20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिन पर विशेष : वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा नहीं कहा था

Advertisement

!!अनुज कुमार सिन्हा!! अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के केंद्र में रहे हैं. प्रधानमंत्री के पद पर हों या विदेश मंत्री के पद पर या विपक्ष के नेता के पद पर, उन्होंने हर भूमिका में अपनी छाप छोड़ी है. प्रखर और स्पष्ट वक्ता, मंजे हुए राजनीतिज्ञ, बेहतरीन लीडर, सभी कोसाथ लेकर चलने की उनमें अदभुत […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

!!अनुज कुमार सिन्हा!!

- Advertisement -

अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के केंद्र में रहे हैं. प्रधानमंत्री के पद पर हों या विदेश मंत्री के पद पर या विपक्ष के नेता के पद पर, उन्होंने हर भूमिका में अपनी छाप छोड़ी है. प्रखर और स्पष्ट वक्ता, मंजे हुए राजनीतिज्ञ, बेहतरीन लीडर, सभी कोसाथ लेकर चलने की उनमें अदभुत कला थी. तभी तो न सिर्फ अपने दल में, बल्कि विपक्षी भी उनकी उतनी ही इज्जत करते रहे हैं. इतने लंबे राजनीतिक जीवन में कभी कोई दाग नहीं लगा. पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया. 25 दिसंबर को वे 92 वर्ष पूरा करने जा रहे हैं. स्वास्थ्य कारणों से एक दशक से राजनीति से दूर रहने के बावजूद उन्हें याद किया जाता रहा है. राजनीति में उनकी कमी खलती रही है. कुछ ऐसी घटना भी घटी जिसने वाजपेयी जी को आहत किया लेकिन उन्होंने उफ तक नहीं की.

देश-दुनिया में यही प्रचारित हुआ, कहा गया कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनकी बहादुरी के लिए दुर्गा तक कहा था. अभी भी यही धारणा है. पर सच इसके उलट है. वाजपेयी ने यह बताने का प्रयास भी किया कि उन्होंने इंदिरा गांधी को दुर्गा नहीं कहा था, सिर्फ उनकी तारीफ की थी, लेकिन यह धारणा नहीं बदली. वाजपेयी को इस बात का दर्द भी सताता रहा कि गलती किसी और ने की, किसी का भाषण किसी और के नाम पर डाल दिया, गलत रिपोर्ट की, उसका सुधार भी नहीं किया, कांग्रेस ने उसका फायदा उठाया और इसका खामियाजा उन्हें (वाजपेयी को), उनके दल को भुगतना पड़ा. अपनी पीड़ा को उन्होंने प्रसिद्ध पत्रकार गणेश मंत्री के साथ 1989 में साझा किया था. तब गणेश मंत्री धर्मयुग के संपादक हुआ करते थे. उन्होंने वाजपेयी के साथ लंबा इंटरव्यू किया था, जिसे प्रकाशित किया गया था.

उसी दौरान वाजपेयी ने बताया था कि दुर्गा वाली बात कैसे फैली थी. वाजपेयी जी के शब्दों में-मैंने दुर्गा नहीं कहा, लेकिन बांग्लादेश बनवाने के लिए मैंने उनकी तारीफ की थी. यह पूछने पर कि दुर्गा से आपने तुलना तो की थी, वाजपेयी ने कहा (उन्हीं के शब्दों में)-दुर्गा का नाम छप गया. मैंने कहा नहीं था. श्रीमती पुपुल जयकर का फोन आया था कि वह लोकसभा कार्यवाही में वह प्रसंग देख रही हैं, जिसमें हमने इंदिरा जी को दुर्गा कहा था. मैंने कहा-वह प्रसंग आपको मिलेगा नहीं, क्योंकि मैंने दुर्गा कहा ही नहीं था. उन्होंने स्पीच संकलन सेक्शन को लिखा कि वाजपेयी जी पुराने सब भाषण देखें. उस समय आंध्र के कोई सदस्य थे, जो मेरे बाद बोले थे. उन्होंने इंदिरा जी को दुर्गा कहा था. मैंने दूसरे दिन उसका खंडन भी किया. मैं लोकसभा अध्यक्ष के पास भी गया था. मैंने कहा, यह मेरे नाम से छप गया है. इसका स्पष्टीकरण दीजिए. उन्होंने कहा-छोड़ो भाई, लड़ाई हो रही है. जब प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें सभी पार्टियों का सहयोग चाहिए, तब मैंने जरूर कहा था-आप पार्टियोंकी बात मत कीजिए. पूरा देश एक पार्टी है आैर दूसरी पार्टी पाकिस्तान है, जिससे लड़ाई है. लड़ाई का नेतृत्व आपको करना है. दुर्गा की बात नहीं कही थी. लेकिन कांग्रेस ने मेरे उस भाषण का भी मेरे खिलाफ, मेरे दल के खिलाफ और पूरे प्रतिपक्ष के खिलाफ बड़ा घटिया उपयोग किया. (वाजपेयी के इंटरव्यू का मूल अंश). उन दिनों न तो टेलीविजन का जमाना था औ न ही इतने विस्तार से संसद की कार्यवाही की रिपोर्टिंग होती थी. अखबार जो लिख दिया, लिख दिया. वैसे भी लड़ाई चल रही थी. वाजपेयी की आपत्ति के बावजूद खंडन नहीं किया गया. सभी का ध्यान देश की आेर था. वाजपेयी गंभीर नेता रहे हैं. खंडन नहीं होने पर भी उन्होंने कोई कड़ा रुख नहीं अपनाया, सदन की कार्यवाही बाधित नहीं की, सदन की कार्यवाही का बहिष्कार नहीं किया, भले ही उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा.

वाजपेयी ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने का भरसक प्रयास किया था. एक बार तो मुशर्रफ-वाजपेयी मुलाकात के दाैरान कश्मीर समस्या के स्थायी समाधान की भी स्थिति बन गयी थी, लेकिन बात बनते-बनते बिगड़ गयी. करगिल युद्ध तक हाे गया. वाजपेयी मानते रहे कि 1971 के युद्ध के बाद का समय कश्मीर समस्या के स्थायी समाधान के लिए सबसे उपयुक्त था. अपने इंटरव्यू में वाजपेयी ने इस बात का भी उल्लेख किया था कि युद्ध में विजय के बाद कैसे भारत ने कश्मीर समस्या के हल का एक अवसर गवां दिया था. वाजपेयी के अनुसार-स्वतंत्र बांग्लादेश का जब उदय हुआ, तो पाकिस्तान की 90 हजार सेना और पाकिस्तान का बहुत बड़ा भू-भाग हमारे हाथ में था. उस समय पाकिस्तान से कश्मीर के बारे में अंतिम समझौता हो जाना चाहिए था. मुझे जानकारी है कि जब भुट्टो शिमला आये थे, तो उन्होंने इंदिरा गांधी काे आश्वासन दिया था कि मैं लौटने के बाद सीमा रेखा में थोड़ा परिवर्तन करूंगा और इस मामले को समाप्त कर दूंगा. उसी समय कश्मीर के मामले को समाप्त किया जा सकता था.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें