टीकाकरण पर ध्यान
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बीते हफ्ते (24-30 अप्रैल) को विश्व टीकाकरण सप्ताह घोषित किया था. सप्ताह तो गुजर गया, पर टीकाकरण की कमी से सबसे ज्यादा बाल मृत्यु दर वाले देशों में शुमार भारत के सोचने के लिए यह सवाल फिर से शेष रह गया है कि क्या सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (एमडीजी) के अनुरूप […]
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बीते हफ्ते (24-30 अप्रैल) को विश्व टीकाकरण सप्ताह घोषित किया था. सप्ताह तो गुजर गया, पर टीकाकरण की कमी से सबसे ज्यादा बाल मृत्यु दर वाले देशों में शुमार भारत के सोचने के लिए यह सवाल फिर से शेष रह गया है कि क्या सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (एमडीजी) के अनुरूप 2020 तक 90 फीसदी टीकाकरण का घोषित लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा? पांच साल तक की उम्र के तकरीबन 60 हजार बच्चे भारत में हर साल सिर्फ उन रोगों से काल-कवलित होते हैं, जिनसे टीकाकरण के जरिये बचा जा सकता है. इस कारुणिक तथ्य से जुड़ा एक विरोधाभास यह भी है कि भारत से दुनिया में सबसे ज्यादा टीकों का निर्माण और निर्यात होता है. टीकाकरण के मामले में हम नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से भी पीछे हैं, जबकि यह सिद्ध बात है कि शिशु मृत्यु कम करने में टीकाकरण एक किफायती और असरदार उपाय है. सार्विक टीकाकरण के मसले पर केंद्रित दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से संबंधित विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन (2016) में कहा गया है कि टीकाकरण के मामले में अपेक्षित विस्तार न होने के कारण भारत में शिशु मृत्यु दर पड़ोसी देशों के मुकाबले ज्यादा है. इस अध्ययन के मुताबिक, प्रति हजार जीवित शिशुओं के जन्म को आधार मानें, तो भारत में नवजात शिशुओं की मृत्यु-दर 27.7 और पांच साल की उम्र तक वाले बच्चों के लिए 47.7 है. पिछले साल विश्व टीकाकरण सप्ताह के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वास्थ्य मंत्रालय से कहा था कि प्रयासों में तेजी लायी जाये और 2014 में शुरू किये गये मिशन इंद्रधनुष के तहत 90 फीसदी टीकाकरण का लक्ष्य 2020 से दो साल पहले 2018 में पूरा कर लिया जाये. सितंबर, 2017 के आखिर तक इस मिशन के तहत 67 लाख गर्भवती स्त्रियों और 2.57 करोड़ बच्चों का टीकाकरण हुआ था, जिसमें 55 लाख बच्चों का पूर्ण टीकाकरण शेष था. ध्यान रहे, हर साल 89 हजार बच्चे अपूर्ण टीकाकरण या फिर टीकाकरण के अभाव में बची जा सकनेवाली बीमारियों की आशंका से जूझते हैं. सो, पूर्ण टीकाकरण स्वयं में एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. देश में सार्विक टीकाकरण का कार्यक्रम 1985 में शुरू हुआ था. इसके अंतर्गत टीके के जरिये रोके जा सकनेवाले 12 रोगों के लिए गर्भवती स्त्रियों और शिशुओं का टीकाकरण होता है. लेकिन, कार्यक्रम की प्रगति अपेक्षित गति से नहीं हुई है. साल 2009 से 2013 के बीच टीकाकरण की कवरेज में बढ़ोत्तरी सालाना एक फीसदी रही थी. साल 2015-16 में टीकाकरण के कवरेज में बढ़ोत्तरी 6.7 फीसदी की दर से हुई. इस रफ्तार से मिशन इंद्रधनुष का लक्ष्य 2018 तक पूरा होना बहुत मुश्किल जान पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने ध्यान दिलाया है कि भारत जैसे देशों को चिकित्सा से जुड़ी अपनी प्राथमिकताओं का मेल सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों से बैठाना जरूरी है. लेकिन यह तभी हो सकता है, जब स्वास्थ्य के मद में सरकारी खर्च समुचित मात्रा में बढ़े.