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नक्सलियों के लाल सलाम को सीआरपीएफ के जवानों ने खून देकर दिया जवाब

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रायपुर : छत्तीसगढ का नाम लेते ही यहां नक्सलियों और हिंसा की बात जेहन में आती है. आदिवासियों के द्वार तक विकास पहुंचाने के लिये सरकार यहां सडकें बनवा रही है. सुकमा जिले में दोरनापाल-जगरगुंडा मार्ग और इंजरम-भेजी मार्ग दो ऐसी सडके हैं जिनके लिये कहा जाता है कि इन सडकों के निर्माण में सुरक्षाबलों […]

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रायपुर : छत्तीसगढ का नाम लेते ही यहां नक्सलियों और हिंसा की बात जेहन में आती है. आदिवासियों के द्वार तक विकास पहुंचाने के लिये सरकार यहां सडकें बनवा रही है. सुकमा जिले में दोरनापाल-जगरगुंडा मार्ग और इंजरम-भेजी मार्ग दो ऐसी सडके हैं जिनके लिये कहा जाता है कि इन सडकों के निर्माण में सुरक्षाबलों को भारी कुर्बानी देनी पडी है.

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सुरक्षाबल से प्राप्त आंकडों पर नजर डालें तो पिछले तीन साल में इन सडकों पर पुलिस और नक्सलियों के बीच लगभग 25 मुठभेड हुईं जिनमें सुरक्षाबलों के करीब 50 जवान मारे गये हैं. एक महीने पहले 24 अप्रैल 2017 को धुर नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के बुरकापाल स्थित सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन के 25 जवानों ने उस सडक के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया है जो जिले की जीवन रेखा मानी जा रही है. यह सडक है दोरनापाल-जगरगुंडा मार्ग.

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56 किलोमीटर लंबाई वाली निर्माणाधीन इस सडक के बारे में कहा जाता है कि इस सडक को पानी से नहीं, बल्कि जवानों ने अपने खून से सींचा है. इस सडक पर नक्सलियों ने अनेक बार सुरक्षाबलों को निशाना बनाया है. दोरनापाल-जगरगुंडा मार्ग दोरनापाल से शुरू होता है और गोरगुंडा, पोलमपल्ली, कांकेरलंका, पुसवाडा, तिमेलवाडा, चिंतागुफा, बुरकापाल, चिंतलनार, नारसापुरम से होता हुआ जगरगुंडा तक पहुंचता है. सुकमा जिले में एक और भी सडक है जिसकी खातिर जवानों की जान की बाजी लगी है. इंजरम से भेज्जी तक बन रही 20 किलोमीटर लंबाई की इस सडक पर नक्सलियों ने कई बार सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हमला किया है. इंजरम-भेजी मार्ग इंजरम से शुरू होता है और इटेगट्टा, गोरखा, कोत्ताचेरु होता हुआ भेजी पहुंचता है.

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छत्तीसगढ के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा का कहना है कि इन दोनों सडकों का निर्माण सुकमा क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण है. इन सडकों के निर्माण के बाद यहां की जनता तक विकास पहुंच पाएगा. लेकिन नक्सली नहीं चाहते हैं कि आदिवासियों तक विकास पहुंचे और यही कारण है कि वे लगातार इन सडकों के निर्माण को रोकने का प्रयास कर रहे हैं. पैकरा ने कहा कि पिछले कुछ समय में इन सडकों के निर्माण में तेजी आई है. वहीं, सुरक्षाबलों की गतिविधियां भी यहां तेज हुई हैं जिससे नक्सली बौखला गये हैं. हाल के दिनों में इन सडकों पर सुरक्षाबलों पर हमले की घटना नक्सलियों की बौखलाहट का ही नतीजा है.

राज्य में विशेष पुलिस महानिदेशक (नक्सल अभियान) और छत्तीसगढ पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के प्रबंध निदेशक डीएम अवस्थी का मानना है कि दोरनापाल-जगरगुंडा और इंजरम-भेजी सडक सुकमा जिले की जीवन रेखा मानी जाती है. इन दोनों सडकों के निर्माण से राज्य में नक्सल समस्या को हल करने में मदद मिलेगी. विशेष पुलिस महानिदेशक कहते हैं कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सबसे ज्यादा समस्या पहुंच मार्गों की है. यहां सडकों का निर्माण किया जाता है तो आदिवासी ग्रामीणों को सरकार की योजनाओं का बेहतर तरीके से लाभ मिलेगा. लेकिन नक्सली इससे डरे हुए हैं क्योंकि वे जानते हैं कि यदि आदिवासियों तक सरकार की सीधी पहुंच बन गयी तो वे उनसे दूर हो जाएंगे और उनकी ताकत कमजोर होगी. नक्सली अपने प्रभाव को किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं होने देना चाहते हैं जिसके लिए वे सुरक्षाबलों पर हमले करते हैं और सडकों को नुकसान पहुंचाते हैं.

राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक दोरनापाल-जगरगुंडा मार्ग और इंजरम-भेजी मार्ग सुकमा जिले का अत्यंत संवेदनशील मार्ग है. इसका निर्माण शासन और सुरक्षाबलों के लिए एक चुनौती है और इसका निर्माण शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल है. रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में अधिकार बनाए रखने के लिए नक्सलियों ने कई बडे हमलों को अंजाम दिया है जिनमें 29 अगस्त वर्ष 2007 में चिंतलानार और चिंतागुफा के मध्य ताडमेटला के पास नक्सली हमले में 12 जवानों की मृत्यु, 10 अप्रैल वर्ष 2009 में चिंतागुफा थाना क्षेत्र में मिनपा गांव के पास लोकसभा चुनाव दल पर हमले में 10 अधिकारियों और कर्मचारियों की मृत्यु, छह मई वर्ष 2009 में इंजरम के नजदीक बारुदी सुरंग विस्फोट में 11 लोगों की मृत्यु, छह अप्रैल वर्ष 2010 में ताडमेटला के पास नक्सली हमले में 76 जवानों की मृत्यु, एक दिसंबर वर्ष 2014 में चिंतागुफा थाना क्षेत्र के कसालपाड के करीब नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 14 जवानों की मृत्यु, 11 अप्रैल वर्ष 2015 में चिंतागुफा थाना क्षेत्र के पिडमेल में नक्सली हमले में सात जवानों की मृत्यु और इस वर्ष मार्च महीने में भेजी थाना क्षेत्र के वंकुपारा के पास नक्सली हमले में 12 जवानों के शहीद होने की घटना शामिल है.

अधिकारियों ने बताया कि दोरनापाल-जगरगुंडा मार्ग के प्रथम नौ किलोमीटर सडक का निर्माण कार्य लोक निर्माण विभाग को सौंपा गया है जिसमें से दोरनापाल से गोरगुंडा के मध्य आठ किलोमीटर में डामरीकरण और शेष एक किलोमीटर में आधार (जीएसबी) कार्य पूर्ण कर लिया गया है. अधिकारियों ने बताया कि शेष 47 किलोमीटर (10 से 56 किलोमीटर) का कार्य छत्तीसगढ पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन द्वारा कराया जा रहा है. इसमें आधार (जीएसबी) का कार्य पूरा कर लिया गया है. इस मार्ग में पांच थानों के अतिरिक्त केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की 15 कंपनियां 11 स्थानों पर तैनात हैं जिनकी सहायता से मार्ग निर्माण कार्य को सुरक्षा प्रदान की जा रही है. इस सडक की लागत 122 करोड रुपये है. अधिकारियों ने बताया कि इसी तरह इंजरम-भेजी सडक के प्रथम सात किलोमीटर निर्माण का कार्य लोक निर्माण विभाग को सौंपा गया है. जिसमें से इंजरम से इटेगटटा के मध्य चार किलोमीटर में सीमेंट कंक्रीट (सीसी) और शेष तीन किलोमीटर में आधार (जीएसबी) कार्य पूर्ण कर लिया गया है.

उन्होंने बताया कि शेष 13 किलोमीटर (आठ से 20 किलोमीटर) का कार्य छत्तीसगढ पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन द्वारा कराया जा रहा है जिसमें सात किलोमीटर में सीमेंट कंक्रीट (सीसी) का कार्य पूरा कर लिया गया है. इस मार्ग पर एक थाने के अतिरिक्त सीआरपीएफ की सात कंपनियां पांच स्थानों पर तैनात हैं. इस सडक की लागत 35 करोड रुपये है.

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