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Explainer: क्या आप जानते हैं भारत में कंप्यूटर क्रांति के जनक और डिजिटल इंडिया के वास्तुकार कौन थे?

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वर्ष 1984 में राजीव गांधी ने जब भारत के प्रधानमंत्री के तौर कार्यभार संभाला, तो उन्होंने देश को एक नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए कंप्यूटर क्रांति की शुरुआत की.

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नई दिल्ली : आज पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 78वीं जयंती है. सुरक्षा गार्ड सतवंत सिंह और बेअंत सिंह द्वारा वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या कर दिए जाने के बाद महज 40 साल की उम्र में राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बने. इससे पहले, वे पायलट की नौकरी किया करते थे. राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया, तो विरोधी दल के नेता उन्हें ‘आसमान से टपकाया गया प्रधानमंत्री’ कहा करते थे. लेकिन, उन्होंने अपने आलोचकों को नजरअंदाज करते हुए भारत के विकास के कई दूरदर्शी कदम उठाए. दूरदृष्टि का परिचय देते हुए राजीव गांधी ने भारत में न केवल कंप्यूटर क्रांति की शुरुआत की, बल्कि आज के इंडिया को डिजिटल बनाने के लिए दूरसंचार क्रांति लाने में भी अहम भूमिका निभाई. आइए, आज उनके जन्मदिन के मौके पर भारत के विकास के लिए उन पांच महत्वपूर्ण मील के पत्थरों के बारे में जानते हैं, जिसकी शुरुआत राजीव गांधी ने की थी.

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भारत में कब शुरू कंप्यूटर युग

अगर हम भारत में कंप्यूटर क्रांति के बारे में बात करते हों और भारत में कंप्यूटर युग की शुरुआत की चर्चा न करें, तो यह बेमानी हो जाएगी. बता दें कि भारत में कंप्यूटर युग की शुरुआत वर्ष 1952 में राजीव गांधी के नाना और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में हुई. एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 1952 में कोलकात स्थित भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) द्वारा कंप्यूटर युग की शुरुआत की गई थी.

1956 में शुरू किया गया भारत का पहला डिजिटल कंप्यूटर

आईएसआई कोलकाता द्वारा वर्ष 1956 में भारत का पहला इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कंप्यूटर HEC-2M की स्थापना की गई. आश्चर्यजनक बात यह भी है कि आईएसआई कोलकाता द्वारा स्थापित डिजिटल कंप्यूटर HEC-2M भारत का पहला इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर होने के नाते ही खास नहीं था, बल्कि यह इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसकी स्थापना के साथ ही भारत जापान के बाद एशिया का दूसरा ऐसा देश बन गया था, जिसने कंप्यूटर तकनीक को अपनाया था.

भारत में कंप्यूटर क्रांति के जनक थे राजीव गांधी

यह बात अलग है कि भारत में वर्ष 1956 में ही कंप्यूटर युग की शुरुआत हो गई थी, लेकिन वर्ष 1960 तक देश में डिजिटल कंप्यूटर को कोई खास महत्व नहीं दिया गया. उस वक्त सिर्फ आईबीएम और ब्रिटिश टैब्यूलेटिंग मशीन ये दोनों कंपनियां ही भारत में मैकेनिकल अकाउंटिंग मशीन बेचा करती थीं. वर्ष 1984 में राजीव गांधी ने जब भारत के प्रधानमंत्री के तौर कार्यभार संभाला, तो उन्होंने देश को एक नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए कंप्यूटर क्रांति की शुरुआत की. उनकी इस क्रांति का सुपरिणाम यह निकला कि भारत के लोग न केवल इस नई तकनीक से परिचत हुए, बल्कि कंप्यूटर लोगों के घरों और दफ्तरों तक पहुंच गया.

1991 से सरकारी मदद से कंपनियों ने डेवलप किया सॉफ्टवेयर

राजीव गांधी की ओर कंप्यूटर क्रांति की शुरुआत करने के बाद वर्ष 1991 में भूमंडलीकरण के दौर में सरकार की मदद से निजी क्षेत्र की कंपनियों ने सॉफ्टवेयर बनाना शुरू किया और इसमें काफी प्रगति हुई. 1998 में भारत सरकार ने सूचना तकनीक को ‘भारत का भविष्य’ घोषित कर दिया. साल 1991 में दूसरे देशों में कंप्यूटर निर्यात करने पर लगाए जाने वाले शुल्क को हटा दिया गया. सॉफ्टवेयर कंपनियों को निर्यात से हुए फायदे पर 10 साल तक के लिए टैक्स से राहत दी गई. अब देश में सौ फीसदी इक्विटी के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आने की इजाजत मिल गई.

दूरसंचार क्रांति

राजीव गांधी को न केवल ‘भारत की सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार क्रांति का जनक’ कहा जाता है, बल्कि उन्हें डिजिटल इंडिया के वास्तुकार के रूप में जाना जाता है. यह उनके शासन के तहत था कि अत्याधुनिक दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकसित करने और भारतीय दूरसंचार नेटवर्क की जरूरतों को पूरा करने के लिए अगस्त 1984 में सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (सी-डॉट) की स्थापना की गई. सी-डॉट ने भारत के कस्बों और यहां तक कि गांवों में संचार नेटवर्क में क्रांति ला दी. राजीव गांधी के प्रयासों के कारण पीसीओ (पब्लिक कॉल ऑफिस) क्रांति हुई. पीसीओ बूथ ने ग्रामीण क्षेत्रों को भी बाहर की दुनिया से जोड़ा.

1986 में एमटीएनल की हुई स्थापना

वर्ष 1986 में एमटीएनएल (महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड) की स्थापना हुई, जिसने टेलीफोन नेटवर्क के प्रसार में मदद की. तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी के सलाहकार सैम पित्रोदा की मदद से दूरसंचार, पानी, साक्षरता, टीकाकरण, डेयरी और तिलहन से संबंधित छह प्रौद्योगिकी मिशन स्थापित किए गए थे.

देश के विकास में राजीव गांधी के अन्य योगदान : 
मतदान की उम्र को किया कम

चूंकि राजीव गांधी स्वयं एक युवा थे, इसलिए उन्होंने युवाओं को सशक्त बनाने की दिशा में कई अहम कदम उठाए गए. राजीव गांधी के कार्यकाल संविधान का 61वां संशोधन अधिनियम 1989 में पारित किया गया था, जिसमें मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई थी. इस कदम ने युवाओं को राज्यों में लोकसभा सांसदों और विधायकों को चुनने की अनुमति दी.

पंचायती राज की स्थापना

इतना ही नहीं, लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर ले जाने के लिए पंचायती राज संस्थाओं की नींव रखने का श्रेय भी राजीव गांधी को ही जाता है. हालांकि, पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत राजीव गांधी की हत्या के एक साल बाद वर्ष 1992 में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन द्वारा किया गया था. इसकी रूपरेखा उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में तैयार की गई थी.

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नवोदय आवासीय विद्यायल की शुरुआत

प्रधानमंत्री के तौर पर राजीव गांधी ने देश भर में उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनपीई) की घोषणा की. एनपीई के स्थान पर केंद्र सरकार के तहत जवाहर नवोदय विद्यालय नामक आवासीय विद्यालय ग्रामीण प्रतिभाओं को निखारने के लिए स्थापित किए गए. ये स्कूल ग्रामीण आबादी को कक्षा छह से 12 तक मुफ्त आवासीय शिक्षा प्रदान करते हैं.

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