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सावन को आने दो

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कविता विकास स्वतंत्र लेखिका पहली बारिश अपने साथ उम्मीदें लेकर आती है. उम्मीदें, जिनमें अच्छी फसल, गर्द के विनाश, गर्मी से बेहाल रूह को ठंडक और अपने परिवेश में हरियाली देखने की चाहत मुख्यतः होती है. गंगा का विशाल तटवर्ती इलाका हो या नर्मदा का आंगन, गोदावरी की तलहटी में बसा गांव हो या ब्रह्मपुत्र […]

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कविता विकास
स्वतंत्र लेखिका
पहली बारिश अपने साथ उम्मीदें लेकर आती है. उम्मीदें, जिनमें अच्छी फसल, गर्द के विनाश, गर्मी से बेहाल रूह को ठंडक और अपने परिवेश में हरियाली देखने की चाहत मुख्यतः होती है. गंगा का विशाल तटवर्ती इलाका हो या नर्मदा का आंगन, गोदावरी की तलहटी में बसा गांव हो या ब्रह्मपुत्र के सुनहरे तटों पर बसी बस्ती, विपुल जलराशि के किनारे रहते हुए भी विशाल जनमानस सावन आते ही नभ की ओर ताकता मिल जायेगा. मेघ खेतिहर संस्कृति के विधायक तत्त्व हैं. न बरसें, तो नदी का हृदय बैठने लगता है. वन्य जीवों के कलरव-किलोल शून्यप्राय हो जाते हैं. बैल हांफने लगते हैं, कांधे कसमसाने लगते हैं.
अखिल ब्रह्मांड, जो जीवन, जगत और शून्य से बना है, का अस्तित्त्व जल से जुड़ा है. जल से जीवन है और जीवन से जगत. शून्य से ही जीवन और जगत की उत्पत्ति हुई है. शून्य यानी आकाश. आकाश से मेघ बरसता है, जो तीनों के बीच संतुलन बनाता है. गर्मी से जूझता जीव-जंतु नभ की ओर आतुर नैनों से निहारता है और जैसे ही हिरणों-सी कुलांचे भरता बादल प्रकट होता है, उनकी आंखें चमक जाती हैं.
पहली बारिश इतनी महत्वपूर्ण होती है कि अखबार की सुर्खियां बन जाती हैं. गाछ-वृक्ष कुछ ही दिनों में हरी पत्तियों और शाखाओं से लद जाते हैं. फिर शुरू होती है, बीजों और पौधों की रोपाई. कृषकों का महायज्ञ आरंभ होता है. वर्षा की बूंदों के साथ उनकी भी देह पिघलती है. अंकुरों के पनपने में बारिश का पानी और किसान का पसीना दोनों उत्तरदायी होते हैं.
दोनों मिल कर ही वर्तमान की जमीन पर भविष्य की नींव रखते हैं. उसके बाद तो जैसे-जैसे बीज अंकुरित होकर पौधा बनते हैं, किसानों के सपने भी परवाज पाने लगते हैं. फसलों से जुड़ी हैं प्रिया के पांवों की महावर, बिटिया के देह की हल्दी और बेटे का खल्ली-स्लेट. उनका चूल्हा जलेगा, थाली महकेगी और जीवन उत्सव हो जायेगा.
भारतीय पर्वों का मर्म भी यही है, पर सावन तो अपने आप में ही एक पर्व है, ऋतु मात्र नहीं. इस सावन की आंखों का पानी बरकरार रहे, हमारी जीवन सरिता हमारी संस्कृति को समृद्ध कर बहती रहे.
हमें संकल्प लेना होगा कि प्रकृति के विनाश को रोकें. प्रकृति के दोहन से जीवन का संतुलन रथ चरमरा जायेगा. हमारी यात्रा अधूरी रह जायेगी. अधूरी यात्रा का कोई लेखा- जोखा नहीं होता. अब, जब बारिश काल आरंभ हो रहा है, तो मनाइये कि सावन खूब उमड़े. धरती के गरम होने की प्रक्रिया दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है. सावन का पर्व इसकी छाती की गर्मी को बुझा दे, इतना कि कोई गांव अकाल की चपेट में न आए. सबके गोदाम भरें, सब की क्षुद्धा मिट जाए, सब तृप्त हो जाएं.

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