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500 और 1000 के नोट पर लगी पाबंदी के बाद भी चुनाव में काले धन का उपयोग : विश्वलेषक

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नयी दिल्ली : राजनीतिक पार्टियां विधानसभा चुनाव से पहले अपने कार्यकर्ताओं के खाते में नकदी डालकर अपने कालेधन को सफेद बनाने का प्रयास कर सकती हैं. राजनीतिक विश्लेषक प्रधानमंत्री की इस पहल को मात्र लोकप्रियता हासिल करने के लिए उठाया गया कदम करार दे रहे हैं. विश्लेषकों का कहना है कि इससे राजनीतिक दलों द्वारा […]

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नयी दिल्ली : राजनीतिक पार्टियां विधानसभा चुनाव से पहले अपने कार्यकर्ताओं के खाते में नकदी डालकर अपने कालेधन को सफेद बनाने का प्रयास कर सकती हैं. राजनीतिक विश्लेषक प्रधानमंत्री की इस पहल को मात्र लोकप्रियता हासिल करने के लिए उठाया गया कदम करार दे रहे हैं. विश्लेषकों का कहना है कि इससे राजनीतिक दलों द्वारा काले धन के इस्तेमाल पर कोई खास फर्क नहीं पडेगा.

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अगले कुछ माह में देश के कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल कमर कस चुके हैं और उन्होंने अपनी रैलियां और प्रचार अभियान भी शुरु कर दिया है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के प्रोफेसर एवं प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘आने वाले चुनाव में काले धन का इस्तेमाल इस बार भी पहले की ही तरह होगा.

नोट बदलने की इस प्रक्रिया से आने वाले चुनाव में काले धन के प्रयोग पर कतई फर्क नहीं पडेगा.” अपने तर्क के लिए उन्होंने 1978 का उदाहरण देते हुये कहा कि तत्कालीन गवर्नर आई जी पटेल ने मोरारजी देसाई सरकार के पांच और दस हजार रपये के नोट बंद करने के सुझाव को नकार दिया था. पटेल ने कहा था कि अब लोगों के बीच काले धन को नकदी के रुप में रखने का प्रचलन नहीं है. दुबे ने कहा कि सभी राजनीतिक दल पहले से ही बेनामी खाते खुलवाकर उनमें इस प्रकार का पैसा जमा करा चुके हैं या उसे सोना-हीरा और अचल संपत्ति में बदल चुके हैं. अफरा-तफरी का माहौल खत्म हो जाने के बाद फिर उस पैसे को बाहर लाकर इस्तेमाल किया जाएगा.
उन्होंने बताया कि इस समय काला धन बैंकिंग प्रणाली में ही समाहित है, इसलिये नोट बदलने से चुनाव में प्रयोग होने वाले कालेधन में कोई कमी नहीं आएगी. राजनीतिक पार्टियों ने अगले कुछ महीनों में होने वाले चुनाव के लिए चंदे और सदस्यता के जरिये पर्याप्त धनराशि एकत्रित कर रखी है, लेकिन चुनाव से पहले 500 एवं 1000 रपये के मौजूदा नोटों का चलन बंद होने से वह राशि चुनाव से ठीक पहले बेकार होने वाली है, इसलिये पुराने नोटों का चलन पूर्णत: बंद होने से पहले इस राशि को ठिकाने लगाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा उसे अपने कार्यकर्ताओं के खाते में जमा कराकर सुरक्षित कराए जाने की आशंका जतायी जा रही है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) में उत्तर प्रदेश के प्रमुख संयोजक डॉक्टर लेनिन ने कहा, ‘‘राजनीतिक दल अपनी राशि का इस्तेमाल कार्यकर्ताओं को दस-दस, बीस बीस हजार रपये या उनकी आर्थिक हैसियत के अनुपात में बांटने का प्रयास निश्चित रुप से करेंगे. ” इसके लिए सरकार के अधिकारियों एवं एजेंसियों को अगले दो तीन माह तक सतर्क निगरानी करने की जरुरत है.” उन्होंने बताया, ‘‘इससे पहले भी ऐसा हुआ है कि राजनीतिक दल चुनाव से पहले अपने कार्यकर्ताओं में पैसा बंटवाते हैं.” लेनिन ने एडीआर संस्था की रपट के हवाले से बताया कि उत्तर प्रदेश की दो बडी राजनीतिक पार्टियों समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी के पास धन के बडी तादाद में अज्ञात स्रोत हैं.
बसपा की कुल आय 585 करोड रपये है जिसमें से 307 करोड रपये उसे स्वैच्छिक दानदाताओं से मिले है, जिनका योगदान 20,000 रपये से कम था. पार्टी को 20 हजार रुपये से कम की राशि दान करने वाले का नाम बताने की जरुरत भी नहीं पडी. एडीआर की ही एक अन्य रपट के अनुसार उत्तर प्रदेश में इस बार के विधानसभा चुनाव में 84 फीसद इच्छुक उम्मीदवार ठेकेदार, बिल्डर, खनन माफिया, शिक्षा माफिया और चिटफंड कंपनी चलाने वाले लोग हैं.
रपट में इन सबके चुनाव लडने की स्थिति में बडे पैमाने पर काले धन के प्रयोग की आशंका जताई जा गयी है. भ्रष्टाचार पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्था ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया’ में भारतीय शाखा के प्रमुख एवं मुख्य कार्यकारी निदेशक रामनाथ झा ने कहा, ‘‘यह हमेशा से होता रहा है कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए पैसे बंटवाती हैं.
पुराने नोट बंद होने से वे ज्यादा से ज्यादा पैसा सफेद करने का हर संभव प्रयास करेंगी.” उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को मौजूदा प्रक्रिया में चार हजार रुपये के नोट बदलवाने के लिए भी लोगों का पैन अथवा खाता अनिवार्य करना चाहिये था. मतदाता पहचान पत्र दिखाकर पैसा जमा करवाने से एक सुराख छूट गया लगता है. मतदाता पहचान पत्र से आपके बैंकिंग प्रणाली से जुडे होने का पता नहीं चलता और इसके जरिये लोग कई…कई बार जाकर पैसा जमा कर रहे हैं. इसके लिए सरकार को बैंकों के साफ्टवेयर को उन्नत कर उसे पैन अथवा आधार कार्ड से जोडना चाहिये था, ताकि स्त्रीधन के बहाने कोई काली कमाई को सफेद में नहीं बदल सकें.”
झा ने बताया कि चुनाव को कालेधन से मुक्त कराने के लिए प्रधानमंत्री को चुनावी सुधार जैसे कदम उठाने चाहिये थे. नोटों को बदलने से कालेधन पर ज्यादा चोट नहीं पडेगी. इसके अलावा सरकार को नोट बदलने से पहले पूरी तैयार करनी चाहिये थी और कोई सुराख नहीं छोडना चाहिये था. उल्लेखनीय है कि हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के बैंकों से पैसे की निकासी में तेजी दर्ज की गयी है. इसके साथ ही चुनाव से पहले राज्य में बडी गाडियों की खरीद में बहुत तेजी आई है. मीडिया में काले धन को सफेद बनाने के लिए गरीबों के जनधन खाते का प्रयोग करने की खबरें भी आ रही हैं.
भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने भी काले धन के लिए की गयी इस पहल पर बवाल करने वाली पार्टियों से उनकी परेशानी का कारण पूछा था. हालांकि रामनाथ झा ने थोडा मजाकिया लहजे में कहा कि लोकसभा चुनाव में मोदी द्वारा जनता के खाते में काले धन का पैसा आने का किया गया वादा, भले ही पूरी तरह से नहीं लेकिन कुछ हद तक तो पूरा ही होने वाला है. अब राजनीतिक पार्टियां अपना काला धन सफेद बनाने के लिए अपने ही कार्यकर्ताओं के खाते का प्रयोग कर सकती हैं, इससे जैसे भी हो, गरीबों के खाते में काला धन का पैसा तो आ ही जाएगा. झा ने कहा कि सरकार का यह कदम बहुत सराहनीय और साहसिक है, लेकिन इसके सारे सुराख पूरी तरह से बंद करने के लिए सरकारी अधिकारियों और एजेंसियों को कई माह तक सतर्क रहने की आवश्यकता है. उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर एक सतर्कता लाइन शुरु करने का भी सुझाव दिया है.

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