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मदर्स डे सेलिब्रेशन कैसे करें! जब झारखंड की 32 प्रतिशत मां स्वस्थ ही नहीं

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Mothers Day : हर साल की तरह इस साल भी हम ‘हैप्पी मदर्स डे’ का सेलिब्रेशन कर रहे हैं. सोशल मीडिया में ‘हैप्पी मदर्स डे’ ट्रेंड कर रहा है सभी अपनी-अपनी मां की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं. सबकी मां बेमिसाल है और सभी उनसे बेहद प्यार करते हैं. लेकिन क्या यह सच है? यह बड़ा सवाल है, क्योंकि देश में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति कुछ और ही सच्चाई बयां करती हैं. झारखंड की आधी आबादी एनिमिया की शिकार है और 30 प्रतिशत से अधिक आबादी कुपोषित है. ‘मां’ या फिर भविष्य में मां बनने वाली महिलाओं की स्थिति पर अगर हम गौर करें तो आंकड़ें चौंकाने वाले हैं.

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हर साल की तरह इस साल भी हम ‘हैप्पी मदर्स डे’ का सेलिब्रेशन कर रहे हैं. सोशल मीडिया में ‘हैप्पी मदर्स डे’ ट्रेंड कर रहा है सभी अपनी-अपनी मां की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं. सबकी मां बेमिसाल है और सभी उनसे बेहद प्यार करते हैं. लेकिन क्या यह सच है? यह बड़ा सवाल है, क्योंकि देश में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति कुछ और ही सच्चाई बयां करती हैं. झारखंड की आधी आबादी एनिमिया की शिकार है और 30 प्रतिशत से अधिक आबादी कुपोषित है. ‘मां’ या फिर भविष्य में मां बनने वाली महिलाओं की स्थिति पर अगर हम गौर करें तो आंकड़ें चौंकाने वाले हैं.

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महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी स्वास्थ्य को लेकर होती है, लेकिन आज भी सरकारें इस ओर विशेष ध्यान नहीं देती हैं. यही कारण है कि झारखंड की 65 प्रतिशत से अधिक महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. एनएफएचएस-4 के अनुसार प्रदेश में छह से 59 माह की बच्चियां सबसे ज्यादा एनिमिया से पीड़ित हैं. शहरी इलाकों में जहां 63.2 प्रतिशत बच्चियां एनेमिक हैं, तो ग्रामीण इलाकों में 71.5 प्रतिशत. वहीं 15 से 49 वर्ष की ऐसी महिलाएं जो गर्भवती नहीं हैं, उनमें से 59.7 प्रतिशत शहरी इलाकों में और 67.5 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में एनिमिया की शिकार हैं.

15 से 49 साल की ऐसी महिलाएं जो गर्भवती हैं उनमें से 57.3 प्रतिशत शहरी इलाकों में और 63.7 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में एनिमिया की शिकार हैं. झारखंड में महिलाओं के बीच कुपोषण भी एक बड़ी समस्या है. प्रदेश की लगभग 32 प्रतिशत महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं. ग्रामीण इलाकों में 35.4 प्रतिशत महिलाएं अंडरवेट हैं, जबकि शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 21.6 प्रतिशत है.

माहवारी के दौरान साफ-सफाई नहीं रखने के कारण भी महिलाओं को कई तरह की बीमारी होती है, जिसमें अत्यधिक रक्तस्राव, योनि से स्राव और गर्भाशय में इंफेक्शन शामिल है. बावजूद इसके अभी भी झारखंड में सौ प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान साफ-सफाई का पूरा ध्यान नहीं रखती हैं. आंकड़ों के अनुसार शहरी इलाकों में 77.2 प्रतिशत महिलाएं सुरक्षित नैपकिन या कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 39.4 प्रतिशत है.

झारखंड की यह एक सच्चाई है कि आज भी कई महिलाओं को संस्थागत प्रसव की सुविधा नहीं मिलती है, जिसके कारण कई बार जच्चा-बच्चा की जान पर बन आती है. अभी भी प्रदेश में संस्थागत प्रसव का प्रतिशत शहरों में 81.5 और ग्रामीण इलाकों में 57.3 प्रतिशत है. वहीं डॉक्टर, एएनएम या सहिया के संरक्षण में प्रसव का की दर शहरों में 86.8 और ग्रामीण इलाकों में 65.6 प्रतिशत है. वहीं प्रसव के बाद डॉक्टरी देखभाल का प्रतिशत शहरों में 58.2 और गांव में 40 प्रतिशत है. जननी सुरक्षा योजना के तहत मांओं को मिलने वाली सुविधा की बात अगर करें तो शहरी क्षेत्रों में इसका लाभ 25.2 और ग्रामीण इलाकों में 47.4 प्रतिशत है.

शिक्षा के क्षेत्र में भी अभी महिलाओं के लिए बहुत काम किया जाना शेष है. झारखंड की शहरी महिलाएं तो लगभग 79 प्रतिशत साक्षर हैं, लेकिन मात्र 51.5 प्रतिशत ही ग्रामीण महिलाएं साक्षर बन पायी हैं. स्कूली शिक्षा की बात करें तो अभी भी शहरी महिलाओं में मात्र 51.1 प्रतिशत ही 10 वर्ष तक स्कूल जा पायीं हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा ‘पेन क्रियेट’ करने वाला है, जहां कि सिर्फ 20.2 प्रतिशत महिलाएं ही 10 वर्ष तक स्कूल जा पायीं हैं.

महिलाओं की सामाजिक स्थिति का अंदाजा लगाने के लिए हमें यह जानना भी बहुत जरूरी है कि उनके साथ घर में किस तरह का व्यवहार होता है. एनएफएचएस-4 के अनुसार हमारे देश में 15-49 वर्ष की महिलाओं में से शहरी इलाकों की 26 प्रतिशत महिलाएं एड्‌स के बारे में जानकारी रखती हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में मात्र 11.7 प्रतिशत महिलाएं ही इस बारे में जानती हैं. उनमें से 67.9 प्रतिशत को यह पता है कि कंडोम के इस्तेमाल से एड्‌स से बचा जा सकता है, वहीं ग्रामीण इलाकों में मात्र 36.6 प्रतिशत महिलाएं इस बारे में जानती हैं.

विवाहित महिलाओं में से शहरी क्षेत्रों में 86.2 प्रतिशत महिलाएं घरेलू मामलों में निर्णय में भागीदार बनती हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह प्रतिशत 86.7 प्रतिशत है. शहरी क्षेत्रों की शादीशुदा महिलाओं में से 19.7 प्रतिशत पतियों से पिटती हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 38.8 प्रतिशत है. गर्भवती महिलाओं में यह आंकड़ा शहरी क्षेत्रों में 1.6 और ग्रामीण क्षेत्रों में 3.3 है जो अपने पति से पिटती हैं.

लैंगिक भेदभाव की ओर नजर डालें तो झारखंड में प्रति एक हजार पुरुष पर लड़कियों की संख्या 967 है, हालांकि ग्रामीण इलाकों में आंकड़ा सुकून देने वाला है जहां प्रति एक हजार पुरुष पर महिलाओं की संख्या 1,014. गौर करने वाली बात यह है कि 0-5 वर्ष की आयु वर्ग में यह आंकड़ा प्रति एक हजार पर शहरों में 893 और ग्रामीण इलाकों में 926.

बात अगर महिला सशक्तीकरण की करें आज भी संपत्ति के मामले मामले में मात्र पचास प्रतिशत महिलाओं के हिस्से ही यह अधिकार है. शहरी इलाकों में मात्र 50 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर घर या जमीन है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 49.5 प्रतिशत का है. बैंकों में ऐसे एकाउंट जिन्हें महिलाएं खुद आपरेट करती हैं ऐसे एकाउंट शहरी क्षेत्रों में 55.8 प्रतिशत हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह 40.9 प्रतिशत है. जनधन योजना के तहत जो एकाउंट खुले हैं उनका डाटा इसमें शामिल नहीं है.

महिलाओं के जीवन में शौचालय और रसोई का भी अहम स्थान है. लेकिन सच्चाई यह है कि तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद उन्हें इन दोनों चीजों के लिए परेशानी उठानी पड़ रही है. सरकार शौचालय निर्माण के लिए लोगों को प्रेरित तो कर रही है और कई गांवों में इसकी प्रक्रिया भी जारी है और कई गांव खुले में शौच मुक्त हो चुके हैं, लेकिन महिलाओं के लिए परेशानी अभी भी बनी हुई है, जो उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा दोनों के लिए खतरा है. वहीं अगर सुरक्षित ईंधन की बात करें तो शहरी क्षेत्रों में मात्र 55.4 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में मात्र 6.3 प्रतिशत ही इसका उपयोग करती हैं.

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