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भारत-पाक युद्ध में शहीद के बेटे ने अवार्ड के लिए दिया आवेदन, हाई कोर्ट ने दोबारा विचार करने की दी सलाह

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High Court: हाई कोर्ट ने सम्मान और पुरस्कार समिति से कहा है कि वह 58 साल पहले भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए और मरणोपरांत पदोन्नत किए गए एक सैन्य अधिकारी को वीरता पुरस्कार दिए जाने संबंधी उसके बेटे के आवेदन पर विचार करे.

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High Court: हाई कोर्ट ने सम्मान और पुरस्कार समिति से कहा है कि वह 58 साल पहले भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए और मरणोपरांत पदोन्नत किए गए एक सैन्य अधिकारी को वीरता पुरस्कार दिए जाने संबंधी उसके बेटे के आवेदन पर विचार करे. हाई कोर्ट ने कहा कि समिति प्रक्रिया में तेजी लाने पर विचार कर सकती है और तीन महीने के भीतर अपना फैसला दे सकती है. इसने कहा कि इस मामले के तथ्य अद्वितीय हैं और लगभग 58 साल पहले हुए युद्ध से संबंधित हैं, इसलिए, इस आदेश को एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा.

1965 के भारत-पाक युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी

यह आदेश सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर एन बी सिंह की इस याचिका पर आया कि उनके पिता मेजर मोहन सिंह ने 1965 के भारत-पाक युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी और उन्हें वीरता पुरस्कार प्रदान किए जाने पर विचार किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि शहीद होने के दौरान यद्यपि मोहन सिंह कैप्टन थे, लेकिन उन्हें मरणोपरांत मेजर का पद दिया गया था, और यह अपने आप में सैन्य अधिकारी के वीरतापूर्ण कार्य की स्वीकारोक्ति है.

मामले को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाया जाना चाहिए

जस्टिस नजमी वजीरी और जस्टिस सुधीर कुमार जैन की पीठ को याचिकाकर्ता के वकील ने सूचित किया कि उनके मुवक्किल के पिता के मामले पर उपयुक्त समिति द्वारा विचार नहीं किया गया और इस मामले को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाया जाना चाहिए, यानी मेजर मोहन सिंह को वीरता पुरस्कार प्रदान किया जाना चाहिए. पीठ ने कहा- संबंधित परिस्थितियों में, इस अपील को सेना मुख्यालय स्तर पर सम्मान और पुरस्कार समिति द्वारा अपीलकर्ता के प्रतिनिधित्व के रूप में माना जाए.

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