24.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 05:30 pm
24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

हिंदू मंदिरों पर सरकारों का नियंत्रण खत्म होना चाहिए : विक्रम संपत

Advertisement

ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदू पक्ष के दावे का विस्तार से वर्णन किया गया है. लेखक संपत का कहना है कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के बाद मुस्लिमों को इसे हिंदू पक्ष को सौंप देना चाहिए.

Audio Book

ऑडियो सुनें

एक धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन धार्मिक स्थलों के प्रबंधन में भेदभाव होता है. देश में अधिकांश हिंदू मंदिरों पर सरकारों का नियंत्रण है और इससे होने वाली आय गैर हिंदू धार्मिक कामों पर खर्च होता है. काशी-ज्ञानवापी को लेकर मशहूर इतिहासकार विक्रम संपत की एक शोध आधारित पुस्तक ‘वेटिंग फॉर शिवा : अनअर्थिंग द ट्रुथ ऑफ काशी ज्ञानवापी’ जल्द ही बाजार में आने वाली है. इसमें ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदू पक्ष के दावे का विस्तार से वर्णन किया गया है. लेखक संपत का कहना है कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के बाद मुस्लिमों को इसे हिंदू पक्ष को सौंप देना चाहिए. हाल ही में दिल्ली आये संपत से इस किताब के विषय में प्रभात खबर ने विस्तार से बात की. प्रस्तुत है अंजनी कुमार सिंह की उनसे बातचीत के प्रमुख अंश : 

- Advertisement -

हाल में आये अदालती फैसले के बाद ज्ञानवापी को लेकर विवाद गहराता जा रहा है. आप किस आधार पर दावा कर रहे हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए?

इस दावे के ऐतिहासिक साक्ष्य है. मेरी जल्द आने वाली किताब ‘वेटिंग फॉर शिवा: अनअर्थिंग द ट्रुथ ऑफ काशी ज्ञानवापी’ में इसका विस्तार से उल्लेख किया गया है. इसके लिए अदालती सुनवाई को आधार बनाया गया है. वर्ष 1936 में दीन मोहम्मद और अन्य ने ज्ञानवापी को लेकर भारत सरकार के खिलाफ केस किया था. इस मामले में अदालत ने फैसला सुनाया था कि इस्लामिक नियमों के तहत ज्ञानवापी मस्जिद अवैध है और यह हिंदुओं के वर्षों पुरानी परंपरा का अभिन्न हिस्सा है. इस फैसले का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी वर्ष 1942 में सही करार दिया था. हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया था कि ज्ञानवापी के अवशेष से पता चलता है कि मस्जिद बनने से पहले वहां मंदिर मौजूद था. इस्लामिक नियमों के तहत मस्जिद का निर्माण अवैध था. मस्जिद के निर्माण से पहले हिंदुओं की राय नहीं लगी गयी.

अदालती फैसले हिंदुओं के ज्ञानवापी को दावे को कितना पुख्ता करते हैं?

Vikram Sampath

वर्ष 1991 में हिंदू कार्यकर्ताओं ने वाराणसी की अदालत में एक मुकदमा दायर किया. स्थानीय अदालत ने एक विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी. वहीं दीन मोहम्मद बनाम भारत सरकार मामले में मुस्लिम पक्ष ने स्वीकार किया कि मुगल शासकों ने सैकड़ों हिंदू मंदिरों को तोड़ने का काम किया है. इस दौरान भारत सरकार की ओर से कहा गया कि मुगलों का शासन आने से पहले ज्ञानवापी में मूर्तियां मौजूद थी और वहां हिंदू पूजा करते थे. वर्ष 1937 में दिये फैसले में जज ने कहा कि जिस जगह मस्जिद खड़ी है, वह ज्ञानवापी का हिस्सा था.

आखिर आप किस आधार पर अपनी किताब में कहते हैं कि ज्योतिर्लिंग के पुनर्स्थापना काे लेकर सरदार वल्लभभाई की सोच अभी अधूरी है?

हिंदू मंदिरों के पुनर्स्थापना का विचार सरदार पटेल का था. उनके विचार को महात्मा गांधी का समर्थन हासिल था. वर्ष 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दिये संबोधन में गांधी ने काशी विश्वनाथ मंदिर के तंग गलियों को लेकर चिंता जाहिर की थी. उनका मानना था कि मंदिर का जीर्णोद्धार सरकारी पैसे की बजाय आम लोगों के चंदे से किया जाना चाहिए. सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार सरदार पटेल के कारण ही संभव हो पाया, लेकिन अन्य मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम नहीं हो पाया. 

क्या प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को समाप्त किया जाना चाहिए?

ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हाल में आये आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के बाद प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट काे समाप्त किया जाना चाहिए. यह कानून राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बनाया गया. कानून के तहत साक्ष्य होने के बाद भी हिंदू अपने धार्मिक स्थल पर दावा नहीं कर सकता और न ही कानूनी लड़ाई लड़ सकता है. यह हिंदुओं के लिए काला कानून है और लोकतंत्र में ऐसे भेदभाव वाले कानून की जगह नहीं है. तुर्किये की सरकार ऐतिहासिक चर्चाें को मस्जिद में बदल रही है. धार्मिक स्थलों के मामले में यथास्थिति बनाये रखने के लिए बने कानून को अब बदलने की जरूरत है. मुस्लिम देशों में विकास कार्यों के लिए मस्जिदों को तोड़ा जा रहा है. ज्ञानवापी मस्जिद मुस्लिमों के लिए इबादत के लिए पवित्र जगह नहीं है. यह स्थान काशी विश्वनाथ मंदिर का अभिन्न हिस्सा है. यहां हिंदू हजारों साल से पूजा करते आ रहे हैं. सैकड़ों सालों तक हिंदुओं ने इस मंदिर को बचाने के लिए संघर्ष किया है.

आखिर आप क्यों मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण खत्म करने की मांग कर रहे हैं?

V Sampath

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन धार्मिक स्थलों के प्रबंधन में भेदभाव होता है. देश में अधिकांश हिंदू मंदिरों पर सरकारों का नियंत्रण है और इससे होने वाली आय गैर हिंदू धार्मिक कामों पर खर्च होता है. मुस्लिम और ईसाई मस्जिद और चर्च का संचालन खुद करते है, लेकिन मंदिरों पर नियंत्रण सरकार का है. हाल में पेश कर्नाटक के बजट में मंदिरों की आय पर 10 फीसदी कर लगाने का निर्णय लिया था, जबकि मस्जिद और चर्च के रखरखाव पर खर्च सरकारी पैसे से किया जाता है. ऐसे में सरकार को सभी मंदिरों को अपने नियंत्रण से मुक्त करना चाहिए. हिंदू समाज को मंदिरों के प्रबंधन का अधिकार मिलना चाहिए. देश के सिर्फ 10 राज्यों में सरकार के नियंत्रण में 1,10,000 हिंदू मंदिर है. तमिलनाडु में मंदिरों के 4.78 लाख एकड़ भूमि, 36,425 मंदिर और 56 मठ सरकार के नियंत्रण में हैं. इतिहासकार का कहना है कि मंदिर से प्राप्त राजस्व को इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर खर्च किया जा रहा है. मंदिर अपनी कमाई से हिंदू धर्म की शिक्षा और परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए कोई कदम नहीं उठा सकते हैं.

क्या भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में धार्मिक स्थलों पर सरकार का नियंत्रण होना चाहिए?

देखिए, चर्च और मस्जिद अपनी आय से संस्थान चलाते हैं और अपने धर्म को आगे बढ़ाने का काम करते हैं, लेकिन मंदिर अपनी आय से खुद पुजारी को वेतन नहीं दे सकता है और सरकार इससे होने वाली आय दूसरे कामों पर खर्च करते हैं. चर्च और मस्जिद के संचालन के लिए बने बोर्ड में कोई हिंदू शामिल नहीं हो सकता है, लेकिन मंदिर बोर्ड के मामले में ऐसा नहीं है. ऐसे में समानता के आधार पर सरकार को हिंदू मंदिर पर अपना नियंत्रण हटाना चाहिए. हिंदू मंदिरों के आय के प्रयोग दूसरी जगह हो रहा है, लेकिन तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाओं का घोर अभाव दिखता है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें