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कोरोना वैक्सीन की 25 फीसदी डोज से 65 फीसदी ग्रामीणों का टीकाकरण मुश्किल, समझिये यहां

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कोरोना महमारी से लड़ने के लिए वैक्सीनेशन एक बड़ा हथियार है. वर्तमान में केंद्र सरकार की वैक्सीनेशन नीति के अनुसार सरकार देश में उत्पादित वैक्सीन का 25 फीसदी हिस्सा निजी निजी क्षेत्र को देती है. क्योंकि टाइम्स ऑफ इंडिया का आकलन दर्शाता है कि बड़े शहरों में निजी वैक्सीनेशन केंद्रो ने अब तक एक चौथाई टीकाकरण किया है. जबकि उन राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक 5 फीसदी से कम आबादी का टीकाकरण हुआ है.

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कोरोना महमारी से लड़ने के लिए वैक्सीनेशन एक बड़ा हथियार है. वर्तमान में केंद्र सरकार की वैक्सीनेशन नीति के अनुसार सरकार देश में उत्पादित वैक्सीन का 25 फीसदी हिस्सा निजी निजी क्षेत्र को देती है. क्योंकि टाइम्स ऑफ इंडिया का आकलन दर्शाता है कि बड़े शहरों में निजी वैक्सीनेशन केंद्रो ने अब तक एक चौथाई टीकाकरण किया है. जबकि उन राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक 5 फीसदी से कम आबादी का टीकाकरण हुआ है.

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निजी क्षेत्रों की वैक्सीनेशन में भागीदारी को समझने के लिए टाइम्स ऑफ इंडिया ने आठ बड़े शहरों के 9000 वैक्सीनेशन केंद्रों का डाटा डाउनलोड किया. इसके अलावा उन्ही राज्यों के उन जिलों के डाटा का भी आंकलन किया जिन जिलों में ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा है. इन केंद्रो को दो भागों में बांटा गया. सरकारी और निजी. रविवार की सुबह सात बजे तक के डाटा का आंकलन किया गया.

आंकड़ो के पता चलता है कि आठ जिलों के निजी वैक्सीनेशन केंद्र द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में 0-3 फीसदी वैक्सीनेशन किया गया है. बाकी दो जिले महाराष्ट्र के हैं जहां निजी केंद्रों के जरिये 5 फीसदी टीकाकरण हुआ है. इससे पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्र जहां जनगणना के मुताबिक 65 फीसदी आबादी रहती है वो टीकाकरण के लिए सरकारी केंद्रों पर ही निर्भर हैं.

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यह दिखाता है कि वर्तमान में स्थिति क्या है. पर ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण करने की निजी क्षेत्रों की भागादारी आने वाले समय में और भी कम होने की संभावना है. ऐसा इसलिए है कि पिछले महीने तक वैक्सीन के डोज राज्य सरकार आवंटित करती थी इसके कारण शहरों से दूर स्थित छोटे निजी अस्पतालों को भी कुछ डोज मिल जाते थे. पर अब नये नियम के मुताबिक निजी क्षेत्र के वैक्सीन प्रदाताओं को खुद ही जाकर वैक्सीन उत्पादकों से बात करना है. इसका परिणाम यह होगा की जो बड़े हॉस्पीटल चेन हैं और बड़े शहरों में संचालित हो रहे हैं उन्हें वैक्सीन की डोज अधिक मात्रा में मिल जाएगी, पर छोटे अस्पताल जो ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित होते हैं वो पीछे रह जाएंगे.

दिल्ली और बेंगालुरु नगर निगम क्षेत्र में निजी केंद्रों के जरिये 40 फीसदी वैक्सीनेशन किया गया है. जबकि चेन्नई और कोलकाता में निजी केंद्रों द्वारा कम वैक्सीनेशन किया गयाय वहीं महाराष्ट्र में निजी केंद्रों का शेयर 25 फीसदी है. जबकि आठ बड़े शहरों की सूची में दो छोटे शहर पुणे और अहमदाबाद में 19 फीसदी और 9 फीसदी वैक्सीनेशन निजी केंद्रो के जरिये हुई है.

रविवार 16 मई की सुबह तक आठ बड़े शहरों में 1.9 करोड़ डोज दिये गये. इनमें 1.4 करोड़ या 75 फीसदी टीकाकरण सरकार केंद्रों से हुए हैं. जबकि इन आठ राज्यों के ग्रामीण क्षेत्र वाले जिलों में 15.1 लाख डोज दिये गये जिनमें से14.8 लाख या 97 फीसदी वैक्सीनेशन सरकारी केंद्रों के जरिये हुए.

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इसके बावजूद Liberalized Pricing and Accelerated National Covid-19 Vaccination Strategy के मुताबिक भारत के गैर सरकार वैक्सीन कोटे में से जो 50 फीसदी वैक्सीन के डोज होंगे वो आधे राज्य सरकार के हिस्से जायेंगे और आधे प्राइवेट सेक्टर को दिये जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट में दायर स्वाथ्य मंत्रालय के हलफनामे के मुताबिक निजी क्षेत्र को 25 फीसदी वैक्सीन देने से बेहतर तरीके से वैक्सीनेशन हो पाएगा और सरकारी वैक्सीनेशन केंद्रों पर बोझ कम पड़ेगा. पर जो आंकड़े हैं वो ठीक इसके विपरीत हैं.

ऐसी स्थिति से राज्य सरकारे असमंजस कि स्थिति में पड़ सकती है क्योंकि अगर राज्य 25 फीसदी वैक्सीन डोज से गांवों में टीकाकरण कराती है तो शहरों नें 18-44 आयु वर्ग को वैक्सीनेशन कराने के लिए निजी केंद्रों में जाना होगा. इसके लिए उन्हें पैसे देने होंगे और सरकार यह नहीं चाहेगी. पर सरकार अगर शहरों में ध्यान देती है तो ग्रामीण क्षेत्र टीकाकरण से वंचित रह जाएंगे.

Posted By: Pawan Singh

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