19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

National Youth Day: युवाओं के आदर्श हैं स्वामी विवेकानंद, पढ़ें उनके 12 मंत्र

Advertisement

National Youth Day: अपने विचारों से स्वामी विवेकानंद युवाओं को सदैव आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिए भी प्रेरित करते रहेंगे. इस वर्ष स्वामी विवेकानंद की 162वीं जयंती है. इस मौके पर पढ़िए प्रभात खबर की विशेष प्रस्तुति.

Audio Book

ऑडियो सुनें

National Youth Day: स्वामी विवेकानंद का समस्त जीवन हमें अनुशासन, एकाग्रता, जिज्ञासा और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण की सीख देता है. उनका मानना था कि दुनियाभर की सारी समस्याएं सुलझाने की क्षमता युवाओं में है. उनका व्यक्तित्व इतना प्रेरक है कि अपने 39 वर्ष के छोटे-से जीवनकाल में ही वह देश की युवा पीढ़ी के लिए सैकड़ों वर्ष आगे की कार्ययोजना बना गये. वह कहते थे कि कामयाबी न मिले तो हिम्मत मत हारो, कोशिश जारी रखो और नाकामियों से सबक लेकर संघर्ष करते रहो. एक दिन जीत तुम्हारे कदमों में होगी. अपने विचारों से स्वामी विवेकानंद युवाओं को सदैव आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिए भी प्रेरित करते रहेंगे. इस वर्ष स्वामी विवेकानंद की 162वीं जयंती है. उनके जन्मदिन पर हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है.

- Advertisement -

स्वामी विवेकानंद युवाओं के आदर्श

  • दुर्बलता पर जीत का मंत्र

जब भी कोई युवा स्वामी विवेकानंद के पास आकर गीता के संदेश को समझाने की बात करता, तो स्वामी जी कहते कि ‘यदि गीता के संदेश को समझना चाहते हो तो जाओ पहले मैदान में जाकर फुटबॉल खेलो’. यह बात सुन कर युवा सोच में पड़ जाते. इस पर स्वामीजी ने समझाया कि अर्जुन जैसी मजबूत मांसपेशियां होंगी, तभी तुम गीता का संदेश समझने के योग्य होगे. उनका मानना था कि दुर्बलता युवा की सफलता की राह में सबसे बड़ी बाधक है.

  • राष्ट्र सेवा की परिभाषा

स्वामी विवेकानंद एक मानवतावादी चिंतक थे. उनके अनुसार, मनुष्य का जीवन ही एक धर्म है. उनका मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति अपने ईश्वर का अनुभव स्वयं कर सकता है. उन्होंने कहा कि मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित और हर जाति का निर्धन मनुष्य है. इस प्रकार स्वामी विवेकानंद ने गरीबी को ईश्वर से जोड़ कर दरिद्रनारायण की अवधारणा दी, ताकि इससे लोगों को वंचित वर्गों की सेवा के प्रति जागरुक किया जा सके. साथ ही उनकी स्थिति में सुधार लाने हेतु प्रेरित भी किया जा सके. उन्होंने कहा कि ‘जब तक देश के लाखों लोग भूख और अज्ञानता से पीड़ित होंगे, मैं हर उस व्यक्ति को कृतघ्न मानता रहूंगा, जो अपने खर्च पर खुद तो शिक्षित हो गये, लेकिन भूख और अज्ञानता को मिटाने पर ध्यान नहीं दिया.’ उन्होंने गरीबों के कल्याण हेतु कार्य करने को ही राष्ट्र सेवा बताया है. स्वामी विवेकानंद कहते थे कि जीते केवल वही हैं, जो जरूरतमंद लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं.

  • गुलाम का कोई धर्म नहीं होता

वर्ष 1901 में एक युवा हेमचंद्र घोष ने ढाका में स्वामी विवेकानंद से धर्म चर्चा करनी चाही. स्वामी जी ने बस एक वाक्य कहा और हेमचंद्र को अपने जीवन का ध्येय मिल गया. स्वामी जी ने कहा कि ‘गुलाम का कोई धर्म नहीं होता है, जाओ पहले अपनी मां (भारत माता) को स्वतंत्र करो’. स्वामी जी का उत्तर हेमचंद्र को चुभ गया. इसके बाद वह एक प्रखर क्रांतिकारी के रूप में उभर कर सामने आये. इसी प्रकार जतिन मुखर्जी स्वामी जी के पास संन्यास की अपेक्षा से गये थे. स्वामी जी ने उन्हें क्रांति के कार्य में सक्रिय होने की प्रेरणा दी और फिर बाघा जतिन बन कर उन्होंने अंग्रेजों की नींद हराम कर दी.

  • सज्जनता की पहचान

स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भी संन्यासियों की वेशभूषा में रहते थे. गेरुआ वस्त्र, सिर पर पगड़ी, हाथ में डंडा और कंधों पर चादर डाली हुई थी. इसी वेशभूषा में वे एक दिन शिकागो में भ्रमण कर रहे थे. स्वामी जी के पीछे चल रही एक अमेरिकी महिला ने अपने साथी से कहा, जरा इनको तो देखो, कैसी विचित्र पोशाक पहन रखी है. स्वामी जी को महिला की बात समझते देर न लगी कि उनके पहनावा को अमेरिकी हेय दृष्टि से देख रहे हैं. स्वामी जी रुक गये और बोले- बहन, मेरे इन वस्त्रों को देखकर आश्चर्य मत करो. आपके देश में कपड़े ही सज्जनता की कसौटी हैं, किंतु मैं जिस देश से आया हूं, वहां सज्जनता की पहचान मनुष्य के कपड़े नहीं, उसके चरित्र से होती है.

  • छोटों से भी सीख सकते हैं हम

एक बार स्वामी विवेकानंद भारत भ्रमण करते हुए खेतड़ी के राजा के पास गये. राजा ने उनका बहुत सम्मान किया. उनके सम्मान में एक भजन गायिका नर्तकी बुलायी गयी. जब स्वामी जी ने नर्तकी को देखा तो वे वहां से चले जाना चाहते थे, लेकिन राजा ने आग्रह कर उन्हें बैठा लिया. नर्तकी ने गाना शुरू किया- ‘प्रभुजी अवगुन चित न धरो’ भाव था, ‘हे नाथ आप समदर्शी हैं, जो लोहा कसाई की कटार में है, वही मंदिर की कलश में है. पारस इनमें भेद नहीं करता. वह दोनों को स्पर्श से कुंदन बना देता है. जल यमुना का हो या नाले का, दोनों जब गंगा में गिरते हैं, गंगाजल हो जाते हैं.’ हे नाथ फिर यह भेद क्यों? आप मुझे शरण में लें.’ यह सुन स्वामी जी की आंखों से आंसू छलक पड़े. एक संन्यासी को सचमुच एक नर्तकी से अद्वैत वेदांत की शिक्षा मिली.

  • कहीं से भी मिल सकती है प्रेरणा

पोरबंदर के एक पंडित ने कहा- स्वामी जी, भारत में धर्म के अनेक पंडित हैं, यहां आपकी बात कौन सुनेगा? आप विदेश जाएं. स्वामी जी अमेरिका गये. कुछ दिन भ्रमण करते उनकी जमा पूंजी खत्म हो गयी. एक व्यक्ति ने उन्हें बोस्टन जाने का किराया दिया और धर्म सम्मेलन के एक सदस्य के नाम पत्र भी. वह भी राह में कहीं खो गया. ठंड के चलते उन्हें लकड़ी के बक्से में रात बितानी पड़ी. सुबह पैदल ही चल पड़े. थक कर एक भवन के नीचे बैठकर सोचने लगे, अब क्या करूं? पत्र भी खो गया. धर्म सम्मेलन में प्रवेश कैसे हो? आखिरकार, ईश्वर ने उनकी बात सुन ली. उस भवन से एक संभ्रांत महिला उस दिव्य मुख मंडल वाले संन्यासी को एकटक देख रही थी. उसने स्वामी विवेकानंद को ऊपर बुलाया. वह एच डब्ल्यू हैल थीं. उनकी पहुंच इस विश्व सम्मेलन के सदस्यों तक थी. बस, स्वामी जी को अनौपचारिक रूप से ही सही सम्मेलन में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो गया.

  • सहनशीलता का महत्व

एक बार स्वामी विवेकानंद रेलगाड़ी के फर्स्ट क्लास डिब्बे में बैठे हुए थे. उस समय फर्स्ट क्लास में सफर करना भारतीयों के लिए आसान नहीं था. यात्रा के बीच में दो अंग्रेज उनके पास आकर बैठे. दोनों फर्स्ट क्लास में एक साधु को देखकर हैरान थे. दोनों विवेकानंद को देख कर साधु की बुराई करने लगे. वे कह रहे थे कि साधु दूसरों के पैसों से फर्स्ट क्लास में सफर करते हैं. दोनों बहुत देर तक स्वामी विवेकानंद की आलोचना करते रहे, लेकिन स्वामी विवेकानंद चुपचाप रहे. कुछ समय बाद उस डिब्बे में टिकट चेकर आया. जब वह स्वामी जी के पास पहुंचा, तो स्वामी विवेकानंद ने उससे अंग्रेजी में बातें की. यह देख कर दोनों अंग्रेज हैरान हो गये. दोनों ने स्वामी विवेकानंद से कहा कि आप अंग्रेजी जानते हैं, फिर भी अपनी बुराई सुन कर आप चुप थे. आपने हमें जवाब क्यों नहीं दिया? स्वामी जी बोले कि आप जैसे लोगों की आलोचनात्मक बातों से ही मेरी सहनशक्ति निखरती है. आपके विचार आपने प्रकट किये और मैंने उन बातों को सहन करने का निर्णय लिया. अगर मैं आप पर गुस्सा करता तो मेरा ही नुकसान होता.

  • आप जैसा सोचेंगे, वैसे बन जायेंगे

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि आप जो भी सोचते हैं, आप वैसे ही हो जायेंगे. यदि आप सोचते हैं कि आप कमजोर हैं, तो आप कमजोर हो जाते हैं. वहीं, अगर आप खुद को शक्तिशाली समझते हैं, तो आप शक्तिशाली हो जाते हैं. सही मायने में स्वामी विवेकानंद के संदेश तर्क की कसौटी पर खरे उतरते हैं.

  • आधुनिकीकरण को भी स्वीकारें

स्वामी विवेकानंद जब पश्चिमी देशों की यात्रा से वापस लौटे, तो भारत की संस्कृति को लेकर उनकी तार्किक व्याख्या से प्रेरित होकर उनके साथ उनके अमेरिकी व यूरोपीय अनुयायी भी भारत आये. वर्ष 1897 में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. इसमें उन्हें इन अनुयायियों का भी सहयोग मिला. स्वामी विवेकानंद ने बल दिया कि पश्चिम की भौतिक और आधुनिक संस्कृति की ओर भारतीय आध्यात्मिकता का प्रसार तो हो. साथ ही वह भारत के वैज्ञानिक आधुनिकीकरण के पक्ष में भी मजबूती से खड़े हुए. उन्होंने जगदीश चंद्र बोस की वैज्ञानिक परियोजनाओं का भी समर्थन किया. स्वामी विवेकानंद ने आयरिश शिक्षिका मार्गरेट नोबल (जिन्हें उन्होंने ‘सिस्टर निवेदिता’ का नाम दिया) को भारत आमंत्रित किया, ताकि वे भारतीय महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में सहयोग कर सकें. स्वामी विवेकानंद ने ही जमशेदजी टाटा को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस और टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की स्थापना हेतु प्रेरित किया.

  • सत्य का साथ कभी न छोड़ें

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही मेधावी छात्र थे. उनके सभी साथी भी उनके व्यक्तित्व से प्रभावित रहते थे. जब वे अपने साथी छात्रों को कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते थे. एक दिन कक्षा में वे कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब मास्टर जी कक्षा में आये और पढ़ाना शुरू कर दिया. मास्टर जी ने अभी पढ़ाना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनायी दी. कौन बात कर रहा है? मास्टर जी ने तेज आवाज में पूछा. सभी छात्रों ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की तरफ इशारा कर दिया. इतना सुनते ही मास्टर जी क्रोधित हो गये. उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबधित प्रश्न पूछने लगे. जब कोई भी उत्तर नहीं दे पाया, तब अंत में मास्टर जी ने विवेकानंद से भी वही प्रश्न किया. उन्होंने आसानी से उस प्रश्न का उत्तर दे दिया. यह देख मास्टर जी को यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बातचीत में लगे हुए थे, फिर क्या था. उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी. सभी छात्र एक-एक कर बेंच पर खड़े होने लगे, स्वामी जी ने भी यही किया. मास्टर जी बोले- नरेंद्र तुम बैठ जाओ. नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा, क्योंकि वह मैं ही था, जो इन छात्रों से बात कर रहा था. शिक्षक विवेकानंद की सच बोलने की हिम्मत देख बहुत प्रभावित हुए.

  • हमेशा दयालुता का भाव रखें

एक दिन स्वामी विवेकानंद की माता ने उनसे कहा पुत्र मुझे छूरी लाकर दो. स्वामी विवेकानंद छूरी लेकर आये और उसकी धार को अपनी तरफ रखा और पकड़ने वाले हिस्से को मां की तरफ किया. उनकी माताजी उनसे काफी प्रसन्न हुईं और बोलीं कि अब तुम समाज के उत्थान के लिए काम कर सकते हो. उन्होंने अपनी मां से उनके इस सोच का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा- जिस तरह से तुमने मुझे छूरी पकड़ायी, तुमने धार को अपनी तरफ रखा, ताकि मुझे चोट न पहुंचे. इससे तुम्हारी दयालुता का पता चलता है. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने स्वामी विवेकानंद से कहा कि जैसा ध्यान तुमने मेरा रखा, वैसा ही ध्यान तुम्हें सब लोगों का और इस पूरे समाज का भी रखना है.

  • विनम्रता है अनमोल गुण

एक बार जब स्वामी विवेकानंद इंग्लैंड में थे, तो वहां लंदन प्रवास में बातचीत के दौरान स्वामी विवेकानंद ने अपने मित्र की अंग्रेजी को ठीक किया. उनके मित्र ने यह कहते हुए उनका विरोध किया कि अंग्रेजी उनकी मातृभाषा है और वह जो कह रहे हैं, उसे ठीक करने की कतई जरूरत नहीं है. स्वामी विवेकानंद मुस्कुराए और बड़ी नम्रता से बोले- मुझे भाषा का ज्ञान है, क्योंकि मैंने भाषा सीखी है और तुमने सिर्फ प्राप्त की है. उनकी इस बात को सुनकर उनके मित्र अभिभूत हुए बिना न रह सके. यह उनके जीवन के अनगिनत किस्सों में से एक है, जहां स्वामीजी ने अपनी प्रतिभा, ज्ञान, तथ्य और करुणा के भाव से लोगों के हृदय पर एक गहरी छाप छोड़ी.

कुछ किताबें

यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद के द्वारा दिये गये भाषणों का संकलन उनकी कई किताबों में मिलता है. स्वामी विवेकानंद की लिखित किताबों में ज्ञानयोग, राजयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, , माइ मास्टर, लेक्चर्स फ्रॉम कोलंबो टू अल्मोड़ा प्रमुख हैं.

  • ज्ञानयोग, प्रकाशक : रामकृष्ण मठ (मूल्य ~80)

पुस्तक में वेदांत पर दिये गये उनके भाषणों का संग्रह है. स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषणों में वेदांत के गूढ़ तत्वों की सरल, स्पष्ट और सुंदर रूप से विवेचना की है. पुस्तक बताता है कि कैसे मनुष्य के विचारों का उच्चतम स्तर वेदांत है.

  • कर्मयोग, प्रकाशक : रामकृष्ण मठ (मूल्य ~40)

यह स्वामी विवेकानंद की एक विख्यात पुस्तक है. इस किताब का हर अध्याय स्वामी विवेकानंद के व्याख्यानों का संकलन है. इसमें स्वामी विवेकानंद द्वारा दिसंबर, 1895 से जनवरी, 1896 के बीच दिये भाषण शामिल किये गये हैं.

  • भक्ति योग, प्रकाशक : रामकृष्ण मठ (मूल्य ~25)

भक्ति के अलग-अलग साधनों की विवेचना. इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद ने भक्ति के लक्षण का वर्णन करते हुए लिखा है कि निष्कपट भाव से ईश्वर की खोज को भक्तियोग कहते हैं. इस खोज का आरंभ मध्य और अंत प्रेम में होता है.

25 वर्ष की उम्र में लिया संन्यास

विवेकानंद जब 18 वर्ष के थे तो रामकृष्ण परमहंस से मिले. 25 वर्ष की उम्र में उन्होंने संन्यास ले लिया.

  • बचपन का नाम : नरेंद्र नाथ दत्त

  • जन्म : 12 जनवरी, 1863 (कोलकाता)

  • मृत्यु : 4 जुलाई, 1902 (बेलूर मठ)

  • माता-पिता : भुवनेश्वरी देवी, विश्वनाथ दत्त

  • गुरु : रामकृष्ण परमहंस

  • दर्शन : वेदांत, राज योग

  • संस्था : वर्ष 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना

Also Read: जमशेदपुर के स्वामी विवेकानंद सेवा ट्रस्ट में हुई जालसाजी की CBI जांच शुरू

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें