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ग्रामीण बैंकिंग जरूरी

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बैंक या डाकघर में जमा खाता होना बचत राशि को सुरक्षित रखने और जरूरत के हिसाब से निकालने की सुविधाभर की बात नहीं होती. कर्ज लेने, बीमा या सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ उठाने के लिए भी खाता जरूरी होता है. लिहाजा, खाताधारक होना राष्ट्रीय आर्थिक जीवन में व्यक्ति की सक्रिय भागीदारी का एक प्रमाण […]

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बैंक या डाकघर में जमा खाता होना बचत राशि को सुरक्षित रखने और जरूरत के हिसाब से निकालने की सुविधाभर की बात नहीं होती. कर्ज लेने, बीमा या सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ उठाने के लिए भी खाता जरूरी होता है. लिहाजा, खाताधारक होना राष्ट्रीय आर्थिक जीवन में व्यक्ति की सक्रिय भागीदारी का एक प्रमाण होने के साथ देश की तरक्की को पहचानने का एक संकेत भी है.
इसी को ध्यान में रखते हुए चार साल पहले सरकार ने सभी नागरिकों को बैंकिंग व्यवस्था के अंतर्गत लाने के लिए योजना बनायी थी. बैंक खाता, डेबिट कार्ड और एक लाख रुपये का बीमा मुहैया कराने की इस योजना के परिणाम बड़े उत्साहवर्द्धक रहे, लेकिन ग्रामीण अंचलों में बैकिंग सेवा-सुविधाओं की कमी लगातार बनी हुई है.
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल मार्च तक जनधन योजना के तहत खुले खातों की संख्या 31.44 करोड़ तक पहुंच चुकी है, जबकि पिछले साल इस योजना के तहत 28.17 करोड़ खाते खुले थे. साल 2014 से 2017 के बीच दुनिया में कुल 51.4 करोड़ नये बैंक खाते खुले, जिसमें 55 प्रतिशत खाते सिर्फ जनधन योजना के अंतर्गत भारत में खोले गये हैं.
पर, नये खातों का खुलना तभी सार्थक है, जब उनके जरिये जरूरत के मुताबिक बैकिंग सेवा हासिल हो. इसके लिए चार सालों में 25 हजार नयी शाखाएं और 45 हजार नये एटीएम खोले गये हैं, पर करोड़ों की तादाद के मद्देनजर बुनियादी ढांचे के इसको समुचित नहीं माना जा सकता है. वित्तीय समावेशन पर केंद्रित रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक जून, 2015 तक देश में प्रति एक लाख आबादी पर व्यावसायिक बैंकों की शाखाओं की संख्या 10 से भी कम (9.7) थी, लेकिन बैंकिंग सेवा के मामले में ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की तुलना करने पर तस्वीर ज्यादा चिंताजनक है.
ग्रामीण और अर्द्धशहरी क्षेत्रों में प्रति लाख आबादी पर व्यावसायिक बैंक शाखाओं की संख्या 7.8 है, जबकि शहरी और महानगरीय इलाकों में यह आंकड़ा लगभग 19 बैंक शाखाएं हैं. यही स्थिति एटीएम के मामले में है. तीन साल पहले देश में प्रति लाख आबादी पर केवल 18 एटीएम मौजूद थे. ब्रिक्स के देशों में सिर्फ भारत ही एटीएम की संख्या के मामले में पीछे है. दक्षिण अफ्रीका में यह अनुपात 65 और रूस में 180 है. इन कमियों के चलते बैंक खातों से लेनदेन प्रभावित होता है.
साल 2017 में देश के 50 फीसदी जमा खाते बंद पड़े थे, यह अनेक वजहों के साथ इसका भी संकेत है कि एटीएम या बैंक शाखा खाताधारक के इतने नजदीक नहीं हैं कि वह गंतव्य तक आसानी से पहुंच सके. ग्रामीण रोजगार और सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित कुछ अध्ययनों का निष्कर्ष है कि घर से बैंक के बहुत दूर होने के कारण बहुत से मजदूर और लाभार्थी अपना हक (मजदूरी और अनुदान राशि) हासिल नहीं कर पा रहे हैं. सो, जनधन योजना और बैंकिंग तंत्र की कामयाबी के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बैकिंग सेवा के विस्तार पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.

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