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जयंती पर विशेष : अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व हिमालय की तरह ‘साकार दिव्य गौरव विराट्‌’ था

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अटल जी कवि हृदय संवेदनशील व्यक्ति थे, लेकिन उनके व्यक्तित्व में चट्टान सी कठोरता भी थी. उनकी इस कठोरता से लोगों का सामना पोखरण-2 और कारगिल युद्ध के दौरान हुआ. वे ना सिर्फ एक स्वप्नद्रष्टा था बल्कि वे एक राष्ट्रनिर्माता थे.

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-विनय कुमार सिंह –

( सदस्य प्रदेश कार्यसमिति,भाजपा झारखंड)

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने हिमालय को ‘साकार दिव्य गौरव विराट्’ कहकर काव्यांजलि दी है. अटलजी का व्यक्तित्व भी हिमालय के उसी स्वरूप की भांति था. वे एक सफल नेता थे, जिनमें राजनीति के तमाम गुण मौजूद थे. भारतीय राजनीति में एक से बढ़कर एक नेता हुए जो अपने गुणों के कारण अमर हुए और आज भी अपनी पहचान बनाये हुए हैं, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे नेता थे, जो अपनी तरह के एकमात्र नेता थे. उन्हें एकमेव,अद्वितीय,अनुपम की संज्ञा दी जा सकती है.

जादुई वाणी के धनी व्यक्ति 

अटल जी की वाक्‌पटुता और भाषण की अद्‌भुत शैली लोगों को सम्मोहित कर देती थी. उनकी जादुई वाणी के आकर्षण में लोग बंध से रह जाते थे. जब वे संसद या जनसभाओं में बोलते थे तो लोग मंत्रमुग्ध हो सुनते थे. वे कविता में राजनीति कह रहे या राजनीति में कविता यह समझना मुश्किल होता था.

वाक्‌पटुता से विरोधियों को करते थे चित्त

अटल जी के राजनीतिक विरोधी भी उनकी वाक्‌पटुता और भाषणशैली के प्रशंसक रहे हैं. कई बार उन्हें संसद में यह कहा गया कि वे तो अच्छे हैं, लेकिन पार्टी…, इसपर अटल ने चुटकी लेते हुए कहा था कि आप बतायें कि आप इस अच्छे वाजपेयी का क्या करने वाले हैं. अटल जी जब भाषण देते थे तो उनका बाॅडी लैंग्वेज भी अद्‌भुत होता था, वे ना सिर्फ अपने शब्दों से विपक्ष पर वार करते थे बल्कि उनकी भाव भंगिमा भी अनोखी होती थी. विपक्ष उनके मारक अंदाज से घायल तो होता था, लेकिन वे उनके प्रशंसक भी थे. अटल जी के लिए यह कहा जाता था कि उनके जिह्वा पर सरस्वती का वास है.

नरसिंह राव और चंद्रशेखर उन्हें मानते थे गुरु 

वे जनसभाओं जब बोलते थे तो जनसमूह भावुक हो जाता था, लेकिन जब वे संसद में अकाट्य तर्कों के साथ विरोधियों पर हमले करते तो विरोधी बगले झांकने लगते थे. लेकिन संसद में उनका गर्जन कभी भी संसदीय गरिमा की लक्ष्मण-रेखा को को लांघनेवाला नहीं होता था . वे संसदीय मर्यादा के प्रतीक-पुरुष थे, जिसकी वजह से वे सभी पार्टियों के लिए आदर के पात्र थे. सर्वविदित है कि पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और चंद्रशेखर उन्हें अपना ‘गुरु’ मानते थे. आज जब संसद में संसदीय गरिमा का अनादर होता है, तो सहसा ऐसे नेताओं की याद आ जाती है. लोकतंत्र में विरोधी विचारधारा का होना स्वाभाविक है, लेकिन वह मर्यादा के अनुरूप होना चाहिए.

कवि हृदय व्यक्ति थे अटल जी

अटल जी कवि हृदय संवेदनशील व्यक्ति थे, लेकिन उनके व्यक्तित्व में चट्टान सी कठोरता भी थी. उनकी इस कठोरता से लोगों का सामना पोखरण-2 और कारगिल युद्ध के दौरान हुआ. वे ना सिर्फ एक स्वप्नद्रष्टा था बल्कि वे एक राष्ट्रनिर्माता था, जिनके पास राष्ट्रनिर्माण के लिए विजन था.उन्होंने लगभग दो दर्जन दलों को साथ लेकर पूरे पांच साल तक सफल गठबंधन-सरकार का नेतृत्व किया और भारत को विश्वशक्ति बनाने की राह पर अग्रसर किया था. वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अटल जी को ही अपनी प्रेरणा मानते हैं.

राष्ट्रभाषा हिंदी से था प्रेम

राष्ट्रभाषा हिंदी से उन्हें बहुत अनुराग था. उन्होंने राजनीति करते हुए भी अपने हृदय में कवि को जीवित रखा और अनगिनत कविताएं लिखीं. राजनीति में सक्रियता से पूर्व वे एक पत्रकार थे. उन्होंने पाञ्चजन्य,राष्ट्रधर्म,स्वदेश और वीर अर्जुन जैसी उल्लेखनीय पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से राष्ट्रभाषा हिंदी की सेवा की. साल 1977 में बनी मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता सरकार में वे विदेशमंत्री थे और उन्होंने संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिंदी में अपना भाषण दिया था. उनकी जयंती पर उन्हें शत-शत नमन.

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अटल बिहारी वाजपेयी सदैव निष्कलंक रहे

कबिरा की चादरिया बड़े भाग मिलती/मन में लगी गांठ जो मुश्किल से खुलती… अटल बिहारी वाजपेयी के जिंदगी की चादर सदैव निष्कलंक रही. महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है – गगनं गगनाकारं सागरो सागरोपम: यानि आकाश की उपमा आकाश से और समुद्र की उपमा समुद्र से ही दी जा सकती है. अटल जी ऐसे ही थे. नि:संदेह वे सार्वजनिक जीवन की उपमा, उपमेय और उपमान- तीनों थे. जयंती पर उन्हें शत-शत नमन.

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