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कोरोना संकट में हो रही थी आपातकाल की चर्चा, यहां जानें आपतकाल पर सबकुछ

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आज से 45 साल पहले आकाशवाणी में देश के कोने- कोने तक एक आवाज पहूंची. आवाज थी तात्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उन्होंने कहा, 'भाइयों, बहनों... राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है. लेकिन इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है.' इस संबोधन में उन्होंने भले ही कह दिया था कि इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है लेकिन आज भी आपातकाल ने लोगों के जेहन में डर बना रखा है.

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नयी दिल्ली : आज से 45 साल पहले आकाशवाणी में देश के कोने- कोने तक एक आवाज पहूंची. आवाज थी तात्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उन्होंने कहा, ‘भाइयों, बहनों… राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है. लेकिन इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है.’ इस संबोधन में उन्होंने भले ही कह दिया था कि इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है लेकिन आज भी आपातकाल ने लोगों के जेहन में डर बना रखा है.

यही कारण है कि कोरोना वायरस महामारी ने जब देश के स्वास्थ्य पर असर डाला तो चर्चा शुरू हुई आपातकाल की. लोगों के मन में था कहीं आपातकाल ना लागू कर दिया जाए. देशभर में लॉकडाउन हुआ लेकिन चर्चा रही आपातकाल की.

घर में बंद लोगों ने आपातकाल को याद किया राजनीतिक बयानबाजी में भी आपातकाल चर्चा में रहा. हमें आपातकाल का जिक्र करने से पहले आपको यह समझाना बेहद जरूरी है कि आपातकाल क्या है और कब लागू किया जा सकता है. किन परिस्थितियों में आपातकाल लागू हो सकता है.

सबसे पहले समझिये क्या होता है आपातकाल

आपातकाल भारतीय संविधान में एक ऐसा प्रावधान है, जिसका इस्तेमाल तब किया जाता है, जब देश को किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से किसी तरह के खतरे की आशंका होती है.

क्या है आपातकाल , किन परिस्थितियों में बनती है संभावना ?

आपातकाल नाम से ही जाहिर है कि आपात स्थिति में ही इसे लागू किया जा सकता है. इसे युद्ध, राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर लागू किया जा सकता है. संविधान निर्माताओं ने आपात स्थिति के लिए इस पर विचार किया था. इसे समझना हो तो इस तरह समझिये कि अगर कोई दूसरा देश भारत पर आक्रमण करता है तो हमारी सरकार संसद में बिना किसी तरह का बिल पास किये फैसला ले सकती है.

हमारे देश में संसदीय लोकतंत्र है इसलिए देश में किसी भी बड़े फैसले से पहले संसद में बिल पास करना होता है. आपात स्थिति में केंद्र सरकार पर ज्यादा ताकत आ जाती है और केंद्र अपनी आवश्यकता और देशहित को देखते हुए अहम फैसला ले सकता है. आपातकाल के वक्त सरकार के पास इतनी क्षमता होती है कि वह किसी भी प्रकार का फैसला ले सकती है. इसमें आम नागरिकों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं. इसे राष्ट्रपति के द्वारा ही लागू किया जा सकता है. इस दौरान मौलिक अधिकारों का अनुच्छेद 19 स्वत: खत्म हो जाता है लेकिन अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 बने रहते हैं.

क्या है अनुच्छेद 19 और क्या है अनुच्छेद 20, 21 में समझिये

भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है. अनुच्छेद 19 से 22 तक स्वतंत्रता के अधिकार का जिक्र किया गया है. अनुच्छेद 19 में मुख्य रूप से, वाक्–स्वातंत्र्य आदि विषय के अधिकारों का जिक्र है. अनुच्छेद 20 में अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण का जिक्र है जो आपातकाल में भी आपको अधिकार देता है. अनुच्छेद 21 में प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार है.

अब समझिये आपातकाल कितने प्रकार का होता है ?

संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल का जिक्र है. 1 राष्ट्रीय आपातकाल (नेशनल इमरजेंसी) 2 राष्ट्रपति शासन (स्टेट इमरजेंसी) 3. आर्थिक आपातकाल (इकनॉमिक इमरजेंसी)

कब और किन परिस्थितियों में होता है लागू

1. नेशनल इमरजेंसी (अनुच्छेद 352)

राष्ट्रीय आपातकाल का ऐलान युद्ध, बाहरी आक्रमण और राष्ट्रीय सुरक्षा पर किया जा सकता है. इस आपातकाल को कैबिनेट की सिफारिश पर राष्ट्रपति लागू कर सकते हैं. इसमें संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों का अनुच्छेद 19 निलंबित हो जाता है.

2. राष्ट्रपति शासन या स्टेट इमरजेंसी (अनुच्छेद 356)

संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राजनीतिक संकट की वजह से राज्य में राषट्रपति शासन लगाया जाता है. इसे ‘राज्य आपातकाल’ अथवा ‘संवैधानिक आपातकाल’ के नाम से भी जाना जाता है. इतना ध्यान रहे कि संविधान में इस स्थिति के लिए आपातकाल शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है. राज्य में राजनीतिक संकट को देखते हुए राष्ट्रपति आपात स्थिति का ऐलान कर सकते हैं.

अब राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन में फर्क समझ लीजिए

राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)

इसकी घोषणा युद्ध, बाहरी आक्रमण या विद्रोह का खतरा देखकर ही की जा सकती है. इसकी घोषणा के बाद राज्य कार्यकारिणी एवं विधायिका संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत कार्य करती है

राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356)

इसका कारण युद्ध और बाहरी आक्रमण या सैन्य विद्रोह नहीं होता. राज्य में राजनीतिक संकट हो सकता है. इस स्थिति में राज्य की कार्यपालिका बर्खास्त हो जाती है तथा राज्य की विधायिका या तो निलंबित हो जाती है अथवा विघटित हो जाती है.

3 आर्थिक आपातकाल (अनुच्छेद 360)

देश में अबतक आर्थिक आपातकाल लागू नहीं किया गया है. संविधान में इसे बेहतर तरीके से परिभाषित किया गया है. अनुच्छेद 360 के तहत आर्थिक आपात की घोषणा राष्ट्रपति उस वक्त कर सकते हैं, जब उन्हें लगे कि देश में ऐसा आर्थिक संकट बना हुआ है, जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व पर खतरा हो. कोरोना संकट के दौरान इस आपातकाल की भी चर्चा रही यह कहा जाने लगा कि देश में पहली बार आर्थिक आपातकाल लागू हो सकता है. देश में आर्थिक आपातकाल लागू होते ही आम नागरिकों के पैसों और संपत्ति पर देश का अधिकार हो जाता है.

अब समझिये कुछ और जरूरी बातें

आपातकाल की घोषणा के एक महीने के भीतर मंजूरी मिलना जरूरी है. शुरुआत में यह समय सीमा दो महीने के लिए थी लेकिन 1948 के 44वें संशोधन में इसकी समयसीमा घटाकर एक महीने कर दी गयी. अगर आपातकाल की घोषणा ऐसे समय होती है, जब लोकसभा भंग हो गया है. ऐसी स्थिति में लोकसभा के पुर्नगठन के बाद पहली बैठक में इस पर फैसला होगा आपातकाल की घोषणा लोकसभा के पुनर्गठन के बाद पहली बैठक से 30 दिनों तक जारी रहेगी,जबकि इस बीच राज्यसभा द्वारा आपातकाल का अनुमोदन कर दिया गया हो. यदि संसद के दोनों सदनों से आपातकाल का अनुमोदन हो गया हो तो आपातकाल 6 महीने तक जारी रहेगा. हर छहीने में संसद के अनुमोदन से इसे अनिश्चितकाल तक के लिए बढ़ा सकते हैं

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