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Task Force:डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर राज्यों ने उठाये गये कदमों की दी जानकारी

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डॉक्टरों और स्वास्थ्य पेशेवरों की सुरक्षा के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से उठाये गये सुरक्षा संबंधी जानकारी केंद्र सरकार को दी गयी.केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में राज्यों के मुख्य सचिव और डीजीपी शामिल हुये. नेशनल टॉस्क फोर्स द्वारा सुझाये गये सलाह को भी राज्यों को बताया गया, जिससे डॉक्टरों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके.

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Task Force: सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए उपाय सुझाने के लिए नेशनल टास्क फोर्स(एनटीएफ) का गठन किया है. एनटीएफ ने मंगलवार को कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. उस रिपोर्ट के आधार पर बुधवार को केंद्र सरकार की ओर से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिवों और डीजीपी की बैठक आयोजित हुई जिसमें एनटीएफ द्वारा सौंपी गयी रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई पर विस्तार से विचार किया गया. एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक गृह सचिव गोविंद मोहन की अध्यक्षता और स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा की सह अध्यक्षता में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश के अधिकारीगण शामिल हुये. इस बैठक में मुख्य रूप से डॉक्टरों की सुरक्षा और उनकी चिंताओं को लेकर राज्यों की ओर से उठाये गये कदमों की जानकारी मांगी गयी. बताया जा रहा है कि ज्यादातर राज्यों में पहले से ही कानून है, लेकिन टास्क फोर्स की रिपोर्ट के आधार पर कुछ जरूरी कदम उठाने पर विचार किया गया. बैठक में मुख्य सचिवों और डीजीपी सहित राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों ने सार्वजनिक और निजी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और अन्य स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की सुरक्षा बढ़ाने और उनके लिए सुरक्षित कार्यस्थल पर सुरक्षित वातावरण तैयार करने को लेकर उठाये गये कदमों की जानकारी दी.

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तात्कालिक और अल्पकालिक कदमों पर चर्चा

राज्य सरकारों ने कुछ तात्कालिक और अल्पकालिक उपायों को बताया. एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक  स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की सुरक्षा के लिए 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल) में पहले से मौजूद राज्य कानूनों का उचित कार्यान्वयन करने पर बल दिया गया. वैसे राज्यों से आग्रह किया गया कि वे आवश्यक कानून बनाएं, जिनके पास समान अधिनियम नहीं हैं. अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परिसर में स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की सुरक्षा के लिए भारतीय न्याय संहिता के प्रावधानों को लेकर लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ाना, अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में मुख्य सुरक्षा अधिकारियों का प्रावधान करना, सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले संविदा/आउटसोर्स कर्मचारियों का पुलिस सत्यापन, जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षकों द्वारा जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के डीन/निदेशकों के साथ मिलकर सरकारी जिला अस्पतालों (डीएच) और मेडिकल कॉलेजों (एमसी) में संयुक्त सुरक्षा ऑडिट, कई बड़े मेडिकल कॉलेजों/जिला अस्पतालों के परिसर में पुलिस चौकी/पुलिस थाना उपलब्ध होना और रात में पुलिस द्वारा गश्त बढ़ाना आदि शामिल है. इसके साथ ही यौन शिकायत/उत्पीड़न समिति का गठन और सक्रिय होना, सीसीटीवी नेटवर्क की समीक्षा और अस्पताल परिसर में अतिरिक्त सीसीटीवी के माध्यम से निगरानी को मजबूत करना, विशेष रूप से डार्क जोन, गलियों आदि में. कुछ राज्यों में देर रात ड्यूटी के दौरान महिला डॉक्टरों, एसआर आदि के लिए हॉस्टल से कार्यस्थल तक सुरक्षा एस्कॉर्ट्स आदि.

जिला कलेक्टर और डीएसपी समय-समय पर करेंगे सुरक्षा ऑडिट 

गृह सचिव गोविंद मोहन ने अधिकारियों से अधिक संख्या में आने वाले अस्पतालों में कुछ सुरक्षा सुनिश्चत करने का आग्रह किया, जिसमें ब्लाइंड स्पॉट में सीसीटीवी कैमरे लगाना, स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के लिए 112 हेल्पलाइन के साथ एकीकरण, बड़े अस्पतालों में प्रवेश पर नियंत्रण, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत संशोधित स्थिति को साझा करना, वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने राज्यों को अभिनव विचारों के साथ आने के लिए प्रोत्साहित किया और कुछ तत्काल उपायों पर जोर दिया, जिन पर स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के लिए सुरक्षा बढ़ाने और सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करने के लिए विचार किया जा सकता है: जिसमें जिला कलेक्टर और डीएसपी और डीएच/एमसी के प्रबंधन के साथ संयुक्त सुरक्षा ऑडिट करें, जिससे मौजूदा बुनियादी ढांचे और सुरक्षा व्यवस्था में किसी भी कमी की समीक्षा कर उसे दूर करने का उपाय किया जा सकता है. सभी नियुक्त सुरक्षा और अन्य सेवा कर्मचारियों की नियमित आधार पर सुरक्षा जांच की जानी चाहिए. नियंत्रण कक्ष, विशेष रूप से बड़े डीएचएस/एमसी में, जिसमें कर्मचारियों की ड्यूटी रोस्टर हो जो नियमित रूप से सीसीटीवी की निगरानी करें और डेटा को सुरक्षित रूप से संग्रहित करें. सुरक्षा और संरक्षा समिति को संस्थागत बनाया जाना चाहिये साथ ही रात के समय सभी अस्पताल/मेडिकल कॉलेज परिसरों में ‘नियमित सुरक्षा गश्त’ बढ़ाई जानी चाहिये.

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