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संस्कृत के तीन मानद विश्वविद्यालयों को मिलेगा सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा, राज्यसभा ने बिल पर लगायी मुहर

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देश में संस्कृत के तीन मानद विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने का रास्ता साफ हो गया है.

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नयी दिल्ली : देश में संस्कृत के तीन मानद विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने का रास्ता साफ हो गया है. सोमवार को राज्यसभा में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक-2019 पर अपनी मुहर लगा दी है. राज्यसभा ने सोमवार को देश में संस्कृत के तीन मानद विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने के प्रावधान वाले विधेयक को मंजूरी दे दी. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक-2019 पर सदन में हुई चर्चा का जवाब देते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि सरकार संस्कृत के साथ ही संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भारतीय भाषाओं को सशक्त करने की पक्षधर है और सभी को मजबूत बनाना चाहती है.

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मानव संसाधन मंत्री निशंक ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से विज्ञान के साथ संस्कृत का ज्ञान जुड़ेगा और देश फिर से विश्वगुरू बनेगा. उन्होंने कहा कि इससे शोध एवं अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलेगा. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक-भारत, श्रेष्ठ-भारत और देश को विश्वगुरू बनाने का रास्ता इसी से निकलेगा. निशंक ने कहा कि यह विधेयक केवल किसी भाषा से जुड़ा नहीं है.

उन्होंने कहा कि आज जिस योग का पूरे विश्व में अनुसरण किया जा रहा है, उसके प्रसिद्ध ग्रंथ योग सूत्र को पंतजलि ने लिखा था. उन्होंने कहा कि इसी प्रकार प्राचीन ज्ञान-विज्ञान पर आधारित ग्रंथ चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, नागार्जुन आदि ने संस्कृत में लिखे थे. मानव संसाधन विकास मंत्री के जवाब के बाद सदन ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया.

विधेयक के साथ सदन ने इस पर सरकार द्वारा लाये गये कुछ संशोधनों को भी मंजूरी दे दी. अब इन संशोधनों के साथ विधेयक को लोकसभा में फिर पारित कराया जाएगा. इससे पहले सदन में विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा और द्रमुक के सदस्यों में संस्कृत तथा तमिल भाषा को लेकर नोकझोंक भी हुई.

जाहिर तौर पर इसी संबंध में निशंक ने कहा कि यहां किसी भाषा का विवाद नहीं है और इस तरह की छोटी बात में उलझा नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि विधेयक तीन संस्कृत संस्थानों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने के लिए लाया गया है, ताकि वहां अनुसंधान हो सके. बाहर से आकर छात्र शोध कर सकें और यहां के छात्र बाहर जा सकें. इसे भाषा के विवाद में नहीं खड़ा करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि हम सभी भारतीय भाषाओं को सशक्त करने के पक्षधर हैं. हम प्रत्येक भारतीय भाषा के ज्ञान के भंडार का उपयोग करेंगे. अगर संस्कृत सशक्त होगी, तो सभी भारतीय भाषाएं भी सशक्त होंगी. मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दे दी. इस विधेयक के कानून बनने के बाद दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ और तिरुपति स्थित राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का दर्जा मिल जाएगा. अभी तीनों संस्थान संस्कृत अनुसंधान के क्षेत्र में अलग-अलग कार्य कर रहे हैं.

विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए बीजद के प्रशांत नंदा और तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर राय ने अपना भाषण संस्कृत में दिया. जयराम रमेश ने भी कुछ टिप्पणी संस्कृत में की. उन्होंने संस्कृत को वैज्ञानिक भाषा और सांस्कृतिक विरासत बताते हुए विधेयक का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि लेकिन इस भाषा पर कुछ लोगों का एकाधिकार रहा और आम जनों की पहुंच इस भाषा तक नहीं हो पायी, जो अफसोसजनक है.

उन्होंने कहा कि तमिल, मलयालम, ओड़िया भाषा लाखों लोगों के द्वारा बोली जाती है, जबकि संस्कृत भाषा बोलने वालों की संख्या देश में महज 15,000 के लगभग है. भाजपा के सुब्रमण्यम स्वामी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि जो लोग संस्कृत को मृतप्राय भाषा बता रहे हैं, असल में वे खुद बौद्धिक ठहराव की स्थिति झेल रहे हैं, जबकि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ ने ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (आर्टिफिशयल इंटेलिजेन्स) के क्षेत्र में आगे बढ़ने के इच्छुक लोगों के लिए संस्कृत को जानना अनिवार्य बनाया है.

चर्चा में सपा के रामगोपाल यादव, जद-यू की कहकशां परवीन, टीआरएस के टी लक्ष्मीकांत राव, माकपा के केके रागेश, द्रमुक के एम षणमुगम, वाईएसआर-सीपी के वी विजयसाई रेड्डी, भाकपा के विनय विश्वम, राकांपा की वंदना चव्हाण, एमडीएमके के वाइको, राजद के मनोज कुमार झा, आप के नारायण दास गुप्ता, भाजपा के अशोक वाजपेई, कांग्रेस के पी एल पुनिया, एल हनुमंतैय्या एवं छाया वर्मा तथा अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन ने भी भाग लिया.

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