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Explainer: कैबिनेट सचिव के बराबर होगा CEC और चुनाव आयुक्तों का वेतन, केजरीवाल ने क्यों किया प्रहार?

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राज्यसभा में गुरुवार को पेश एक विधेयक के प्रावधानों के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का वेतन एवं भत्ते कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे. वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की सेवा से संबंधित कानून के मुताबिक उनका वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है.

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(Appointment, Conditions of Service and Tenure of Office) Bill, 2023 Introduced : राज्यसभा में गुरुवार को पेश एक विधेयक के प्रावधानों के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का वेतन एवं भत्ते कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे. वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की सेवा से संबंधित कानून के मुताबिक उनका वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है. सरकार के एक सूत्र ने बताया, ‘वेतन समान ही रहेगा, 2.50 लाख रुये प्रति माह. लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त अब कैबिनेट सचिव के समान होंगे, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान नहीं.’

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तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का दर्जा राज्य मंत्री से एक दर्जा नीचे!

सूत्र के अनुसार, जब संसद से इस विधेयक को मंजूरी दे दी जाती है तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का दर्जा राज्य मंत्री से एक दर्जा नीचे होगा. सूत्र ने कहा, ‘चूंकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर नहीं, उन्हें नौकरशाह माना जा सकता है. चुनाव करवाने के मामले में यह एक जटिल स्थिति हो सकती है.’

(नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पेश

सूत्र के मुताबिक, विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल उनके पदभार ग्रहण करने से छह वर्ष तक के लिए या उनके 65 वर्ष की आयु पूरा करने या इनमें से जो पहले हो, प्रभावी होगा. राज्यसभा में गुरुवार को विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पेश किया. इसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और आयुक्तों के चयन के लिए समिति में प्रधान न्यायाधीश के स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है.

विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को माना जाएगा नेता प्रतिपक्ष

मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी. विधेयक के मुताबिक, प्रधानमंत्री इस समिति के प्रमुख होंगे और समिति में लोक्सभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री होंगे. इसके प्रावधानों के अनुसार, यदि लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है तो सदन में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष माना जाएगा.

केजरीवाल ने निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी विधेयक पर की आलोचना

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बृहस्पतिवार को उस विधेयक को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना की, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए गठित की जाने वाली समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश की जगह एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रावधान किया गया है. उन्होंने दावा किया कि यह कदम चुनावों की निष्पक्षता को प्रभावित करेगा.

नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति करेगी

राज्यसभा में गुरुवार को पेश एक विधेयक के मुताबिक, भविष्य में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति करेगी. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री भी इस समिति के सदस्य होंगे. यह विधेयक उच्चतम न्यायालय की ओर से मार्च में दिए गए उस आदेश के महीनों बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए संसद द्वारा कानून न बनाए जाने तक प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रधान न्यायाधीश की सदस्यता वाली समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा इन चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने का आरोप

सोशल मीडिया मंच एक्स (पहले ट्विटर) पर जारी सिलसिलेवार पोस्ट में केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी पर उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करने का आरोप लगाया और कहा कि यह ‘बहुत खतरनाक स्थिति’ है. उन्होंने लिखा, ‘मैंने पहले भी कहा था कि प्रधानमंत्री देश की सर्वोच्च अदालत की बात नहीं मानते हैं. उनका संदेश स्पष्ट है-उच्चतम न्यायालय उनकी पसंद के खिलाफ जो भी फैसला देगा, वह उसे पलटने के लिए संसद के जरिये कानून लेकर आएंगे. अगर प्रधानमंत्री उच्चतम न्यायालय के फैसले का पालन नहीं करते हैं, तो यह बहुत खतरनाक स्थिति है.’

जानें केजरीवाल ने क्या कहा ?

केजरीवाल ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय ने एक निष्पक्ष समिति बनाई थी, जो निष्पक्ष निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करेगी. प्रधानमंत्री ने उच्चतम न्यायालय का फैसला पलटते हुए एक समिति गठित की है, जो उनके नियंत्रण में रहेगी और वह इसके जरिये अपनी पसंद के व्यक्ति को चुनाव आयुक्त बना सकते हैं. इससे चुनावों की निष्पक्षता पर असर पड़ेगा.’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘प्रधानमंत्री एक के बाद एक अपने फैसलों से भारतीय लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं.’

‘निर्वाचन आयुक्त भाजपा के प्रति वफादार होगा’

एक अन्य पोस्ट में केजरीवाल ने कहा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रस्तावित समिति में ‘भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो और कांग्रेस का एक सदस्य’ होगा. उन्होंने आरोप लगाया, ‘जाहिर तौर पर नियुक्त होने वाला निर्वाचन आयुक्त भाजपा के प्रति वफादार होगा.’ आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाया कि दिल्ली सेवा विधेयक के बाद केंद्र सरकार ‘एक बार फिर’ उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलट रही है.

दिल्ली सेवा विधेयक पारित करने के बाद अब…

उन्होंने कहा, ‘शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ जाकर दिल्ली सेवा विधेयक पारित करने के बाद केंद्र अब चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के संबंध में विधेयक पेश कर न्यायालय के एक और आदेश को पलटने की कोशिश कर रहा है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन संस्थानों-प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और निर्वाचन आयोग को बेहद सम्मान की नजर से देखा जाता था, उन पर अब केंद्र का साथ देने के आरोप लग रहे हैं.’

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