15.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 09:50 am
15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

देश में जहां-जहां पड़े प्रभु राम के चरण, बन गए तीर्थ स्थल, जानें मान्यताएं और खासियत

Advertisement

अयोध्या प्रभु राम की जन्मस्थली है, मगर उनके चरण देश के अन्य हिस्सों में भी पड़े हैं, जो धार्मिक आस्था के प्रमुख केंद्र हैं. ऐसे ही कुछ प्रमुख तीर्थस्थलों को केंद्र सरकार ने ‘रामायण सर्किट’ के रूप में चिह्नित किया है. राम मंदिर बनने के खास अवसर पर जानें ‘रामायण सर्किट’ से जुड़े तीर्थों के बारे में...

Audio Book

ऑडियो सुनें

अयोध्या में बने रामलला के भव्य मंदिर में चल रहे प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान को लेकर देशभर में काफी उत्साह है. मंदिर के गर्भगृह में रामलला की मूर्ति को स्थापित कर दिया गया है. इसके साथ ही कल यानी सोमवार को प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान संपन्न हो जायेगा. भले ही अयोध्या प्रभु राम की जन्मस्थली है, मगर उनके चरण देश के अन्य हिस्सों में भी पड़े हैं, जो धार्मिक आस्था के प्रमुख केंद्र हैं. ऐसे ही कुछ प्रमुख तीर्थस्थलों को केंद्र सरकार ने ‘रामायण सर्किट’ के रूप में चिह्नित किया है. इस विशेष अवसर पर जानें ‘रामायण सर्किट’ से जुड़े उन तीर्थों और उनकी धार्मिक मान्यताओं के बारे में…

- Advertisement -

सीतामढ़ी : माता सीता की जन्मस्थली

सीतामढ़ी शहर जगत जननी माता सीता के नाम से प्रख्यात है, जिसका मूल नाम सीतामही है. सीतामढ़ी माता सीता की जन्मस्थली है. रामायण में भी सीताजी के प्राकट्य होने की कथा वर्णित है. कहा जाता है कि जब मिथिलांचल में अकाल पड़ा था, तो राजा जनक को बड़ी चिंता हुई. तभी आकाशवाणी हुई कि राजा स्वयं हल चलाएं तो बारिश होगी. राजा जनक ने हलेष्ठि यज्ञ किया और स्वयं हल चलाना शुरू किया. इसी बीच हल के सीत से एक घड़ा टकराया, जिससे घड़ा टूट गया और उससे एक बच्ची निकली. हल के सीत से बच्ची के प्रकट होने के कारण नाम सीता पड़ा. सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में माता जानकी का भव्य मंदिर है.

बक्सर : भगवान राम की शिक्षा स्थली

बक्सर महर्षि विश्वामित्र की तपोस्थली और प्रभु राम एवं लक्ष्मण की शिक्षा स्थली के रूप से प्रसिद्ध है. गंगा तट पर चरित्रवन में महर्षि विश्वामित्र का आश्रम हुआ करता था. महर्षि विश्वामित्र जब भी यज्ञ करना शुरू करते थे, तब राक्षसी ताड़का यज्ञ को विंध्वस कर देती थी. तब महर्षि विश्वामित्र राक्षसों का संहार करने के लिए अयोध्या से प्रभु राम और लक्ष्मण जी को राजा दशरथ से मांग कर लाये. प्रभु राम ने यहीं पर राक्षसी ताड़का का वध किया था.

दरभंगा : देवी अहिल्या का किया था उद्धार

दरभंगा से करीब 20 किलोमीटर दूर अहियारी गांव में अहिल्या स्थान है, जहां देवी अहिल्या को समर्पित एक मंदिर है. पौराणिक कथा के अनुसार, गौतम ऋषि के शाप के कारण उनकी पत्नी देवी अहिल्या पत्थर बन गयी थीं. जनकपुर जाने के क्रम में जब प्रभु राम यहां पहुंचे, तो गुरु विश्वामित्र के कहने पर देवी अहिल्या का उद्धार किया. रामजी के चरण स्पर्श से अहिल्या फिर से अपने रूप में वापसी हो गयीं. तभी से यह स्थान अहिल्या स्थान के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

नागपुर : जहां भगवान राम और ऋषि अगत्स्य मिले थे

प्रभु राम ने इस स्थान पर चार महीने तक सीताजी व लक्ष्मण के साथ समय बिताया था. महाराष्ट्र के नागपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित रामटेक मंदिर भगवान राम का अद्भुत मंदिर है. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि प्रभु राम ने वनवास के दौरान इस स्थान पर चार महीने तक माता सीता और लक्ष्मण के साथ समय बिताया था. साथ ही माता सीता ने यहां पहली रसोई भी बनायी थी. उन्होंने खाना बनाने के बाद ऋषि-मुनियों को भोजन कराया था. इस बात का वर्णन पद्मपुराण में भी है. रामटेक ही वह स्थान है, जहां भगवान राम और ऋषि अगत्स्य मिले थे. ऋषि अगत्स्य ने न सिर्फ भगवान राम को शस्त्रों का ज्ञान दिया था, बल्कि उन्हें ब्रह्मास्त्र भी प्रदान किया.

नासिक : अपने पिता का किया था अंतिम संस्कार

इस शहर के नाम को लेकर मान्यता है कि यहां लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा की नाक काटी थी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वनवास के दौरान प्रभु राम ने नासिक में प्रवास किया था. नासिक में भगवान राम के पदचिह्नों के रूप में कई मंदिर हैं. इन मंदिरों में भगवान राम की मूर्तियां काले पाषाण से बनी हुई हैं, इसलिए इसे कालाराम कहा जाता है. इस शहर के नाम को लेकर कहा जाता है कि यहां लक्ष्मण जी ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काटी थी, इसलिए इस जगह का नाम नासिक पड़ गया. वहीं, रामकुंड नासिक के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है. कहा जाता है कि यह वही कुंड है, जहां पर श्रीराम ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया था, इसलिए इसे रामकुंड का नाम दिया गया. ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की सभी मुरादें पूरी होती हैं.

शृंगवेरपुर : गंगापार के लिए रुके थे प्रभु राम

शृंगवेरपुर एक धार्मिक स्थल है, जो कि प्रयागराज से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित है. हिंदू धर्म में शृंगवेरपुर धाम प्रभु श्री राम से जुड़े पवित्र स्थलों में से एक है. शृंगी ऋषि के नाम पर शृंगवेरपुर धाम का नाम रखा गया है. एक कथा के अनुसार, वनवास के समय प्रभु राम, माता सीता और लक्ष्मण यहां आये थे. उस समय शृंगवेरपुर निषादराज गुह की राजधानी थी. इसी जगह पर प्रभु राम ने नाव से गंगा पार करने की बात कही. मगर निषादराज ने नाव पार करने की यह शर्त रखी कि प्रभु राम को तभी नदी पार करवायेंगे, जब वह अपने चरणों को धोने की अनुमति देंगे.

चित्रकूट : वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताये

देश के तीर्थस्थलों में से चित्रकूट को प्रमुख माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि प्रभु राम, माता सीता और लक्ष्मण चित्रकूट के घने जंगलों में वनवास के दौरान ठहरे थे.

भद्राचलम : रावण और जटायु के बीच हुआ था युद्ध

गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है. प्रभु राम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताये थे. दंडकारण्य में ही रावण व जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग यहां आ गिरे थे. दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है. वनवास के समय प्रभु राम, सीता और लक्ष्मण भद्राचलम से 35 किमी दूर पर्णशाला में रुके थे. आज जहां पर भद्राचलम का मंदिर है, वहीं से सीता की खोज में लंका की ओर जाने के लिए राम ने गोदावरी नदी पार की थी.

हम्पी : राम भक्त हनुमान जी की जन्मस्थली

हम्पी, कर्नाटक के सबसे प्रमुख शहरों में से एक है. इस शहर का जिक्र रामायण में भी है. रामायण काल में इस शहर को किष्किंधा के नाम से जाना जाता था. किष्किंधा जो पहले बाली और फिर सुग्रीव का राज्य था. यही वह स्थान है, जहां हनुमान जी की भेंट सुग्रीव से हुई थी. हम्पी में एक अनेगोंडी नामक गांव है, जहां एक ‘अंजनाद्रि’ नाम का पर्वत है. यहीं पर हनुमान जी का जन्म हुआ था. इस पर्वत के दर्शन के लिए कई भक्त आते हैं. पर्वत पर स्थित माता अंजनी, हनुमान मंदिर और भगवान राम के मंदिर में मत्था टेकते हैं.

जगदलपुर : वनवास के दौरान रामजी ने बिताया यहां लंबा वक्त

वनवास के दौरान प्रभु राम, माता सीता और लक्ष्मण बस्तर के रास्ते दक्षिण भारत पहुंचे थे. भगवान राम ने अपने 14 साल के वनवास के दौरान दंडकारण्य क्षेत्र में अपना ज्यादा समय बिताया था. उन्होंने जगदलपुर के चित्रकोट, तीरथगढ़ वाटरफॉल, दलपत सागर व रामपाल मंदिर में लंबा समय गुजारा था.भगवान ने वनवास के तीसरे पड़ाव में अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रम बनाया.

महेंद्रगिरि : अपने वनवास काल में यहां रुके थे प्रभु राम

महेंद्रगिरि ओडिशा के गजपति जिले के परालाखेमुंडी में है, जो आस्था का केंद्र है. महेंद्रगिरि का संबंध रामायण में महेंद्र पर्वत के रूप में है. रामायण के अनुसार, जब प्रभु राम ने शिव का पवित्र धनुष तोड़ा था, तब परशुराम महेंद्रगिरि पर ध्यान कर रहे थे. कहा जाता है कि भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास काल दौरान यहां रुके थे.

रामेश्वरम : भगवान राम ने की थी शिव उपासना

रामेश्वरम हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है. प्रभु राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण द्वारा माता सीता का हरण होने के बाद प्रभु राम यहां लंका जाने के लिए वानर सेना के साथ आये थे. यहीं पर उन्होंने समुद्र से मार्ग देने की प्रार्थना की थी और आसानी से प्रार्थना न सुनने पर उसे बाण से सुखाने के लिए धनुष भी उठा लिया था. रामेश्वरम से ही हनुमान ने लंका के लिए उड़ान भरी थी और उसे स्वाहा कर माता सीता का शुभ समाचार लेकर लौटे थे. कहा जाता है कि रामेश्वरम में ही प्रभु राम ने रावण का वध करने के बाद उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी की उपासना की थी. मान्यता है कि रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना खुद भगवान राम ने की थी.

नंदीग्राम : जहां मौजूद हैं प्रभु राम की पादुकाएं

पवित्र नगर नंदीग्राम में ही भगवान राम के खड़ाऊ को साक्षी मानकर उनके छोटे भरत ने शासन किया था. रामायण के अनुसार, वनवास के लिए जब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ वन की ओर रवाना हुए तो भरत भी उनके साथ चल दिये. मगर प्रभु राम ने उन्हें काफी समझा-बुझाकर नंदीग्राम में ही रोक दिया. प्रभु राम के वनवास जाने के बाद भरत ने नंदीग्राम से ही करीब 14 वर्ष रहकर अयोध्या का शासन चलाया. नंदीग्राम में ही प्रभु राम की चरण पादुकाएं रखी थीं. प्रभु के खड़ाऊ को साक्षी मानकर भरत ने शासन किया था.

Also Read: कैसे बीता श्रीराम का बचपन, पढ़ें अन्नप्राशन से मुंडन तक रामलला की बाल लीला

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें