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संसद में महिला आरक्षण बिल (Women Quota bill 2023) को पारित कराने पर चर्चा चल रही है. लोकसभा से पास होने के बाद इसे राज्यसभा में चर्चा के लिए रखा गया है. यहां से 21 सितंबर को पास होने के बाद बिल कानून बन जाएगा. इससे लोकसभा और विधानसभा में महिला सांसदों के पद 33 फीसदी आरक्षित हो जाएंगे. हालांकि कानून बनने के बाद भी इसे चुनाव में लागू करने के पहले कुछ पेच आ रहा है.
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जानकारों का कहना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में इसे लागू कर पाने में नया जनगणना आधारित परिसीमन रुकावट बन सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जनगणना का आकलन 2026 में होना तय है. कानून के मुताबिक उसके बाद ही परिसीमन होगा. नए परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण बिल पर अमल संभव है.
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Delimitation क्या है
बहरहाल, इससे पहले जान लेते हैं कि परिसीमन होता क्या है और यह भारत में पहली बार प्रभाव में कब आया. चुनाव आयोग के मुताबिक परिसीमन यानि Delimitation वह एक्ट है, जिसके अंतर्गत चुनावी क्षेत्रों की बाउंड्री तय होती है. यह काम परिसीमन आयोग करता है.
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कब पहली बार हुआ परिसीमन
देश में अब तक 4 बार परिसीमन आयोग बना है, जिनके अंतर्गत चुनावी क्षेत्रों की सीमा तय की गई.
1. 1952
2. 1963
3. 1972
4. 2002
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1976 के बाद परिसीमन क्यों रुका
1976 में ततकालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन सन् 2000 तक रोक दिया था. इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने Delimitation को 2026 तक के लिए दोबारा लागू किया. 2026 में यह एक्सपायर हो जाएगा.
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परिसीमन के बाद कैसी बदल जाएगी लोकसभा
संसद की नई इमारत में लोकसभा सांसदों के बैठने की सीट ज्यादा है. इसे 545 से बढ़ाकर 888 किया गया है. इसके मायने हैं कि अगर 2026 में परिसीमन दोबारा होता है और जनगणना के मुताबिक लोकसभा क्षेत्र तय होते हैं तो सांसदों की संख्या भी बढ़ने की उम्मीद है.
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दक्षिण भारत के राज्या क्यों कर रहे विरोध
दक्षिण भारत के राजनीतिक दल लंबे समय से जनगणना आधारित परिसीमन का विरोध कर रहे हैं. उनका मत है कि जनगणना आधारित परिसीमन से लोकसभा में उत्तर और मध्य भारत के राज्यों को फायदा पहुंचेगा. द्रमुक का कहना है कि तमिलनाडु, केरल जैसे राज्य परिवार नियोजन की सजा भुगतेंगे. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार जैसे राज्य, जो Family Planning नहीं लागू कर पाए और ज्यादा जनसंख्या वाले हैं, को फायदा पहुंचेगा.
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किसे ज्यादा फायदा होगा
मौजूदा जनगणना और संभावित आबादी के आधार पर 2026 के परिसीमन के बाद बिहार और उत्तर प्रदेश के कुल 222 सांसद होंगे. Carnegidowment.org के डेटा के मुताबिक दक्षिण भारत के 4 राज्य कुल मिलाकर 165 सीटों पर ही प्रतिनिधित्व कर पाएंगे. एक और अध्ययन में बताया गया है कि बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को कुल मिलाकर 22 सीटों का फायदा होगा. वहीं आंध्र प्रदेश, केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु को 17 सीटों का.
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परिसीमन के बाद नये संसद भवन का ऐसा होगा संख्याबल