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जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के कार्यालय में किसने तिरंगा लगाकर दिया अलगाववादी संगठन को मुंहतोड़ जवाब?

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उद्यमी और राजनीतिक कार्यकर्ता संदीप मावा ने जेकेएलएफ के दफ्तर पर तिरंगा लगाने के बाद कहा कि जम्मू कश्मीर में 1960 के दशक से आतंकवादी गतिविधियों में जेकेएलएफ शामिल रहा है.

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जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटने के बाद से कई तरह की खबरें आतीं हैं जो चर्चा का केंद्र बन जाती है. ताजा मामला प्रतिबंधित अलगाववादी संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) को लेकर सामने आया है. जानकारी के अनुसार उद्यमी और राजनीतिक कार्यकर्ता संदीप मावा ने जेकेएलएफ के कार्यालय के दरवाजे पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लगा दिया है.

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जो खबर सामने आ रही है उसके अनुसार आतंकवादियों के निशाने पर लगातार रहे संदीप मावा ने अपने कुछ समर्थकों के साथ श्रीनगर के बोहरी कदल इलाके में जेकेएलएफ दफ्तर पहुंचे और वहां मुख्य दरवाजे पर तिरंगा लगा दिया. आपको बता दें कि जेकेएलएफ के दफ्तर पर पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान समाप्त किये जाने के बाद से ताला लटक रहा है.

अलगाववादी संगठन को मुंहतोड़ जवाब

उद्यमी और राजनीतिक कार्यकर्ता संदीप मावा ने जेकेएलएफ के दफ्तर पर तिरंगा लगाने के बाद कहा कि जम्मू कश्मीर में 1960 के दशक से आतंकवादी गतिविधियों में जेकेएलएफ शामिल रहा है. इस अलगाववादी संगठन को हमने मुंहतोड़ जवाब दिया है. इस अलगाववादी संगठन की अगुवाई मकबूल भट्ट, यासीन मलिक और बिट्टा कराटे जैसे लोगों ने की है. यह एक भारतीय संस्था है, जिसका इस्तेमाल किसी भी चीज के लिए किया जा सकता है लेकिन हम राष्ट्र-विरोधी गतिविधियां बरदास्त नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि कश्मीरी मुस्लिम और कश्मीरी पंडित मिलकर एक नया जम्मू कश्मीर बनाने का काम करेंगे, जहां शांति के मार्ग पर विकास और प्रगति नजर आएगी.

Also Read: यासीन मलिक को मिले मौत की सजा, टेरर फंडिंग मामले में NIA ने दिल्ली हाई कोर्ट से की अपील
संदीप मावा हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दफ्तर के बाहर लगा चुके हैं राष्ट्रीय ध्वज

यदि आपको याद हो तो संदीप मावा ने पिछले साल तीन अगस्त को राजबाग इलाके में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दफ्तर के बाहर दो राष्ट्रीय ध्वज लगाये थे. आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर टेरर फंडिंग मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने प्रतिबंधित जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख यासीन मलिक के खिलाफ मौत की सजा की मांग करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया है.

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