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Bangladesh:भारत को स्ट्रेटेजिक कंटेनमेंट की नीति होगी अपनानी

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बांग्लादेश को स्थिर करने में सहायता करना ही हमारा अंतिम उद्देश्य होना चाहिये. एक अस्थिर पड़ोसी भारत के लिए आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनों ही दृष्टि से बोझिल होगा.

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प्रसिद्ध इतिहासकार सौमित्र बनर्जी ने भारत के विभाजन पर ”लिमिनल टाइड्स” नामक पुस्तक लिखी है, जो विभाजन के बाद घटी हिंसा और उथल-पुथल के घटते-बढ़ते ज्वार की कहानी बताती है. इतिहासकार ने बांग्लादेश को बहुत ही करीब से देखा है और अपनी किताब में जिन बातों का जिक्र विभाजन के संदर्भ में किया है, ठीक उसी तरह के हालात आज बांगलादेश में दिख रहे हैं. सत्ता, पहचान और जुड़ाव के बदलते परिदृश्यों के बीच आज बांग्लादेश में किसी पर कोई भरोसा करने को तैयार नहीं है. विभाजन के समय जिस तरह से लोग सीमांत स्थानों की खोज में भाग रहे थे, वही स्थिति आज बांग्लादेश में है. अलगाव, हत्या और नुकसान की तस्वीरें वहां दिख रही है. इतिहासकार के मुताबिक ‘वर्ष 1947 के शुरुआती विभाजन का जैसा दौर दिखा था, वैसा ही दौर एक बार फिर बांग्लादेश में दिख रहा है. हालांकि इस बार पीड़ित एक समुदाय के लोग हैं. खासकर हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ निर्देशित हिंसा चिंतनीय है’. बांग्लादेश में जो हुआ है और आगे जिसकी आशंका व्यक्त की जा रही है उन तमाम मुद्दों पर प्रभात खबर ने इतिहासकार सौमित्र बनर्जी से विस्तार से बात की. प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश : 

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आपने भारत विभाजन पर चर्चित पुस्तक, ‘लिमिनल टाइड्स’ लिखी है. आज के हालात में आप बांग्लादेश को कैसे देखते हैं?  


बांग्लादेश में जिस तरह की घटना घटी है वह बहुत ही चिंतनीय, निंदनीय और भयावह है. वहां पर भारत के ‘एंटी लवर’ को प्राथमिकता दी जा रही है. मोहम्मद यूनुस सलीम को वहां के अंतरिम सरकार की बागडोर सौंपी गयी है. लेकिन सभी को पता है कि उनके पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद के साथ संबंध कैसे रहे हैं. युनूस बुद्धिजीवी हैं,उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, लेकिन सबको पता है कि आजकल इस तरह के पुरस्कार किस तरह से दिये जा रहे हैं. यूनुस सलीम की नियुक्ति को अच्छा भी माना जा सकता है, लेकिन जिन लोगों के समर्थन से वह सरकार का नेतृत्व करेंगे, उन सबों का नजरिया भारत विरोधी रहा है. उम्मीद है कि वह अपनी बौद्धिकता का उपयोग करते हुए बांगलादेश में एक खास समुदाय को निशाना बनाने वाले जमात को रोकने में कोई कारगर कदम उठायेंगे. मोहम्मद यूनुस ने पहला काम जो किया, वह खालिदा जिया को रिहा करवाने का किया है और खालिदा जिया का रवैया भारत के प्रति अब तक कैसा रहा है, इस बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं. इस घटना के पीछे जो ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ काम कर रहे हैं, वह भारत को नुकसान पहुंचाने का काम कर सकते हैं. 

आपने अपनी पुस्तक में विभाजन से पहले और उसके दौरान सांप्रदायिक हिंसा का विवरण दिया है. पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पलायन के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमलों को आप किस तरह देखते हैं?

मैंने अपनी किताब  में इन बातों का जिक्र विस्तार से किया है.1947 में जहां पर हिंदू मेजॉरिटी ज्यादा थी वहां पर मुसलमान और जहां पर मुसलमान मेजोरिटी ज्यादा थी वहां पर हिंदू के खिलाफ हिंसा हो रही थी. बांगलादेश में माइनॉरिटी में हिंदू है और उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. इसमें सिर्फ एक समुदाय के लोग प्रभावित हो रहे हैं और वह पलायन को मजबूर है. यह चिंतनीय और निंदनीय है. इसका समाधान डिप्लोमेसी और डायलॉग से वहां की सरकार से बातचीत कर किया जा सकता है. बांगलादेश को यह समझाना पड़ेगा कि आप वहां पर इस तरह के हरकतों का समर्थन करेंगे, तो भारत में इसका प्रतिकार हो सकता है. बांग्लादेश को भारत से मिलने वाली मदद में कटौती, आयात-निर्यात पर पाबंदी सहित उन तमाम मुद्दों पर बात करना होगा, जिससे बांगलादेश लाभान्वित होता है.असल में आज बांग्लादेश में भारत के विभाजन से पूर्व वाली स्थिति है. यह भी सही है कि जमायते इस्लामी और खालिदा जिया के संबंध भारत से अच्छे नहीं है. पाकिस्तान और चीन भी भारत से संबंध खराब करने की कोशिश करेगा. लेकिन सबसे बड़ी समस्या चीन से है. हालांकि यह भी सच है कि बांग्लादेश की जनता को यह पता है कि उसका सच्चा हितैषी भारत है ना कि चीन. मुझे लगता है कि चुनाव के बाद जो नयी सरकार बनेगी, उसके साथ भारत के रिश्ते फिर से सामान्य होते जायेंगे. इसका एक कारण यह भी है कि दोनों देशों को एक दूसरे की जरूरत है.

आपके मुताबिक विभाजन से पूर्व भारत में जिस तरह की स्थिति थी, वही स्थिति आज बांग्लादेश में है?

 इस तरह की घटना को हम “साइक्लिक जिओ पॉलिटिक्स” कह सकते हैं. सबसे पहले तो भारत का विभाजन ही गलत था. रेडक्लिफ (अंग्रेज अधिकारी) को बुलाया गया और कहा गया कि आप एक लकीर खींच दो जिसे दोनों देश मान लेंगे. उस व्यक्ति को भारत के इतिहास भूगोल और परिस्थिति का कुछ भी पता नहीं था. उसने एक लकीर खींची जिसमें दो कान को पाकिस्तान में सम्मिलित करा दिया और सिर को भारत में रहने दिया.जब दो कान के बीच सिर होगा, तो सिरदर्दी भी होगी और वह भारत के साथ यही हो रहा है. इसको मैने अपनी किताब में ‘रेडक्लिफ डूडल’ बताया है. तब पूर्वी पाकिस्तान से अंग्रेजों का बटुआ भरता था, खेती भी ज्यादा थी, कपड़े के काम ज्यादा थे इसलिये इस इलाके को पाकिस्तान को दे दिया गया. भारत के लिये अच्छी बात यह है कि लिंग्विस्टिक के मामले में बांग्लादेश भारत के करीब है. पूर्वी भाग में बंगाली बोलने वाले लोग है. वहां बंगाली बोली जाती है, पंजाबी बोली जाती है. जिन क्षेत्रों में पश्तो बोली जाती है, वही लोग बांग्लादेश को पाकिस्तान में मिलाने की पैरवी करते हैं. बोली के आधार पर वहां पर एक विभाजन है. पश्तो वाले जरूर चाहते हैं कि वहां पर 1971 वाली स्थिति बन जाये और चीन इस चाहत को बढ़ावा देता है. तख्तापलट के बाद पाकिस्तान, कट्टरपंथी और चीन सहित कई देश सक्रिय है. लेकिन चाहत से ही तो सब कुछ होता नहीं है, इसलिये यह चीजें भारत के लिये वरदान साबित होगा. हां, इसकी आशंका जरूर दिख रही है कि बांगलादेश को एक और पाकिस्तान न बना दें. वहां एक रेडिकलाइजेशन फैल जाये, हिंदू सब बाहर निकल जायें और वह पूरी तरह से एक इस्लामिक देश बन जाये.

आपकी नजर में इस तरह के घटना के लिये कौन जिम्मेदार है?


बांग्लादेश की समस्या बहुत पहले से है. पिछले 15 साल से शेख हसीना वाजेद वहां पर राज कर रही थी. उन्होंने बांग्लादेश के लिये कई अच्छे काम किये है, खासकर अर्थव्यवस्था को लेकर. कई पैरामीटर पर तो इंडिया से बांग्लादेश का रिकॉर्ड बेहतर है. लेकिन टकराव तानाशाही को लेकर हुआ. जो इलेक्शन हुआ वह इंटरनेशनल ऑबजर्बर ने जिताया. लेकिन बांग्लादेश की जनता की नजर में वह जीती नहीं. खालिदा जिया को जेल में डाल दिया गया. दूसरे विपक्षी नेताओं को भी जेल में या नजरबंद कर दिया गया. चुनाव में ऑपोजिशन ने बायकॉट कर दिया. धीरे-धीरे उबाल तो आ ही रहा था, लेकिन इस उबाल को बिल्कुल उफान देने वाला काम ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ ने किया. इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इंडिया, ऑस्ट्रेलिया से हार जाता है, तो जश्न मनाया जाता है बांग्लादेश में. भारत से कई पड़ोसी देशों को जलन भी है. चूंकि बांग्लादेश और भारत के रिश्ते पिछले 15 सालो से अच्छे हैं, इसलिये इन रिश्तों में कड़वाहट आये और इससे भारत को परेशानी हो, इसको अंजाम देने में नॉन स्टेट एक्टर्स ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बांग्लादेश में जो असंतुष्टि थी उसका फायदा पड़ोसी देश या दूर दराज के देश ने उठाया. बहुत लोग चाहते थे कि शेख हसीना की सरकार न रहे. चीन बिल्कुल नहीं चाहता था. बांगला देश छोटा है इसलिये इस तरह की घटना को वहां अंजाम दिया. 

बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के उदय से भारत को किस प्रकार निपटना होगा? 

भारत के लिए कट्टरपंथी एक स्थायी समस्या रहा है. चाहे वह अंदर हो या बाहर. भारत के लिये यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि निहित स्वार्थों और ईर्ष्या के कारण यह चारों ओर से घिरा हुआ है. मैं इसे एक जटिल पड़ोस कहूंगा. इसलिए कट्टरपंथियों को, न केवल बांग्लादेश में, बल्कि आस-पास के किसी भी स्थान पर, आदर्श रूप से नियंत्रित किया जाना चाहिए, साथ ही हमें एक जवाबी रणनीति के साथ अच्छी तरह से तैयार रहना चाहिए. शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने में कौन शामिल थे? अगर वे नहीं थे तो मुझे सुखद आश्चर्य होगा. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हमारे पास हमेशा पहियों के भीतर पहिए होते हैं और नॉन स्टेट एक्टर्स अस्थिरता को उत्प्रेरित करने में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हैं. इसलिये बांग्लादेश को स्थिर करने में सहायता करना ही हमारा अंतिम उद्देश्य होना चाहिये, क्योंकि हम पहले से मौजूद अस्थिरता से और ज़्यादा अस्थिरता बर्दाश्त नहीं कर सकते. एक अस्थिर पड़ोसी भारत के लिए आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनों ही दृष्टि से बोझिल होगा. जिस परिस्थिति का अभी हम सामना कर रहे हैं, उसमें सीमाओं पर सख्त रणनीति की आवश्यकता है. अभी भारत की सीमा को व्यापार या आवाजाही के लिए बंद करने के साथ ही पश्चिमी सीमाओं पर भी रणनीतिक निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए. समान हितों वाले समान, विचारधारा वाले सहयोगियों की बांग्लादेश की सुरक्षा के लिये एक ‘रिंग फेंस’ बनायी जानी चाहिये, ताकि उसे नकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने से रोका जा सके. साथ ही सभी हितधारकों के साथ प्रभावी कूटनीति और संवाद कायम रखना जरूरी है.

छात्रों के विरोध को आप किस रूप में देखते हैं?

छात्र हमेशा दुनिया भर में किसी भी तरह की सक्रियता और विरोध में एक आवाज़ और सार रहे हैं. यहां तक कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये छात्रों ने आवाज उठायी और नेताओं की मदद की. लेकिन यहां पर मेरे लिए यह आश्चर्य की बात है कि वे केवल कॉलेज के छात्र थे जिन्होंने तख्तापलट की साजिश रची और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री को हटा दिया. ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं जब कोई छात्र किसी विरोध प्रदर्शन को अंजाम तक पहुंचाने की हिम्मत और रणनीतिक चतुराई रखता हो. बांग्लादेश के मामले में, हम इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं कि इस घटना को बेहद सफलता और चतुराई से अंजाम तक पहुंचाने में ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ की टीम मौजूद है.

भारत को अब क्या कदम उठाना चाहिये?

Bsf Bangladesh
Bangladesh border

भारत सरकार को स्ट्रेटेजिक कंटेनमेंट (रणनीतिक नियंत्रण) की नीति अपनानी होगी. क्योंकि 1947 के बाद से ही बांगलादेश में बंगाली रह रहे हैं, वह धीरे-धीरे भारत में आये हैं. इसलिए सरकार को बांग्लादेश से लगते बोर्डर को बिल्कुल सील कर देना चाहिये. सरकार ने वैसा किया भी है. इसमें किसी तरह की ढील नहीं दी जा सकती है. इस बार यदि थोड़ी भी ढील दी गयी, तो भारत के लिये स्थिति और खराब हो सकती है.भारत को वहां की सरकार के साथ संबंध बनाने होंगे. भारत की ओर से ऐसा किया भी जा रहा है. लेकिन यह भी सच है कि वहां कट्टरपंथी जमात भी है, जो पाकिस्तान पोषित है और वह भारत के साथ सामान्य रिश्ते को बनाने में बाधा उत्पन्न करने की भरसक कोशिश करेगा. दूसरी बात, खालिदा जिया के भारत रहते हुए बांग्लादेश के साथ संबंध को बढ़ाना थोड़ा मुश्किल होगा. मानवता के आधार पर और भारत की जो परंपरा और संस्कृति है, उसमें शेख हसीना को इस मुश्किल समय में दूसरे देश में जाने को नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इसको ज्यादा दिन तक लंबा भी नहीं खींचा जा सकता है. क्योंकि भारत को पड़ोसी देशों के साथ संबंध बहाल करने के साथ ही जियो पॉलिटिक्स का भी ध्यान रखना होगा.


नयी सरकार के साथ किस तरह के संबंध की उम्मीद की जा सकती है?

नयी सरकार के साथ हमारा संबंध ठीक रहना चाहिये. नयी सरकार ‘प्रो इंडिया’ नहीं है. खालिदा जिया का झुकाव चीन की ओर होगा, लेकिन धीरे-धीरे उसे समझ में आएगा कि सब चीजें जब भारत से आ रही है, तो फिर चीन की ओर इतना झुकाव से क्या फायदा? पाकिस्तान के पास तो कुछ है ही नहीं. बांग्लादेश के साथ हमारे रिश्ते अच्छे रहे हैं. दोनों देश की अवाम भी रिश्ते बेहतर करना चाहेंगे, इसलिए मुझे लगता है कि भारत बांग्लादेश के संबंध धीरे-धीरे सामान्य हो जायेंगे. हां, इसमें थोड़ा वक्त जरूर लग सकता है.

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