नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि जमानत के मामलों में याचिकाकर्ता अगर जेल में है और उसके परिवार के सदस्य दिल्ली से बाहर हैं तो प्रमाणित हलफनामे और ‘वकालतनामा’ उपलब्ध कराने पर जोर दिये बिना ही याचिका स्वीकार कर ली जानी चाहिए. वकालतनामा वह दस्तावेज होता है जो वकील को किसी का प्रतिनिधित्व करने के लिये अधिकृत करता है.
यह निर्देश न्यायमूर्ति आशा मेनन ने 23 वर्षीय एक व्यक्ति की याचिका पर दिया जो अपहरण के मामले में गिरफ्तारी के बाद 10 दिन से भी ज्यादा समय से न्यायिक हिरासत में है और उसकी ऑनलाइन जमानत याचिका इसलिये अस्वीकार कर दी गई क्योंकि वकालतनामे को उसके या परिवार के सदस्यों द्वारा प्रमाणित नहीं किया गया था.
याचिका में कहा गया कि ऑनलाइन आवेदन द्वारका अदालत के सुविधा केंद्र द्वारा खारिज किया गया था जबकि उसने स्पष्ट किया था कि उसका वकील गुरुग्राम में है और उसका परिवार गाजियाबाद में रहता है तथा कोरोना वायरस महामारी की वजह से राज्यों की सीमाएं सील होने के कारण वकालतनामा प्रमाणित नहीं हो सका.
उच्च न्यायालय ने कहा कि मौजूदा मामला द्वारका अदालत के सुविधा केंद्र को “ज्यादा संवेदनशीलता” से संभालना चाहिए था. उच्च न्यायालय ने कहा, “जेल में बंद व्यक्ति के लिये दायर जमानत याचिका के मामले में, अनधिकृत जमानत याचिकाओं को दायर करने से रोकने के लिये जिला अदालतों की चिंता की गलत व्याख्या हुई .. ऐसा लगता है.
उसने कहा कि महामारी और लॉकडाउन के इस अभूतपूर्व वक्त में लोगों को शीघ्र न्याय देने के उद्देश्य से उच्च न्यायालयों में भी वकालतनामा के संदर्भ समेत अनिवार्य जरूरतों में रियायत दी गई है. न्यायमूर्ति मेनन ने जिला न्यायाधीश, दक्षिण-पश्चिम के जरिये द्वारका अदालत के सुविधा केंद्र को निर्देश दिया कि वह “अब जमानत की याचिका (आवेदनकर्ता की) वकील के इस हलफनामे के साथ स्वीकार करे कि बंद खत्म होने के दो हफ्ते के अंदर वह हस्ताक्षरित वकालतनामा दायर करेगा
उच्च न्यायालय ने यह भी निर्देशित किया “जमानत के मामलों में हस्ताक्षरित/प्रमाणित वकालतनामा या हस्ताक्षरित और प्रमाणित हलफनामा या आवेदन दिये जाने पर जोर नहीं दिया जाएगा. अगर आवेदनकर्ता जेल में है और/या ऐसे याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्य दिल्ली से बाहर रहते हैं