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Happy Birthday Pranab Mukherjee: प्रणब मुखर्जी की प्रतिभा को इंदिरा गांधी ने पहचाना और….

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Happy Birthday Pranab Mukherjee: प्रणब मुखर्जी पांच दशकों तक दिल्ली में सरकारों के बनने-गिरने के गवाह और भागीदार रहे. वह पहली बार जुलाई 1969 में राज्यसभा पहुंचे. पढ़ें उनके जीवन की खास बातें यहां

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देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी एक किताब को लेकर इन दिनों काफी चर्चा में हैं. दरअसल, उनकी बेटी शर्मिष्ठा ने अपनी आने वाली पुस्तक ‘इन प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स’ में कई तरह की बातों का उल्लेख किया. आज हम प्रणब मुखर्जी की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 11 दिसंबर 1935 को उनका जन्म हुआ था, या यूं कहें कि आज उनका जन्मदिन है. आइए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें…

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इंदिरा गांधी ने प्रणब मुखर्जी की प्रतिभा को पहचाना

देश के पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन कांग्रेस छोड़ने के बाद 1969 में पश्चिम बंगाल की मेदिनीपुर लोकसभा सीट से उप-चुनाव में बतौर निर्दलीय खड़े थे. इस चुनाव में उनको जीत दिलाने में प्रणब मुखर्जी के प्रचार अभियान की बड़ी भूमिका रही. यहीं से इंदिरा गांधी की नजर में वे आए और इंदिरा गांधी ने उन्हें कांग्रेस में शामिल किया. यहीं से उनके जीवन में एक नया सूरज उगा. वे बंगाल की राजनीति से निकल कर दिल्ली आये और दिल्ली में अपनी पैंठ जमाते चले गये. उनका संसदीय जीवन करीब 53 साल पहले शुरू हुआ. वह पहली बार जुलाई 1969 में राज्यसभा में चुन कर आये. उसके बाद वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी राज्यसभा के लिए चुने गये. वह 1980 से 1985 तक राज्यसभा में सदन के नेता भी रहे.

प्रणब मुखर्जी की बात करें तो उन्होंने मई 2004 में लोकसभा के चुनाव में जीत दर्ज की. फरवरी 1973 में पहली बार केंद्रीय मंत्री बनने के बाद मुखर्जी ने करीब 40 वर्षों में कांग्रेस की या उसके नेतृत्व वाली सभी सरकारों में मंत्री पद संभालने का काम किया. 2004 और 2009 की यूपीए सरकारों में प्रणब मुखर्जी, सरकार और कांग्रेस पार्टी के संकटमोचक के तौर पर काम करते दिखे. उन्होंने 26 जून 2012 को वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दिया और इसी के साथ सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया. लेकिन एक नयी भूमिका उनका इंतजार कर रही थी. एक महीने बाद उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और नये पारी की शुरूआत की.

एक नजर में ये भी जानें

-40 साल केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहे

-फरवरी 1973 से अक्तूबर 1974 तक उप मंत्री

-अक्तूबर 1974 से दिसंबर 1975 तक वित्त राज्य मंत्री

-दिसंबर 1975 से मार्च 1977 राजस्व और बैंकिंग मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)

-जनवरी 1980 से जनवरी 1982 तक वाणिज्य मंत्री

-जनवरी 1982 से दिसबंर 1984 तक वित्त मंत्री

-जनवरी 1993 से फरवरी 1995 तक वाणिज्य मंत्री

-फरवरी 1995 से मई 1996 तक विदेश मंत्री

-मई 2004 से अक्तूबर 2006 तक रक्षा मंत्री

-अक्तूबर 2006 से मई 2009 तक विदेश मंत्री

-जनवरी 2009 से जून 2012 तक वित्त मंत्री

कुछ वक्त कांग्रेस से अलग क्यों रहे प्रणब मुखर्जी जानें

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई इसके बाद, उनके पुत्र राजीव गांधी की सरकार में प्रणब मुखर्जी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया और राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम से अपनी खुद की पार्टी बना ली. लेकिन पीवी नरसिम्हा राव जब प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने प्रणब दा को योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाकर उनकी कांग्रेस की मुख्यधारा में वापसी करा दी.

Also Read: ‘जब मिलते थे पैर छूते थे’, नरेंद्र मोदी और प्रणब मुखर्जी की मुलाकात होती थी खास

पिता एक स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेसी थे

11 दिसंबर 1935 को, पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिरिती गांव में कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहां हुआ. पिता कामदा किंकर मुखर्जी, एक स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेसी थे, जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ते हुए 10 वर्ष से भी अधिक जेल में रहे. वह पश्चिम बंगाल विधान परिषद (1952- 64) के सदस्य‍ तथा जिला कांग्रेस समिति, बीरभूम के अध्यक्ष रहे. प्रणब मुखर्जी का विवाह शुभ्रा मुखर्जी से हुआ, जो बांग्लादेश के जशोर में 17 सितंबर, 1940 को पैदा हुई थीं. उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी और बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी, दोनों ही राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं. अभिजीत पिता द्वारा खाली की गयी लोकसभा सीट जंगीपुर से 2012 में सांसद निर्वाचित हुए थे.

शिक्षा और करियर की बात

प्रणब मुखर्जी की बात करें तो उन्होंने गांव में ही स्कूली पढ़ाई की. सात किलोमीटर चल कर, नदी पार करके वह स्कूल पहुंचते थे. कॉलेज के लिए वह सिउड़ी स्थित विद्यासागर कॉलेज गये. बाद में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति शास्त्र में पीजी डिग्री हासिल की है. कानून में भी डिग्री ली. प्रणब मुखर्जी की पहली नौकरी अपर डिवीजन क्लर्क की थी. कोलकाता के उप-महा लेखाकार कार्यालय (डाक एवं तार) में. 1963 में उन्होंने कोलकाता के पास विद्यानगर कॉलेज में लेक्चरर का पदभार संभाला. इस दौरान भी उनकी राजनीतिक सक्रियता जारी रही. चंद वर्षों बाद ही वह पूरी तरह से राजनीति में ही रम गये.

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