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भारत के चंद्रयान-3 और रूस के लूना-25 के अगले सप्ताह चंद्रमा पर उतरने की तैयारी के साथ चंद्रमा के अज्ञात दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की होड़ तेज हो रही है. प्रत्येक मिशन आसमान में रोमांचक प्रतिस्पर्धा से परे महत्वपूर्ण मायने रखता है. विशेषज्ञों का कहना है कि चंद्रयान-3 की योजना चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला मिशन बनने की है, वहीं लूना-25 के तेजी से कक्षा तक पहुंचने की होड़ ने इस पर नयी रोशनी डाली है. दोनों की लैंडिंग की तारीखें- लूना-25 के लिए 21-23 अगस्त और चंद्रयान के लिए 23-24 अगस्त, भी काफी समीप हैं, जिससे दुनिया की निगाहें इन दोनों अभियान पर हैं.
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चंद्रयान-3, भारत का चंद्रमा के लिए तीसरा मिशन है, जिसने इस साल 14 जुलाई को अपनी यात्रा शुरू की और पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया. प्रक्षेपण के 40 दिन के भीतर सॉफ्ट लैंडिंग प्रयास की तैयारी के लिए यह सावधानीपूर्वक अपनी कक्षा को समायोजित कर रहा है. चंद्र अन्वेषण में रूस महत्वपूर्ण वापसी कर रहा है. 1976 में सोवियत युग के लूना-24 मिशन के बाद लगभग पांच दशकों में पहली बार, 10 अगस्त को लूना-25 अंतरिक्ष में भेजा गया. इसने चंद्रमा के लिए अधिक सीधे रास्ते को अपनाया है. संभावित रूप से यह लगभग 11 दिन में 21 अगस्त तक लैंडिंग का प्रयास करने में सफल हो जाएगा.
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तेज यात्रा का श्रेय मिशन में इस्तेमाल यान के हल्के डिजाइन और कुशल ईंधन भंडारण को दिया गया है, जो इसे अपने गंतव्य तक छोटा रास्ता तय करने में सक्षम बनाता है. बेंगलुरु के भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के वैज्ञानिक क्रिसफिन कार्तिक ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘क्या होड़ से फर्क पड़ेगा? ब्रह्मांडीय अन्वेषण के विशाल दायरे में, पहुंचने का क्रम चंद्र परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव नहीं कर सकता है. फिर भी, प्रत्येक मिशन से प्राप्त ज्ञान चंद्रमा के अतीत और क्षमता के बारे में हमारी समझ को समृद्ध करेगा. मूल्य हमारे संयुक्त प्रयासों के योग में निहित है.’’
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दोनों मिशन के अलग-अलग पहुंचने के समय का एक प्रमुख कारक उनका संबंधित द्रव्यमान और ईंधन दक्षता है. लूना-25 का भार केवल 1,750 किलोग्राम है, जो चंद्रयान-3 के 3,800 किलोग्राम से काफी हल्का है. भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के अनुसार यह कम द्रव्यमान लूना-25 को अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ़ने में सक्षम बनाता है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष डॉ के. सिवन ने बताया कि इसके अलावा, लूना-25 का अधिशेष ईंधन भंडारण ईंधन दक्षता संबंधी चिंताओं को दूर करता है, जिससे यह अधिक सीधा मार्ग अपनाने में सक्षम होता है. उन्होंने कहा कि इसके विपरीत, चंद्रयान-3 की ईंधन वहन क्षमता के अवरोध के कारण चंद्रमा तक अधिक घुमावदार मार्ग की आवश्यकता है.
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चंद्रयान की कक्षा को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाया गया था. यह प्रक्रिया प्रक्षेपण के लगभग 22 दिन बाद चंद्रमा की कक्षा में खत्म हुई. वैज्ञानिकों ने कहा कि अंतरिक्ष यान लैंडिंग के समय को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक आकाश में सूर्य का मार्ग है. यानों को जिस मार्ग से गुजरना है, वहां सूर्य का उगना आवश्यक है. सिवन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि रूस भी चंद्रमा मिशन पर जा रहा है. अंतरिक्ष अन्वेषण में वैश्विक भागीदारी जिज्ञासा और खोज की मानवीय भावना को बढ़ाती है.’’
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उन्होंने कहा, ‘‘दोनों मिशन का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचना है. हालांकि, पहुंचने का क्रम मिशन के परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं डालेगा, लेकिन यह नयी सीमाओं की खोज के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता को मजबूत करता है.’’ उन्होंने कहा कि चंद्र परिदृश्य अद्वितीय है और विशिष्ट चुनौतियां प्रस्तुत करता है. मिशन की सफलता केवल लैंडिंग के क्रम से निर्धारित नहीं होती है. सिवन ने कहा, ‘‘चंद्र अन्वेषण के लिए उच्च प्रक्षेपक शक्ति और उन्नत प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता होती है, जिनमें से प्रत्येक समग्र सफलता में योगदान देता है.’’
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उन्होंने कहा, ‘‘मिशन की योजना में पेलोड विचार महत्वपूर्ण हैं. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के अन्वेषण के लिए सटीकता, दक्षता और अनुकूलन क्षमता की आवश्यकता होती है. भारत का मिशन उच्चतम प्रक्षेपण मूल्यों को प्राप्त करने के लिए हमारे समर्पण को दर्शाता है, जो हमारी तकनीकी कौशल का प्रमाण है.’’ अंतरिक्ष अन्वेषण में दुनिया की नये सिरे से पैदा हुई दिलचस्पी के साथ भारत और रूस ऐतिहासिक उपलब्धियों के शिखर पर खड़े हैं. दोनों देश पृथ्वी के खगोलीय पड़ोसी के रहस्यों को उजागर करने के लिए मानवता की खोज के पथ को आकार दे रहे हैं.
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दुनिया की नजर दोनों मिशन पर है जिससे चंद्रमा की संरचना, उसके इतिहास और संसाधन के रूप में क्षमता के बारे में नयी जानकारी मिलने की उम्मीद है. स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को विकास के लिए उत्प्रेरक बताते हुए कार्तिक ने कहा कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की होड़ एक गतिशील माहौल को बढ़ावा देती है जहां राष्ट्र एक-दूसरे की उपलब्धियों और असफलताओं से सीख सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘यह स्पर्धा नवाचार की भावना को पैदा करती है, जो हमें सामूहिक रूप से अपनी अंतरिक्ष यात्रा क्षमताओं में सुधार करने के लिए प्रेरित करती है.’’ कार्तिक ने कहा, ‘‘हम अपनी समयसीमा का पालन करते हुए आगे बढ़ रहे हैं. हमारा दृष्टिकोण हमारी आर्थिक वास्तविकता के साथ जुड़ा है. किफायती होना एक पहलू है लेकिन यह हमें सितारों तक पहुंचने से नहीं रोकता है. संसाधन का उपयोगी तरीके से इस्तेमाल के साथ हमारा लक्ष्य अपने राष्ट्र की आकांक्षाओं को पूरा करना है.’’
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चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अपने संभावित जल संसाधनों और अद्वितीय भूवैज्ञानिक विशेषताओं के कारण विशेष रुचि जगाता है. अपेक्षाकृत अज्ञात क्षेत्र भविष्य के चंद्र मिशन के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का आगामी आर्टेमिस-तीन मिशन भी शामिल है, जिसका उद्देश्य पांच दशक के अंतराल के बाद मानव को चंद्रमा पर ले जाना है. कार्तिक ने कहा, ‘‘चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का अज्ञात क्षेत्र हमें हमारे आकाशीय पड़ोसी के बारे में अधिक गहन अंतर्दृष्टि को उजागर करने का वादा करता है. चंद्रमा पर हमारा मिशन अज्ञात का पता लगाने के हमारे संकल्प का एक प्रमाण है.’’
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उन्होंने कहा, ‘‘चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव वैज्ञानिक अवसरों का खजाना प्रदान करता है. इस क्षेत्र की खोज से मूल्यवान जानकारी प्राप्त होगी, जो चंद्रमा के इतिहास और विकास के बारे में हमारी समझ में योगदान देगी.’’ विशेषज्ञों का कहना है कि मिशन के निष्कर्ष न केवल चंद्रमा के पर्यावरण के बारे में हमारी समझ को समृद्ध करेंगे बल्कि भविष्य के चंद्र अन्वेषण प्रयासों का मार्ग भी प्रशस्त करेंगे. सिवन ने कहा, ‘इन मिशन के माध्यम से, हम नयी तकनीकी क्षमताएं हासिल करेंगे जो अंतरिक्ष अन्वेषण में हमारी विशेषज्ञता का विस्तार करेगी. प्रत्येक मिशन में अभूतपूर्व विज्ञान प्रयोगों की क्षमता है जो चंद्रमा के रहस्यों के बारे में हमारी समझ को व्यापक बनाएगी.’
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