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… ताे बिरसा मुंडा आजादी के वक्त भी जीवित हाेते

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-अनुज कुमार सिन्हा- 9 जून. ठीक 118 साल पहले आज ही के दिन बिरसा मुंडा ने रांची जेल में अंतिम सांस ली थी. उस समय बिरसा मुंडा 25 साल के युवा थे. यह भी काेई जाने की उम्र हाेती है, बिल्कुल नहीं. अगर अपनाें ने गद्दारी कर बिरसा मुंडा काे गिरफ्तार नहीं कराया हाेता, ताे […]

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-अनुज कुमार सिन्हा-
9 जून. ठीक 118 साल पहले आज ही के दिन बिरसा मुंडा ने रांची जेल में अंतिम सांस ली थी. उस समय बिरसा मुंडा 25 साल के युवा थे. यह भी काेई जाने की उम्र हाेती है, बिल्कुल नहीं. अगर अपनाें ने गद्दारी कर बिरसा मुंडा काे गिरफ्तार नहीं कराया हाेता, ताे बिरसा मुंडा जेल नहीं जाते. जब जेल नहीं जाते, ताे उनकी माैत भी नहीं हाेती. लंबे समय तक जीवित रहते. इस बात की संभावना बहुत अधिक थी कि देश की आजादी के वक्त यानी 1947 में बिरसा मुंडा जीवित हाेते.
आजादी के वक्त उनकी उम्र हाेती 72 साल. बिरसा मुंडा से महात्मा गांधी छह साल बड़े थे. वे 1948 तक जीवित रहे. सरदार पटेल आैर बिरसा मुंडा ताे समकालीन थे. हमउम्र. पटेल (जन्म 31 अक्तूबर, 1875) बिरसा मुंडा (जन्म 15 नवंबर 1875) से सिर्फ 15 दिन बड़े थे. पटेल की माैत 15 दिसंबर 1950 काे हुई थी. इसलिए यह कहा जा सकता है कि अगर बिरसा काे अंगरेजाें ने जेल में मार नहीं दिया हाेता (चाहे जानबूझ कर हाे या इलाज में लापरवाही से), ताे बिरसा मुंडा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आैर बड़ी भूमिका अदा करते. आजादी की लड़ाई में गांधी ने असहयाेग आंदाेलन चलाया.
यह असरदार था. अगर बिरसा मुंडा के आंदाेलन (1895-1900) का विश्लेषण किया जाये, ताे उसमें एक दाैर ऐसा आया था, जिसमें बिरसा ने अपने अनुयायियाें से कहा था कि वे खेताें में अनाज न उपजायें. बीज नहीं बाेयें. यह बिरसा की रणनीति का हिस्सा था, क्याेंकि खेताें में अनाज नहीं बाेने से उत्पादन नहीं हाेगा. अनाज की कमी हाेगी आैर अंगरेज सरकार के खिलाफ विद्राेह हाेगा, नाराजगी बढ़ेगी. संभव था, अगर बिरसा 1900 के बाद जिंदा हाेते आैर आजादी की लड़ाई काे आगे बढ़ाते, ताे अनाज नहीं बाेने के आंदाेलन काे अंगरेजाें के खिलाफ एक शांतिपूर्ण हथियार के ताैर पर अवश्य अपनाते.
ताे किसने की गद्दारी. अपनाें ने की. बिरसा मुंडा अंगरेजाें के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ रहे थे. याेजनाबद्ध तरीके से. अंगरेज उन्हें पकड़ना चाहते थे, लेकिन पकड़ नहीं पा रहे थे. बिरसा मुंडा आैर उनके अनुयायियाें ने चर्च काे निशाना बनाया था. हमले किये थे. बिरसा मुंडा मानते थे कि जाे अगंरेज जुर्म ढाह रहे हैं, वे चर्च से जुड़े हैं. इसलिए हमले किये. ऐसे भारतीय जमींदाराें पर भी मुंडाआें ने हमला किया जाे अंगरेजाें का साथ दे रहे थे. ऐसे में अंगरेज सरकार हर हाल में बिरसा मुंडा काे गिरफ्तार करना चाह रही थी.
एक ही रास्ता बचा था. लालच देकर फूट पैदा कराे. अंगरेजाें ने बिरसा मुंडा पर पांच साै रुपये का इनाम घाेषित कर दिया. सईल रकब पर अंगरेजाें आैर मुंडाआें के बीच 9 जनवरी 1899 काे जम कर संघर्ष हुआ था. अनेक मुंडा मारे गये थे, लेकिन सरकार बिरसा मुंडा काे तब पकड़ नहीं पायी थी, क्याेंकि संघर्ष के पहले ही बिरसा मुंडा आैर गया मुंडा वहां से निकल चुके थे.
अंगरेज विद्राेहियाें काे पकड़ने के लिए जगह-जगह छापेमारी कर रहे थे. बिरसा मुंडा बंदगांव हाेते हुए पाेड़ाहाट की जंगल में घुस चुके थे. मानमारू आैर जरिकेल के सात लाेग सरकार द्वारा घाेषित पांच साै रुपये के इनाम के चक्कर में फंस चुके थे. सेंतरा के जंगल में अपने कुछ करीबियाें के साथ जब बिरसा मुंडा साे रहे थे, उसी दाैरान गांव के सात लाेगाें ने बिरसा मुंडा काे कब्जे में लेकर अंगरेज पुलिस काे साैंप दिया था. काश, उन दिनाें गांव के उन लाेगाें ने गद्दारी नहीं की हाेती.
बिरसा मुंडा काे बंदगांव में कुछ देर के लिए रखा गया था. फिर खूंटी हाेते हुए रांची जेल लाया गया था. 9 जून 1900 काे वहीं उनकी माैत हाे गयी थी. कहा गया था कि उन्हें डायरिया हाे गया था. किसी काे आज तक भराेसा नहीं हुआ कि सिर्फ डायरिया से बिरसा मुंडा की माैत हुई हाेगी. लाेग ताे यही मानते हैं कि बिरसा मुंडा काे तरीके से सरकार ने मार दिया. 25 साल (जब बिरसा मुंडा की माैत हुई थी) की उम्र में बिरसा मुंडा ने जाे साहसी कारनामा किया, अंगरेजाें के खिलाफ जाे लाेहा लिया, उसने झारखंड क्षेत्र में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम काे मजबूती प्रदान की.
साथ ही जमीन संबंधी कई कानून बने. अगर बिरसा मुंडा की माैत युवावस्था में नहीं हुई हाेती, ताे यही बिरसा मुंडा शायद महात्मा गांधी-राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताआें के साथ मिल कर झारखंड क्षेत्र में आजादी की लड़ाई काे तेज करते आैर आजाद भारत काे भी देख पाते. यहां ध्यान देने की बात है कि महात्मा गांधी आैर बिरसा मुंडा की कभी मुलाकात नहीं हुई, क्याेंकि जब गांधी दक्षिण अफ्रीका से लाैटे, उसके पहले बिरसा शहीद हाे चुके थे.
आजादी के ठीक पहले 1940 में जब रामगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था, वहां बिरसा मुंडा के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए सम्मेलन स्थल के मुख्य द्वार का नाम बिरसा द्वार जरूर रखा गया था. यह इस बात काे दर्शाता है कि गांधी भी बिरसा मुंडा के प्रति कितनी श्रद्धा रखते थे.

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