बेरोकटोक भ्रष्टाचार, पर्यावरण की उपेक्षा, कुछ लोगों के फायदे के लिए खनिजों तथा जनसामान्य के अन्य संसाधनों की लूट तथा आज की अनुत्पादक आस्तियां विकास के अंकों में भले ही इजाफा ला दें, मगर अर्थव्यवस्था को जनोन्मुखी विकास मार्ग पर आगे नहीं बढ़ा सकतीं.
यदि हम भारत के जन सामान्य के लिए सतत आर्थिक विकास चाहते हैं, तो इस हेतु पहले तो अर्थव्यवस्था के समानार्थी अंगरेजी शब्द ‘इकोनॉमिक्स’ की व्युत्पत्ति समझनी होगी, जो यूनानी शब्द ‘ओइकोस’ (मतलब एक पारिवारिक इकाई) से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ ‘पारिवारिक प्रबंधन’ है. इतना तो साफ है कि किसी एकांगी या पक्षपातपूर्ण प्रबंधन का परिवार अधिक दिनों तक साथ नहीं रह सकता.
(अनुवाद: विजय नंदन)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें