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CPA: सीपीए सम्मेलन में “सतत एवं समावेशी विकास में विधायी निकायों की भूमिका” पर मंथन

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संसद भवन में दो दिवसीय 10 वें कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन(सीपीए) भारत क्षेत्र सम्मेलन की शुरुआत सोमवार को हुआ जिसमें राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के पीठासीन अधिकारी, विधानसभा अध्यक्ष, विधान सभा के उपाध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति व उपसभापति सहित राज्य के प्रधान सचिवों सहित वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया.

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CPA: संसद भवन में दो दिवसीय राष्ट्रमंडल संसदीय संघ(सीपीए) भारत क्षेत्र सम्मेलन की शुरुआत सोमवार को हुआ जिसमें राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के पीठासीन अधिकारी, विधानसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष, विधान सभा के सभापति व उपसभापति सहित राज्य के प्रधान सचिवों सहित वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश भी बैठक में मौजूद रहें. सम्मेलन में सतत और समावेशी विकास की प्राप्ति में विधायी निकायों की भूमिका पर मंथन किया गया.

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इस सम्मेलन में मुख्य रूप से सतत विकास और समावेशी शासन के लक्ष्य को प्राप्त करने में विधायी संस्थाओं की भूमिका, समावेशी विकास के मार्ग में आने वाली चुनौतियों एवं बाधाओं का समाधान करना साथ ही जनता की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में जनप्रतिनिधियों एवं विधायी निकायों की जिम्मेदारी पर विशेष रूप से चर्चा की गयी. सम्मेलन में  विधानमंडलों की कार्यकुशलता और कार्यप्रणाली में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग पर बल देना, तकनीक के माध्यम से समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए विधायी संस्थाओं द्वारा विभिन्न मंचों का उपयोग करना, जनकल्याणकारी योजनाओं को आकार देना तथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, जब प्रौद्योगिकी और संचार माध्यम लोगों के दैनिक जीवन का हिस्सा बन गए हैं, तब जनप्रतिनिधियों को लोगों की लोकतंत्र से बढ़ती आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को पूरा करने के तौर-तरीके और साधन विधायी संस्थाओं के माध्यम से खोजने पर बल दिया गया. 

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Cpa: सीपीए सम्मेलन में “सतत एवं समावेशी विकास में विधायी निकायों की भूमिका” पर मंथन 3

लोगों की अपेक्षाओं व आकांक्षाओं को पूरा करने में कहां तक हुए सफल

सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के समावेशी विकास के विजन में सुशासन, सामाजिक प्रगति, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता सहित विकास के विभिन्न पहलू शामिल हैं. संसद द्वारा पारित ऐतिहासिक कानूनों से भारत में विकास की गति तेज हुई है और इससे भारत की प्रगति और अधिक समावेशी हुई है, जिसका लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच रहा है. उन्होंने कहा कि विधायी संस्थाओं के सहयोग और समर्थन के बिना आत्मनिर्भर और विकसित भारत का निर्माण संभव नहीं होगा.उन्होंने पीठासीन अधिकारियों और विधायकों से आग्रह किया कि वे इस बात पर चिंतन करें कि पिछले 7 दशकों की यात्रा में देश के विधायी निकाय के रूप में वे लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में कहां तक सफल रहे हैं. इस आत्ममंथन के बिना समावेशी विकास का सपना साकार नहीं हो सकता. बिरला ने पीठासीन अधिकारियों से सामूहिक रूप से काम करते हुए सतत विकास और समावेशी कल्याण के संकल्पों को सिद्धि तक ले जाने का आग्रह किया.

समावेशी शासन का उत्कृष्ट उदाहरण

बिरला ने कहा कि भारत का संविधान समावेशी शासन की भावना का सबसे सशक्त उदाहरण है, जो विकास के पथ पर सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है और हमारा मार्गदर्शन करता है. भारत का भविष्य शासन व्यवस्था को जन-जन की आशाओं एवं आकांक्षाओं के अनुरूप बनाने से ही उज्जवल होगा. तेजी से बदलती दुनिया में भारत समावेशी सहभागिता एवं उत्तरदायी शासन व्यवस्था के माध्यम से एक आदर्श लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में उभर सकता है.

इससे पहले लोक सभा अध्यक्ष ने संसद भवन में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र की कार्यकारी समिति की बैठक की अध्यक्षता की. कार्यकारी समिति में  बिरला ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में जन भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया. उन्होंने सुझाव दिया कि विधायी निकायों को जमीनी स्तर के निकायों, विशेष रूप से पंचायती राज संस्थाओं के साथ मिलकर काम करना चाहिए. ऐसा करके वे लोगों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने की अपनी जिम्मेदारियों का अधिक प्रभावी ढंग से निर्वहन कर सकेंगे.

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